Monday, January 27, 2020

गुप्त नवरात्रि : तंत्र मंत्र साधना के लिए विशेष 25 जनवरी 2020

हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार, साल में कुल चार नवरात्रि पड़ती है, जिसमें से शारदीय और चैत्र नवरात्रि प्रमुख है। साल के पहले मास में पहली अर्थात चैत्र नवरात्रि, चौथे माह आषाढ़ में दूसरी गुप्त नवरात्रि, इसके बाद अश्विन मास में तीसरी प्रमुख आश्विन नवरात्रि और 11वें माह अर्थात माघ माह में गुप्त नवरात्रि पड़ती है।

दोनों गुप्त नवरात्रि में मां दुर्गा की सार्वजनिक पूजा उपासना नहीं की जाती। इन दोनों नवरात्रि में मां दुर्गा के अलावा भगवान शिव एवं माता पार्वती के अर्धनारीश्वर महाशक्ति रूप की गुप्त रूप से पूजा आराधना की जाती है , जिस प्रकार शारदीय और चैत्र नवरात्रि में देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है, उसी तरह गुप्त नवरात्रि में 10 महाविद्या की पूजा की जाती है।

गुप्त नवरात्रि के नौ दिनों में क्रमशः काली, तारा, षोडशी ( त्रिपुर सुंदरी ) भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमवाती, बंगलामुखी, मतंगी और लक्ष्मी देवी की उपासना की जाती है।

माघ मास की नवरात्रि को गुप्त नवरात्र कहते हैं, क्योंकि इसमें गुप्त रूप से शिव व महाशक्ति की उपासना की जाती है।

जबकि चैत्र और शारदीय नवरात्र में सार्वजनिक रूप में माता दुर्गा की उपासना की जाती है।

शास्त्रों में गुप्त नवरात्रि को विशेष रूप से गुप्त सिद्धियों को प्राप्त करने का साधना काल बताया गया है। इनका महत्व जानने वाले साधक गुप्त नवरात्रि में गुप्त रूप से विशेष साधना कर अनेक ऋद्धि सिद्धि प्राप्त करते हैं।

माघ गुप्त नवरात्रि:

इस बार माघ गुप्त नवरात्रि 25 जनवरी से शुरू होकर 04 फरवरी तक चलने वाला है।

माघ नवरात्रि के लिए घट स्थापना 25 जनवरी ( शनिवार ) को की जाएगी।

घट स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 09.48 बजे से लेकर 10. 47 बजे तक है।

इसके अलावा घट स्थापना के लिए अभिजीत मुहूर्त दोपहर 12:12 बजे से 12:55 बजे तक है।

साधना विशेष:

देवी की विशेष कृपा प्राप्ति के लिए नवार्ण मंत्र (ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे:) की 10 माला (रुद्राक्ष की माला) से जप करना शुभ रहेगा।

नवार्ण मंत्र के नौ अक्षरों में पहला अक्षर ऐं है, जो सूर्य ग्रह को नियंत्रित करता है। ऐं का संबंध दुर्गा की पहली शक्ति शैल पुत्री से है, जिसकी उपासना 'प्रथम नवरात्र' को की जाती है।

दूसरा अक्षर ह्रीं है, जो चंद्रमा ग्रह को नियंत्रित करता है। इसका संबंध दुर्गा की दूसरी शक्ति ब्रह्मचारिणी से है, जिसकी पूजा दूसरे नवरात्रि को होती है।

तीसरा अक्षर क्लीं है, चौथा अक्षर चा, पांचवां अक्षर मुं, छठा अक्षर डा, सातवां अक्षर यै, आठवां अक्षर वि तथा नौवा अक्षर चै है। जो क्रमशः मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु तथा केतु ग्रहों को नियंत्रित करता है।

इस प्रकार भगवती की साधना से मानव आर्थिक शारीरिक तथा मानसिक रूप से समर्थता प्राप्त करते हैं।
ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से..

