Wednesday, March 25, 2020

बृहस्पति का राशि परिवर्तन 30 मार्च 2020

बृहस्पति का राशि परिवर्तन 30 मार्च 2020

गुरु सभी ग्रहों में सबसे प्रधान ग्रह माना जाता है। यदि कुंडली में गुरु अशुभ भाव में स्थित हो तब भी गुरु गोचर के समय जातक को शुभ परिणामों की प्राप्ति हो सकती है।

राशियों में विशेष रूप से गुरु धनु और मीन राशि का स्वामी है। ये मकर में नीच के तथा कर्क में उच्च के होते हैं। एक राशि चक्र को पूरा करने में इसे 13 महीने लगते हैं।

 गुरु पुनर्वसु, विशाखा और पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र का भी स्वामी है।

गुरु बृहस्पति साल 2020 में 30 मार्च की सुबह 03.50 को उत्तराषणा के दूसरे चरण में मकर राशि में गोचर करेंगे।

30 मार्च 2020 से 30 जून 2020 सुबह 05.25 मिनट में उत्तराषाण के प्रथम चरण तक गुरु मकर राशि में रहेगा।

30 जून 2020 को धनु राशि में उत्तराषाण के प्रथम चरण में फिर से प्रस्थान करेगा।

 गुरु 20 नवंबर 2020 को फिर से मकर राशि में गोचर करेगा और साल के अंत तक इसी राशि में स्थित रहेगा।

गुरु का आगमन शनि की राशि ( मकर - गुरु की नीच राशि ) में होगा ये नीच भांग राज योग बनाएगा, अपने आप सब कुछ शांत होने की स्थिति में आ जायेगा क्योंकि गुरु की उच्च दृष्टि कर्क राशि पर होगी तथा वृष और कन्या राशि पर होगी, तीनो की राशियों पर अच्छे परिणाम देखने को मिलेंगे।

मेडिकल ज्योतिष में कर्क राशि जो चंद्रमा की राशि है, जब गुरु की उच्च दृष्टि कर्क राशि पर होगी तब श्वेत रक्त कणिका का निर्माण होने लगेगा तथा रोग प्रतिरोधक छमता बढ़ जाएगी जिससे रोग से लड़ने की शक्ति मिल जाएगी।

जीवन में सभी प्रकार के सुख और सुविधाओं का कारक तथा भौतिक सुखों का प्रदाता शुक्र ग्रह 28 मार्च 2020 शनिवार की दोपहर 03:38 बजे कृतिका नक्षत्र के 2 चरण में अपनी स्वराशि वृषभ राशि में प्रवेश करेगा।

भारत वर्ष की पत्री वृषभ लग्न की है। अतः लग्नेश लग्न में आने से चल रही स्थितियों में कुछ सुधार संभव हो सकेगा।

वैसाख  (9 अप्रैल 2020 से 7 मई 2020) के माह में मकर के मंगल गुरु शनि योग के कारण सर्प योग का प्रभाव बने। नव पंचम योग के प्रभाव में प्राकृतिक आपदा, रोग शोक की बहुलता हो, विग्रह एवं युद्ध पात के योग बने।

ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से

व्रतोत्सव तिथि पत्रिका


व्रतोत्सव तिथि पत्रिका



कलश स्थापना मुहूर्त: सूर्योदय से 9 बजे तक लाभ एवं अमृत चौघड़िया मुहूर्त।



हन्ता वायरस ज़्यादा नहीं फैलेगा क्योंकि ये चूहों से होता है। बुध के स्वामी गणेश जी का वाहन।

हन्ता वायरस ज़्यादा नहीं फैलेगा क्योंकि ये चूहों से होता है। बुध के स्वामी गणेश जी का वाहन।

 बुध की अनुपस्थिति में राहु का प्रकोप है। मंगल अलग हो गए हैं ये नहीं फैलेगा इसकी वैक्सीन भी उनके पास है।

बुध राजा है इस वर्ष के। ऐसा देखा गया है कि बुद्ध स्वयं कभी दंड नहीं देते उनकी जगह राहु को ये काम मिल हुआ है, क्योंकि बुध और राहु को एक ही दिन एडजस्ट किया गया है।

ये रोग अधिक नहीं फैलेगा क्योंकि मंगल राम जी की सेवा करने के बाद राम राज्य लाने की ओर अग्रसर हो गए हैं।