मौनी अमावस्या 24 जनवरी 2020

हिन्दू धर्म में मौनी अमावस्या का विशेष महत्त्व है। माघ माह की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता हैं। इस दिन मौन रहकर यमुना /गंगा किसी पवित्र नदी ,जलाशय अथवा घर में जल में तिल और गंगाजल डालकर स्नान करना चाहिए। माघ मास की अमावस्या और पूर्णिमा दोनों ही तिथियाँ पर्व कही गयी हैं। लेकिन माघ मास के स्नान का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण पर्व मौनी अमावस्या के स्नान का माना गया है,

मौनी अमावस्या के मुहूर्त :-

जनवरी 24, 2020 को 02:19:25 से अमावस्या आरंभ

जनवरी 25, 2020 को 03:13:36 पर अमावस्या समाप्त होगी।

एक मान्यता ऐसी भी है कि इस दिन मनु ऋषि का भी जन्म हुआ था जिसके कारण भी इस दिन को मौनी अमावस्या के रूप में मनाया जाता है।

'मौनी' का अर्थ मुनि है। इसलिए इस दिन इस व्रत को मौन धारण करके समापन करने वाले को या स्नान से पहले मौन रहने वाले को मुनि पद की प्राप्ति होती है। यदि यह अमावस्या सोमवार के दिन हो तो इसका महत्त्व और भी अधिक बढ़ जाता है।

माघ मास को भी कार्तिक मास के समान पुण्य मास कहा गया है।

शास्त्रों के अनुसार सागर मंथन से धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। उस अमृत कलश को प्राप्त करने के लिए देवों व असुरों के बीच हुई खींचातानी से अमृत की कुछ बूंदें छलक कर प्रयाग, हरिद्वार नासिक व उज्जैन में जा गिरि थी। इसी लिए इन स्थानों पर कुंभ का पर्व मनाया जाता है। इसमें प्रयाग में लगने वाले कुम्भ में सवसे श्रेष्ठ स्नान माघी अमावस्या का ही कहा गया है।

मान्यतानुसार माघ में पड़ने वाली मौनी अमावस्या के दिन पवित्र संगम तीर्थ में तैंतीस कोटी देवताओं का निवास होता है इसलिए माघ अमावस्या पर संगम में स्नान से अमृत स्नान का पुण्य मिलता है। मौनी अमावस्या के दिन प्रातः गंगा नदी / पवित्र नदी या घर में जल में गंगा जल डाल कर स्नान करने से पितृदोष से, गृहक्लेश से मुक्ति मिलती है, सभी तरह के संकटो एवं दुर्घटना से रक्षा होती है। इसीलिए इलाहबाद मे गंगा के तट पर इस भक्त जन एक मास तक कुटी बनाकर कल्प वास करके पुण्य अर्जित करते हैं।

मान्यता यह है कि मौनी अमावस्या के दिन हिन्दुओं की सबसे पवित्र नदी गंगा मैया का जल अमृत बन जाता है। शास्त्रों में कहा गया है सत युग में जो पुण्य तप से मिलता है,

द्वापर युग में हरि भक्ति से, त्रेता युग में ज्ञान से, कलियुग में दान से पुण्य मिलता है, वहीँ माघ मास में संगम स्नान वह भी मौनी अमावस्या का स्नान हर युग में अन्नंत पुण्यदायी होगा।

मान्यता यह भी है कि यदि कोई मौन ना रह पाए तो वह अपने मन मस्तिष्क में किसी भी प्रकार का मैल न आने देने, किसी को भी कोई कटुवचन न कहे , तब भी मौनी अमावस्या का पूर्ण पुण्य प्राप्त होगा है।

शास्त्रों के अनुसार अमावस्या के दिन किये गए उपाय अति शीघ्र सफल होते है और मौनी अमावस्या के दिन तो इन उपायों का और भी महत्त्व है।

मौनी अमावस्या के दिन प्रात: सूर्योदय से पूर्व जल में काले तिल और गंगाजल डाल कर स्नान करने से बहुत अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है कुंडली के ग्रह शुभ फल देने लगते है।

मौनी अमावस्या के दिन प्रात: जल में दूध, काले तिल, अक्षत और सफ़ेद पुष्प डाल कर पितरो का तर्पण करने से पितरो सो स्वर्ग में स्थान मिलता है, पितरो का पूर्ण आशीर्वाद मिलता है।

मौनी अमावस्या के दिन पितरो के निमित एक ब्राह्मण को अपने घर में भोजन कराएं। इससे पितृ प्रसन्न होते है, जीवन के सभी संकट दूर होते है, पितरो के शुभाशीष से जातक को किसी भी चीज़ का आभाव नहीं होता है।

मौनी अमावस्या पर सुबह स्नान आदि करने के बाद शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग पर कच्चा दूध या पंचामृत से अभिषेक करते हुए चांदी से निर्मित नाग-नागिन की पूजा करें फिर इसे सफेद पुष्प के साथ बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें। इससे कालसर्प दोष के दुष्प्रभाव से निश्चित ही राहत मिलती है।

मौनी अमावस्या के दिन शिव परिवार, माँ लक्ष्मी जी को चावल की खीर का भोग लगाने से धन-सम्पत्ति के भण्डार भरते है। खीर पितरो को भी अति प्रिय है अत: इस दिन पितरो के निमित भी इस खीर को किसी दोने में डालकर पीपल के वृक्ष के नीचे अवश्य ही रखवाएं।

मौनी अमावस्या के दिन किसी शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग का अभिषेक, भगवान शंकर की आरधना करने से निश्चय ही सभी मनोरथ पूर्ण होगी ।

मौनी अमावस्या के दिन स्नान के बाद तिल के लड्डू, तिल का तेल, आंवला, घी, कम्बल, चावल, वस्त्रादि किसी गरीब ब्राह्मण या किसी जरूरतमंद को दान देने से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है।

मौनी अमावस्या के दिन प्रात: पीपल के वृक्ष पर जल में दूध, काले तिल, गुड़ मिलाकर चढ़ाएं और 7 परिक्रमा करें एवं सांय काल प्रदोष काल में पीपल के वृक्ष के नीचे कड़वे तेल / तिल के तेल का दीपक जलाएं। इससे कुंडली की ग्रह बाधाओं का निवारण होता है।

मौनी अमावस्या के दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद लगातार भगवान का नाम लेते हुए आटे की गोलियां बनाएं। इसके बाद समीप के किसी भी तालाब या नदी में जाकर मछलियों को यह आटे की गोलियां खिला दें। इस उपाय से जीवन की अनेको परेशानियों का अंत हो सकता है।

मौनी अमावस्या के दिन चीटियों को शक्कर मिला हुआ आटा खिलाएं। ऐसा करने से पापो का नाश होता है पुण्य बढ़ते है। समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।

मौनी अमावस्या के दिन सांय काल घर के ईशान कोण में गाय के घी का दीपक लगाएं। उसमें बत्ती में रूई के स्थान पर लाल रंग के कलावे / मोली / धागे का प्रयोग करें, साथ ही उस दीपक में थोड़ी-सी केसर भी अवश्य डाल दें। ऐसा करने से माँ लक्ष्मी प्रसन्न होती है , उस घर में सुख समृद्धि की कोई भी कमी नहीं होती है।

मौनी अमावस्या के दिन किसी सूखे कुएं या गहरे गड्ढे में में दूध डाले , इससे सेहत ठीक रहती है, रोग निकट भी नहीं आते है।

मान्यता है कि मौनी अमावस्या के दिन किसी भूखे को भोजन कराने से जो पुण्य मिलता है वह पुण्य जन्म जन्मांतर तक अक्षय होता है, अत: इस दिन किसी भूखे को भोजन अवश्य ही करवाएं या किसी गरीब असहाय की मदद अवश्य करें।

अगर किसी जातक को बहुत मानसिक परेशानियाँ रहती है तो वह मौनी अमावस्या के दिन दूध में अपनी छाया देखकर उस दूध को किसी दोने में डालकर काले कुत्ते को पिलाएं। इससे सभी तरह की मानसिक परेशानियां अवश्य ही दूर होती है।

ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से...

Wednesday, January 22, 2020

सूर्य पुत्र शनि का स्वराशि मकर में प्रवेश :: 24 जनवरी 2020

सूर्य पुत्र शनि का स्वराशि मकर में प्रवेश :: 24 जनवरी 2020

  दिनांक 24 जनवरी 2020 को प्रातः 9:26 पर मकरस्थित चंद्रमा उत्तराषाणा नक्षत्र कालीन शनि अपना मकर संक्रमण आरंभ कर देंगे।

24 जनवरी 2020 को शनि मकर राशिस्थ चंद्रमा, शनि का मकर एवं कुंभ संक्रमण मेदिनीय ज्योतिष की एक बड़ी घटना समझा जाता है।