कल माँ का ध्यान कर पूजा पाठ आरम्भ कीजिये।  29 मार्च को गुरुदेव को प्रणाम कीजिये क्योंकि अब वही इस सृष्टि में शांति स्थापित करेंगे।

ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से

कलश स्थापना मुहूर्त : सूर्योदय से 9 बजे तक लाभ एवं अमृत चौघड़िया मुहूर्त।

कलश स्थापना मुहूर्त:

सूर्योदय से 9 बजे तक लाभ एवं अमृत चौघड़िया मुहूर्त।

 स्थिर लग्न सुबह 08:40 से 10:30 तक।

स्थिर लग्न एवं अमृत चौघड़िया : सुबह 08:40 से 9 बजे तक अत्यंत शुभ मुहूर्त्त है।

अभिजीत मुहूर्त्त दिन में 11:35 से 12:23 बजे तक। परंतु राहु काल 12 बजे से 1:30 बजे तक है।

अत्यंत शुभ मुहूर्त्त दिन में 11:35 से 12 बजे तक होगा।

 कलश स्थापना का श्रेष्ठ मुहूर्त्त :- सुबह 08:40 से 9 बजे तक। एवं दिन में 11:35 से 12 बजे तक ।

Monday, March 23, 2020

कल (२2 मार्च ) रात से मंगल शनि की युति अंगारक योग बनाएगी।

कल (२2 मार्च ) रात से मंगल शनि की युति अंगारक योग बनाएगी।

कल (२2 मार्च ) रात से मंगल शनि की युति अंगारक योग बनाएगी। 29 मार्च तक बहुत खराब स्थिति रहेगी। 29 मार्च को गुरु के प्रवेश के साथ ही शुभता आनी शुरू हो जाएगी। इन दिनों में बहुत ध्यान से रहने की ज़रूरत होगी।

25 मार्च से 29 मार्च के बीच मे ही कोई दवाई बन जाएगी क्योंकि 29 मार्च से गुरु की स्थिति सब कुछ सही करने वाली होगी।

देव गुरु बृहस्पति खुद को कष्ट देकर विश्व मे संतुलन बनाने के लिए 29 मार्च से 29 जून मकर में रहकर से कुछ सही कर देंगे। निश्चित ही मोदी जी को यश लाभ होगा।

गुरु की सीधी दृष्टि वृष, कर्क तथा कन्या राशि पर होगी। गुरु की उच्च दृष्टि कर्क में होने के कारण शरीर मे श्वेत रक्त कणिकाओं का बनना शुरू हो जाएगा। चंद्र को श्वेत रक्त कनिका का कारक बताया गया है। इन तीनो राशियों पर किसी पाप ग्रह की दृष्टि न होने से तीनो राशियों के जातकों का कल्याण निश्चित होगा व आर्थिक, शारीरिक, मानसिक रूप से स्वास्थ्य होंगे।

ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से

ईश्वर की कृपा प्राप्त करने का सबसे सरल उपाय मौन साधना है । किसी भी तरह की मौन साधना में पदार्थो की आवश्यकता नहीं होती है।

ईश्वर की कृपा प्राप्त करने का सबसे सरल उपाय मौन साधना है । किसी भी तरह की  मौन साधना में पदार्थो की आवश्यकता नहीं होती है।

 ऐसे ऋतु परिवर्तन के समय ईश्वर के समीप बढ़ने से आत्मा के प्रति परमात्मा की जो सन्देश ध्वनियां आती हैं, उन्हें मन और वाणी से मौन होकर ही सुना जा सकता है।

नवरात्रि मुख्यतः साधना का महापर्व है और इन दिनों चुप रहकर, अंतर्मुखी होकर साधक परमात्मा के प्रकाश को ग्रहण कर सकता है। ईश्वरीय कृपा मौन रहने से मिलती है।

प्रत्यक्षम किम प्रमाणं के आधार पर स्वयं करके देख सकते हैं।

भगवती की साधना में जप तथा मौन साधना विशेष है जिसमे वाह्य इन्द्रियों के साथ अंतः इन्द्रियों का भी शुद्धिकरण हो जाता है जिससे पूरे वर्ष साधक आर्थिक, मानसिक तथा शारीरिक रूप से समृद्धि देखे गए हैं।

पूजा की विधि:

भगवती की पूजा में किसी वाह्य वस्तु की आवश्यकता ही नहीं। भगवती की फ़ोटो के सामने देसी घी का दिया जलाकर किसी कलश में चावल जौ डालकर उसके ऊपर दीपक रखकर भगवती को ध्यान के माध्यम से बुलाए।

पुष्प की जगह चावल का प्रयोग कीजिये, चुन्नी की जगह कलावा का प्रयोग होता है।

साधना के समय दिया जलता रहे तथा आंख बंद करके भगवती को ध्यान स्वरूप में सभी वस्तुए चढ़ाये।

कोई संशय न रखते हुए 10 माला दुर्गा जी के नवार्ण मंत्र (ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे :) की कीजिये आप खुद ही अनुभव कर लेंगे।

सामग्री में हवन में चीनी या बुरा का प्रयोग हो सकता है। पुष्प की जगह चावल का प्रयोग, चुन्नी की जगह कलावा तथा प्राण प्रतिष्ठा में देसी घी के दिये का प्रयोग किया जा सकता है।

ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से

Sunday, March 22, 2020

चैत्र नवरात्रि 25 मार्च 2020 - रेवती नक्षत्र और ब्रह्म योग में नवरात्रि का आरंभ

चैत्र नवरात्रि 25 मार्च 2020

रेवती नक्षत्र और ब्रह्म योग में नवरात्रि का आरंभ

इस बार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी 25 मार्च 2020 से विक्रम नवसंत्सवर 2077 का प्रारंभ रेवती नक्षत्र में होगा। इस प्रकार से देखें तो चैत्र नवरात्रि और हिन्दू नववर्ष का प्रारंभ एक ही दिन हो रहा है।

इस वर्ष चैत्र नवरात्रि 25 मार्च से प्रारंभ होकर 02 अप्रैल तक रहेगी। 02 अप्रैल को नवमी ति​थि होगी। 03 अप्रैल को दशमी के साथ नवरात्रि का पारण होगा।

प्रमादी नामक संवत्सर (संवत 2077) / आनंद नामक संवत्सर ( 6 अप्रैल 2020 से प्रारंभ )

बुधवार से नव संवत्सर का प्रारंभ होने के कारण आगामी वर्ष का राजा भी बुद्ध होगा। प्रमादी  नामक संवत्सर का आरंभ गत वर्ष 10 अप्रैल 2019 ईस्वी को हो चुका है, तथा आगामी आनंद नामक संवत्सर भी लगभग 6 अप्रैल 2020 से प्रारंभ हो जाएगा।  प्रमादी नामक संवत्सर का प्रयोग वर्ष पर्यंत तक रहेगा। धार्मिक, कर्मकांडी विद्वान 6 अप्रैल 2020 से अप्रैल 2020 के बाद प्रमादी नामक संवत्सर का उच्चारण करने के बाद परम वर्तमाने आनंद नाम संवत्सरे का प्रयोग भी कर सकते हैं।

प्रमादी नामक संवत्सर 2077 गत वर्ष गत वर्ष अमावस्या की समाप्ति 24 मार्च मंगलवार को दोपहर 2:58 पर कर्क लग्न में प्रवेश करेगा, परंतु शास्त्र के नियम के अनुसार नववर्ष संवत 2077 तथा चैत्र बसंत नवरात्रों का राजा 25 मार्च बुधवार रेवती नक्षत्र ( पंचक नक्षत्र ) में होगा।  वर्ष का राजा बुध तथा मंत्री चंद्र होगा।

 प्रमादी नामक संवत्सर का फल शास्त्रों में इस प्रकार वर्णित है -

 *निष्पति: सर्व सस्यानां रसानां च महर्घता।
मरकस्य भयं विद्यात प्रमादिति हि वत्सरे*

प्रमादी नामक संवत्सर में सभी प्रकार के धान, फसलों अनाज का उत्पादन होगा।  सब रस आदि पदार्थ गुड़, चीनी आदि के मूल्य वृद्धि होगी। प्रजा सुखी हो आषाढ़ मास में वर्षा कम हो भाद्रपद में वर्षा अधिक होगी। धान में 3 गुना तक लाभ तथा विशेष मूल्य वृद्धि होगी परंतु कुछ क्षेत्र में उपद्रव राजनीतिक एवं जाति हिंसा के कारण भय का वातावरण उपस्थित होगा।