शनि लगभग 30 वर्ष में एक राशि चक्र एक भ्रमण पूरा करते हैं। इससे पहले शनि ने दिनांक 15 दिसंबर 1990 को अपना मकर संक्रमण आरम्भ किया था।

मगर शनि की स्वराशि है, गुरु की नीच राशि तथा मंगल की उच्च राशि है।

मकर राशि के शनि में सोना, चांदी, तांबा, यातायात के साधन, सूत, कपास आदि में भारी तेजी आती है। फसलों का उत्पादन कम ही रहता है, अनाजों में तेजी आती है।

रोग और युद्ध के कारण का विनाश संभव, जनता में भयानक युद्ध में रहता है।

समूचा विश्व अस्थिरता तथा अशांति को प्राप्त करता है। मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा बुंदेलखंड के जनजाति लोगों को पीड़ा होगी।

रूस, चीन, सीरिया, मध्य पूर्व एशिया के कुछ राष्ट्रों में किसी अति विशेष घटनाक्रम के कारण राजनीतिक परिवर्तन के योग बनेंगे जिससे परिणाम स्वरूप आने वाले कुछ दशकों तक विश्व राजनीति, अर्थव्यवस्था तथा कूटनीति आदि अपनी दिशा बदल कर नवीन अंतर्राष्ट्रीय समीकरणों को जन्म देगी।

युद्ध भय व्याप्त रहता है एवं अभूतपूर्व रक्तपात की संभावना होती है। राजनीति अराजकता, अस्थिरता, छल तथा मायाजाल में डूब जाती है।

इसके प्रभाव दो से 3 वर्षों तक विद्यमान रहते हैं।

शनि का मकर राशि में राशिफल:

मेष राशि: आय व्यय में तालमेल बनाना कठिन होगा।

वृष राशि: व्यापार में हानि के योग।

मिथुन राशि: रोग पीड़ा मानसिक तनाव, दिशा भ्रम

कर्क राशि: वैवाहिक जीवन में तनाव तथा क्रोध के कारण मन अशांत रहना।

सिंह राशि: शत्रु पक्ष, शारीरिक पीड़ा से मन व्याकुल होना,

कन्या राशि : पारिवारिक तनाव तथा चिंता से विपरीत परिस्थितियां होती हैं।

तुला राशि: एकाएक बढ़ोतरी से तनाव होता है। व्यवसाय हानि संभव।

वृश्चिक राशि: अचल संपत्ति में निवेश से शुभ फल प्राप्त हो।

धनु राशि: भूमि तथा वाहन का सुख प्राप्त होता है। रोग पीड़ा से मुक्ति।

मकर राशि: स्वास्थ्य पीड़ा से तनाव मन में अशांति अशांति एवं तनाव मानसिक अकेलापन।

कुंभ राशि: रोग पीड़ा तथा व्यय में बढ़ोत्तरी।

मीन राशि: धन लाभ तथा पदोन्नति के योग बने।

शनि की साढ़ेसाती दशा विचार:

धनु पैरो पर उतरती हुई।
मकर मध्य अवस्था।
कुंभ सिर पर चढ़ती या प्रारंभ होती हुई।

जिनकी कुंडली में शनि शुभ हो तथा दशा अंतर्दशा भी शुभ चल रही हो उनके लिए शनि का अशुभ फल कम होगा।

जन्म कुंडली में चंद्र शनि अशुभ ग्रहों से युक्त अशुभ स्थानों में हो तो साढ़ेसाती और ढैय्या से चिंता, पीड़ा, धन हानि, कार्य में विघ्न रोजगार में कमी, कलह, पशु पीड़ा, धन खर्चा एवं हानि आदि अरिष्ट फल पद होते हैं।

शनि के अनिष्ट फल निवारण के लिए तेल छाया पत्र का दान, शनि मंत्र का जप, दशांश हवन, श्री हनुमान जी की साधना, तेल युक्त सिंदूर समर्पण कर भक्ति पूर्वक शनिवार का व्रत, सप्तधान्य का दान, शनिवार को पीपल का पूजन करने से शनि के अशुभ फलों से शांति मिलती है।

साढ़ेसाती ढैया का विचार जन्म कालीन चंद्रमा के अंशों से करना चाहिए।

सुवर्णादि पाया निर्णय:

24 जनवरी 2020 को शनि मकर राशिस्थ चंद्रमा, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र कालीन मकर राशि में प्रवेश करेगा।

इसके अनुसार में मेषादि राशियों पर सुवर्णादि पाया वही रहेगा।

1) मेष, कर्क, तथा वृश्चिक राशियों पर ताम्र का पाया शुभ होगा।

2) वृष, कन्या, धनु राशियों पर रजत का पाया शुभ होगा।

3) मिथुन, तुला, कुंभ राशियों पर लोह पाया अशुभ फलदायक होगा।

4) कर्क, मकर, मीन राशियों पर सुवर्ण पाया मिश्रित फलदायक होगा।

ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से...