संवत्सर का वाहन:

 संवत 2077 का राजा बुध होने से संवत का वाहन गीदड़ होने से देश के विभिन्न भागों विशेषकर दक्षिण उत्तरी प्रांतों में शासन परिवर्तन विग्रह तथा राजनीतिक उथल-पुथल होगी राजनीतिक अस्थिरता बने कहीं खाद्यान्न की कमी रहे, और उसके मूल्य में तेजी हो। प्रजा में क्लेश तथा आर्थिक परेशानियां बढ़े। कुछ विद्वान राजा बुध के होने से संवत का राजा झूला या सियार को मानते हैं।

सियार वाहन होने से पृथ्वी पर हाहाकार हो जाता है। बहुत स्थानों पर भयानक सूखा, अकाल जन्म परिस्थितियां बनेंगी विभिन्न देशों में टुकड़ों में थोड़े थोड़े समय के बाद टकराव और युद्ध होता रहेगा।

ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से

Saturday, March 21, 2020

कोरोनो वायरस के आगमन के तथा निगमन के प्रमुख योग

कोरोनो वायरस के आगमन के तथा निगमन के प्रमुख योग :

संक्षेप व्याख्या :

 सूर्य का गुरु की मीन राशि का गोचर जिसमे सूर्य निस्तेज हो जाते हैं

उच्च के राहु की मंगल से सीधी दृष्टि भयानक रोग (कैंसर), अति वृष्टि तथा विनाशकारक होती है या प्रकार भी प्रकार से प्रकृति में जहर घोलने का काम करती है। कोई भी वायरस राहु के अन्तर्गत आता है मंगल के साथ मिलकर से उसे अधिकतम विनाशकारी बना देता है।

जैसे ही 22 मार्च की रात को मंगल राहु के सामने से हटेगा वैसे ही इनकी बढ़ोत्तरी का प्रभाव कुछ कम होने पर आएगा पर मंगल शनि के साथ अंगारक योग बनाकर मानवीय चिंता तथा अधिक नुकसान होने के योग बना देगा।

मंगल का राहु के सामने से हटना इस वायरस को कम तो करने में सहायक होगा पर ध्यान से रखा जाए कि जो लोग इससे संक्रमित हैं उन पर ध्यान दिया जाए।

जैसे ही गुरु का आगमन शनि की राशि ( मकर - गुरु की नीच राशि ) में होगा ये नीच भांग राज योग बनाएगा, अपने आप सब कुछ शांत होने की स्थिति में आ जायेगा क्योंकि गुरु की उच्च दृष्टि कर्क राशि पर होगी तथा वृष और कन्या राशि पर होगी, तीनो की राशियों पर अच्छे परिणाम देखने को मिलेंगे।

ये कह सकते हैं कि प्रकृति के अनुशासन को बनाये रखने के लिए 3 महीने वो खुद कष्ट में रखकर सब संतुलन कर देंगे। याद रहे जैसे ही गुरु जी वापस अपनी धनु राशि मे जाएंगे तक तक सब सही हो चुका होगा

सूर्य जैसे ही उच्चाभिलाषी होगा तभी से सरकार के कंट्रोल में सारी स्थिति आ जाएंगी। 14 अप्रैल को जैसे ही सूर्य उच्च राशि (मेष ) का होगा वैसे ही राहु का असर कुछ कम हो जाएगा।

22 मार्च से जब मंगल शनि की राशि मे प्रवेश करेगा ये युति महामारी के साथ कोई अप्रिय घटना भी ला सकती है। इसमें प्राकृतिक आपदा तथा जान माल के संकेत भी होने चाहिए। 29 मार्च को गुरु देव अमंगल को मंगल में बदल देंगे ये भी तय है।

4 मई को जैसे ही मंगल शनि की युति टूटेगी वैसे ही सब चीज़े अच्चानक से नार्मल होनी शुरू हो जाएंगी , ये महामारी जैसे आयी है वैसे ही झटके से निकल जायेगी।

तब तक सावधानी से रहे। सरकार के दिये हुए निर्देश माने। स्वयं की सेवा करते हुए राष्ट्र की सेवा करे।

ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से

सेनेटाइजर"की विधि

सेनेटाइजर"की विधि

सेनेटाइजर"की विधि
तो विधि इस प्रकार है.....
1 लीटर स्प्रिट (कीमत 110 रुपए)
200 ml ग्लिसरीन (60 रुपए)
एक ढक्कन डिटोल का....
महक चाहिए तो आपका पसंदीदा कोई भी इत्र चल जाएगा....
पहले  स्प्रिट व ग्लिसरीन को मिलाइये....
फिर डिटोल मिला दीजिए...
फिर यदि महक चाहिए तो इत्र मिला दीजिए
आपका सेनिटाइजर तैयार हो जाएगा...
मात्र 200 रुपए के आस-पास आपका 1200 ml सेनिटाइजर तैयार हो जाएगा....
जबकि बाजार में 100 ml का  सेनिटाइजर 100 से 150 रुपए तक मे बिक रहा है.....

✔हम लोग  "फिटकरी"से सेनेटाइजर बना सकते है...
1 लीटर पानी मे 100ग्राम "फिटकरी" डाल 1 ढक्कन "डिटोल",
गाड़ा करने के लिए "ग्लिसरीन"या "एलुविरा" मिलाकर भी "सेनिटाइजर"बना सकते है.....

कॅरोना वायरस ( उत्पत्ति तथा विस्तार )

कॅरोना वायरस ( उत्पत्ति तथा विस्तार )

राहु तथा मंगल का दृष्टि संबंध होने के कारण इस तरह का विषाणु फैला है, यहाँ राहु धुंए का आवरण है और मंगल की दृष्टि अंगारक योग का निर्माण करती है।

आने वाले 22 मार्च को पिछले 40 दिनों से राहु , केतु , बृहस्पति , मंगल ग्रहों के कारण बने अशुभ योग के कारण विभिन्न प्रकार से आई मुशीबत एवं कोरोना विषाणु के  कारण दुनिया पर बरस रहे कहर के अब कम होने की शुरुआत हो जाएंगी ।

22 मार्च को मंगल धनु राशि से अपनी उच्च राशि मकर पर आ जायेगा एवं  30 मार्च को देव गुरु बृहस्पति अपनी नीच राशि मकर पर आ जायेंगे । शनि 24 जनवरी से ही अपनी राशि मकर पर है ।
अतः शनि , मंगल , बृहस्पति ग्रह का यह योग भी देश एवं दुनिया के लिए आने दिनों में कुछ दुर्घटनाओं एवं रोगों और कोरोना महामारी के चलने के संकेत दे रहे है । लेकिन 22 मार्च के बाद कोरोना वायरस का प्रभाव बहुत तेजी से कम होगा ।
वर्तमान योग में राहु एवं केतु बेहद तेजी से एवं लगातार इस रोग को बड़ा रहे है ।

22 मार्च के बाद कोरोना वायरस का कहर थम जायेगा । 22 मार्च को मंगल राहु से युति संबंध विच्छेद होने पर इसका असर कम होना शुरू होगा। जैसे जैसे सूर्य अपनी उच्चाभिलाषी होगा वैसे ही सरकार  हर तरह से व्यवस्था बनाने में सक्षम होगी।

29 मार्च को नीच के गुरु की उच्च अवस्था मे दृष्टि पड़ने से सभी चीज़ों में सुधार आना शुरू हो जाएगा।

मकर के गुरु मकर के शनि के साथ मिलकर नीच भांग राजयोग बनाएगा जो कि कल्याणकारी सिद्ध होगा।

अप्रैल में जब शुक्र अपनी राशि वृष में सूर्य उच्च राशि मेष में, गुरु शनि नीच भंग राशि योग होने पर 28 अप्रैल के बाद स्थिति में सुधार आने के योग बनेंगे।

प्रमादी संवत्सर से आनंद संवत्सर में प्रवेश निश्चित ही शुभ होगा।

ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से

Monday, March 16, 2020

कालसर्प योग / सर्प योग- पालक या संघारक

कालसर्प योग / सर्प योग- पालक या संघारक

 वास्तव में राहु केतु छाया ग्रह हैं उनकी अपनी और दृष्टि नहीं है,  राहु का जन्म नक्षत्र भरणी, तथा केतु का नक्षत्र अश्लेषा कहा गया है।