संतानों की दीर्घायु का व्रत - सकट चौथ :: 13 जनवरी 2020

संतानों की दीर्घायु का व्रत - सकट चौथ :: 13 जनवरी 2020

 

मकर संक्रांति महापर्व 15 जनवरी 2020


सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना मकर संक्रांति कहलाता है, इसी दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं।

शास्त्रों में उत्तरायण की अवधि को देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि कहा गया है, इस तरह मकर संक्रांति एक प्रकार से देवताओं का प्रभात काल है।

उत्तर प्रदेश में इस व्रत को खिचड़ी कहते हैं, इसलिए इस दिन खिचड़ी खाने और खिचड़ी तिल दान करने का विशेष महत्व है।

दक्षिण भारत में इसे पोंगल कहते हैं।

असम में आज के दिन बिहू का त्यौहार मनाया जाता है।

ऐसा कहा जाता है मकर संक्रांति पर्व पर प्रतिवर्ष 14 जनवरी को पड़ता है खगोल शास्त्रियों के अनुसार, इस दिन सूर्य अपनी कक्षाओं में परिवर्तन कर दक्षिणायन से उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, जिस राशि में सूर्य की कक्षा का परिवर्तन होता है उसे संक्रांति कहा जाता है।

मकर संक्रांति पर्व इलाहाबाद के संगम स्थल पर प्रतिवर्ष लगभग एक माह तक माघ मेले के रूप में मनाया जाता है, जहां भक्त कल्प वास करते हैं तथा 12 वर्ष में कुंभ मेला लगता है। यह भी लगभग 1 माह तक रहता है। इसी प्रकार 6 वर्षों में अर्ध कुंभ मेला लगता है।

पंजाब तथा जम्मू-कश्मीर में लोहड़ी के नाम से मकर संक्रांति पर्व मनाया जाता है।

सिंधी समाज भी मकर संक्रांति के एक दिन पूर्व लोही के रूप में मनाते है।

तमिलनाडु में पोंगल के रूप में मनाया जाता है, इस दिन तिल, चावल, दाल की खिचड़ी बनाई जाती है।

नई फसल का चावल के पदार्थों से पूजा करके कृषि देवताओं के प्रति आभार कृतज्ञता प्रकट की जाती है।

भारतीय ज्योतिष के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर हुआ माना जाता है।

मकर संक्रांति से दिन बढ़ने लगता है और रात्रि छोटी होने लगती है स्पष्ट है कि दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा और रात्रि छोटी होने से अंधकार की अवधि कम होगी।

हम सभी जानते हैं सूर्य की ऊर्जा का स्त्रोत है इसके अधिक चमकने से प्राणी जगत में चेतनता और उसकी कार्य शक्ति में वृद्धि होती है। हमारी संस्कृति में मकर संक्रांति का विशेष महत्व है।

इस संदर्भ में तुलसीदास जी कहते हैं -

माघ मकरगत रवि जब होई।
तीरथपतिहिं आव सब कोई।।

तारीख 14 जनवरी 2020 मंगलवार को मकर संक्रांति अर्ध रात्रि कालीन 2:07 पर पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र कालीन तुला लग्न में प्रविष्ट होगी।

वार के अनुसार महोदरी तथा नक्षत्र अनुसार उग्र संज्ञक लाभकारी होगी। इस संक्रांति के स्नान, जप, पाठ, दान आदि का पुण्य काल अगले दिन तारीख 15 जनवरी के मध्य तक रहेगा।

प्रातः स्नान के बाद भगवान विष्णु पूजन, सूर्य जप, पुरुष सूक्त स्त्रोत पाठ, तिल, घी सहित होम सहित तर्पण, ब्राह्मण भोजन एवं अनाज, वस्त्र, फल, गुड़, तिल के दान का विशेष महत्व होता है। इस दिन हरिद्वार, प्रयागराज, काशी, कुरुक्षेत्र आदि स्थानों का विशेष महत्व होता है।

इस दिन से माघ माहात्म्य का पाठ आरंभ करके माघ मासांत तक नित्य प्रति पाठ करने का विशेष महत्व है।

ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से...



उपच्छाया चंद्र ग्रहण - 10 जनवरी 2020

उपच्छाया का अर्थ:

किसी वस्तु की मूल छाया के अतिरिक्त इधर उधर पड़नेवाली उसकी कुछ आभा या हलकी काली झलक,जैसी ग्रहण के समय चंद्रमा या पृथ्वी की मुख्य छाया के अतिरिक्त दिखाई देती है।

साल का पहला चंद्र ग्रहण पूर्ण न होकर उपच्छाया ग्रहण होगा, इसमें चांद पूरी तरह नहीं छिपता है अतः ये ग्रहण की कोटि में नहीं आएगा।

वैसे चंद्र ग्रहण से करीब 12 घंटे पहले सूतक की शुरुआत हो जाती है, लेकिन उपच्छाया चंद्र ग्रहण में सूतक नहीं लगता है।

इस चंद्र ग्रहण में सूतक काल न लगने की वजह से मंदिरों के कपाट भी बंद नहीं किए जाएंगे और न ही पूजा-पाठ वर्जित होगी।

चंद्रग्रहण का प्रभाव 29 फरवरी तक देखने को मिल सकता है जबकि सूर्य ग्रहण का प्रभाव मकर संक्रांति तक देखने को मिल सकता है।

साल 2020 का पहला चंद्रग्रहण मिथुन राशि में लगने जा रहा है, इसलिए महिलाओं पर इसका असर सबसे ज्यादा होगा।

इस बार का चंद्र ग्रहण मिथुन राशि के लोगों को शारीरिक और मानसिक दोनों तौर पर प्रभावित करेगा।

ज्योतिष शास्त्र की मानें तो यह ग्रहण भारत के दूसरे भाव में लगने जा रहा है क्योंकि भारत की कुंडली वृष लग्न की मानी गयी है।

10 जनवरी को चंद्र ग्रहण के साथ पौष पूर्णिमा पड़ने की वजह से इस दिन ग्रहण खत्म होने के बाद स्नान-दान करना बेहद शुभ होगा।

वास्तव में ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि में इसे ग्रहण नहीं माना जाएगा, इसलिए पूर्व पंचांग कारों ने पहले इसका उल्लेख नहीं किया।

वर्तमान समय में अधिक अध कचरा ज्ञान झाड़ कर आम जनता को भ्रमित किया जा रहा है इसीलिए हमने उपच्छाया ग्रहण के संदर्भ में थोड़ा लिखा है। यह ग्रहण माना ही नहीं जाएगा।

उपच्छाया चंद्र ग्रहण वास्तव में चंद्र ग्रहण नहीं होता। प्रत्येक चंद्र ग्रहण के घटित होने से पूर्व चंद्रमा पृथ्वी की उपच्छाया में अवश्य प्रवेश करता है, जिससे चंद्र मालिन्य कहा जाता है। कई बार पूर्णिमा को चंद्रमा उपच्छाया में प्रवेश कर उपच्छाया शंकु से ही बाहर निकल जाता है। इस उपच्छाया के समय चंद्रमा का विम्ब केवल धुंधला हो जाता है काला नहीं होता, इसलिए इसे ग्रहण की कोटि में नहीं रखा जा सकता।

चंद्रमा उपच्छाया में प्रवेश कर उठाया शंकु से बाहर निकल जाएगा। इसका स्पर्श काल 10 जनवरी 2020 को रात 10:38 से परम ग्रास मध्यकाल 11 जनवरी 2020 को 12:50 तक तथा मोक्ष काल 11 जनवरी की प्रातः 2:10 तक होगा।

वास्तव में यह कोई ग्रहण ही नहीं है ग्रहण के सूतक स्नान आदि महत्त्व का विचार नहीं रखा जाएगा भारत में से दूरबीन द्वारा देखा जा सकता है।

ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से..

Tuesday, January 21, 2020

भारत मे दृश्य सूर्यग्रहण : 26 दिसंबर 2019 पौष कृष्णा अमावस्या गुरुवार को पूर्णग्रास सूर्य ग्रहण

भारत मे दृश्य सूर्यग्रहण : 26 दिसंबर 2019 पौष कृष्णा अमावस्या गुरुवार को पूर्णग्रास सूर्य ग्रहण

भारत मे दृश्य सूर्यग्रहण : 26 दिसंबर 2019 पौष कृष्णा अमावस्या गुरुवार को पूर्णग्रास सूर्य ग्रहण 8:00 बजे से मध्यान्ह 1:36 तक होगा।
सूर्य ग्रहण का समय प्रारंभ और समाप्ति काल प्रत्येक स्थान पर अलग-अलग होता है। सूर्योदय काल मे पृथ्वी पर चंद्र छाया की काली पट्टी दौड़ती नजर आएगी सूर्य ग्रहण पूर्णग्रास के रूप में देखा जा सकेगा ।
बरेली में सूर्य ग्रहण का प्रारंभ प्रातः काल 8:20से, मध्य काल समय प्रातः काल 9:35 समाप्ति काल मध्यान 11.02 तक रहेगा, कुल पर्व काल 2 घंटा 40 मिनट तक रहेगा। पूर्णग्रास सूर्य ग्रहण में काली पट्टी में सूर्य की छाया दौड़ती नजर आएगी।
सूतक का आरंभ : सूतक का प्रारंभ 25 दिसंबर 2019 बुधवार की रात्रि 8:17 से प्रारंभ हो जाएगा ।
बाल, वृद्ध, रोगी को छोड़कर अन्य किसी को भोजन चयन की अनुमति नहीं है। ग्रहण के समय भगवत भजन जप करना प्रभावकारी सिद्ध होगा। चंद्र ग्रहण या सूर्य ग्रहण चाहे दिन हो या रात हो दान प्रशस्त माना गया है --
चंद्रग्रहे तथा रात्रों स्नानं दानं प्रशस्यते।।
गर्भवती स्त्री के लिए विशेष: अगर जिन विदुषी महिलाओं के शिशु उदर में हो, उन्हें धारदार चाकू, छुरी आदि से फल, सब्जी, वृक्ष की डाली इत्यादि नहीं काटना चाहिए। साड़ी के पल्लू को गैरों से रंग कर बैठने से गर्भस्थ शिशु ग्रहण के दुष्प्रभाव से सुरक्षित रहता है। ग्रहण का अवलोकन ना करें यह अच्छा माना जाएगा।
मकर राशि उत्तराषाढ़ा अभिजीत नक्षत्र के चरण में जन्म लेने वाली महिलाओं को विशेष ध्यान रखना होगा।
याननक्षत्रगतो राहूर्ग्रस्तो शशिभास्करौ।
तज्ज़ातानां भवेतपीडा ये नरा: शांतिवर्जिता।।
यह ग्रहण मूल नक्षत्र धनु राशि में हो रहा है अतः इस राशि के नक्षत्र में जन्मे जातकों को कष्ट करेगा। वृष राशि, कन्या राशि वाले जातक भी परेशान रहेंगे। मेष, मिथुन, वृश्चिक वालों के लिए भी श्रेष्ठ नहीं, अतः इन्हें ग्रहण नहीं देखना चाहिए। दान करते रहना चाहिए, पुण्य की जड़ सदा हरी होती है।
सूर्य ग्रहण एवं लोक भविष्य:: यह सूर्य ग्रहण पौष अमावस्या बृहस्पतिवार को मूल नक्षत्र धनु राशि तथा वृद्धि योग कालीन घटित हो रहा है। ब्राह्मणों तथा क्षत्रिय के लिए शुभ नहीं है। पाकिस्तान के सिंध आदि प्रदेशों में उपद्रव आतंकी घटनाओं में विशेष वृद्धि होगी। कश्मीर,चीन, पाकिस्तान अफ़गानिस्तान तथा मुस्लिम राष्ट्रों में विशेष राजनीतिक उथल-पुथल के संकेत हैं। विश्व में वर्षा की कमी अर्थात अकाल जन्य परिस्थितियां बनेंगी। रुई, हल्दी के मूल्य में शीघ्र ही विशेष वृद्धि होगी। फलों के व्यापारियों, डॉक्टरों तथा दवा से संबंधित कार्य करने वालों को कष्ट पीड़ा पहुंचे।

ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से...