राहु के जन्म नक्षत्र भरनी के देवता काल और केतु के जन्म नक्षत्र आश्लेषा के देवता सर्प हैं अतः इसी से इसे सर्प शाप के कारण नाम को बदल कर काल सर्प कर दिया गया है जबकि पुराने किसी भी शास्त्र में काल सर्प योग नाम का कोई शब्द नहीं सर्प योग है।

 बृहत पाराशर होरा शास्त्रम ग्रंथ के पूर्वजन्म शापद्योतकध्याय: अध्याय में सर्प योग, अनापत्त योग, पित्र शाप आदि सभी शापो के बारे में विस्तृत जानकारी देकर उनसे होने वाली परिणामों के निवारण एवं उपाय भी बताए हैं।

 वराह मिहिर ने अपनी संहिता में जातक नभ संयोग में सर्प का उल्लेख किया है जबकि काल सर्प योग का नाम ही नहीं है।

 महर्षि पाराशर एवं वराहमिहिर ने प्राचीन ज्योतिष आचार्यों ने सर्प योग को माना है और अपने ग्रंथों में इसका जिक्र किया है।

ये काल सर्प योग आधुनिक विद्वानों द्वारा बनाया बदला हुआ सर्प योग ही है। ये शब्द कुछ ही वर्षो पहले अवतरित हुआ है जबकि सर्प योग हमेशा से ही है।

काल सर्प योग को मीडिया आदि दूसरे माध्यम से इतना महिमा मंडित करके बताया गया है जिससे कली काल मे दुखी जातक और दुखी हो जाये।

सर्प दोष की शांति हमेशा से ही हुई है पर काल सर्प योग नाम ही इतना खतरनाक है जिससे जातक डर से अपना आत्म विश्वर भी खो देता है।

 महर्षि पराशर, भृगु, कल्याण बर्मा, बादरायण, गर्ग, मणिप्त आदि ने सर्प योग सिद्ध किया है।

काम रत्न के अध्याय 14 के श्लोक 41 में राहु को काल कहा गया है।  श्लोक 50 में आगे लिखा हुआ है, काल अर्थात मृत्यु।

 मानसागरी के चौथे अध्याय (4) का दसवां(10) श्लोक कहता है -  शनि, सूर्य और राहु जन्मांग में लग्न में सप्तम भाव में होने पर सर्पदंश होता है।

 हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथों में राहु के देवता काल अवधि देवता माना गया है, किसी भी ग्रह की पूजा के लिए उस ग्रह के देवता तथा प्रत्याशी देवता का पूजन अनिवार्य है।

राहु के गुण अवगुण शनि जैसे हैं। शनि आध्यात्मिक चिंतन, दीर्घ विचार एवं गणित के साथ आगे बढ़ने का गुण अपने पास रखता है।

राहु मिथुन राशि में उच्च का, धनु राशि में नीच का और कन्या राशि में शुभ होता है।
शनि बुध राहु के मित्र हैं तथा गुरु सैम ग्रह है।

आधुनिक विद्वानों ने ज्योतिष शास्त्र में संशोधन करने वाले आचार्य ने सर्प का मुँह राहु और पूंछ केतु इन दोनों के बीच में सभी ग्रह रहने पर निर्माण होने वाली ग्रह स्थिति को कालसर्प योग कहा है। यह कालसर्प योग मूल सर्प योग का प्रतिरूप है।

इनमे से कुछ विशेष लोगो की जन्मपत्री में काल सर्प योग / सर्प योग है, इसका ज्ञान आज कल के ब्राह्मणों को भी कम ही दिखता है -

 अब्राहम लिंकन एवं पंडित जवाहरलाल नेहरू के उदाहरण हैं, दोनो महानुभावों का जन्म इसी सर्प योग में हुआ है।

चतुर्थ,अष्टम, द्वादश स्थान में राहु और कुंडली में कालसर्प योग हो तो नकारात्मक होगा।

रिलायंस इंडस्ट्रीज के उद्योगपति धीरुभाई अंबानी का जन्म पत्री ने 18 वर्षों में ही धीरुभाई को शून्य से ब्रह्मांड तक प्राप्त करा दिया। इन दोनों दशकों से राहु ने उन्हें खूब दिया।

देश के चर्चित लोगो की पत्री में सर्प योग रहा है, श्री जवाहरलाल नेहरू जी, श्री मोरारजी देसाई जी की पत्री में सर्प योग है। महाराष्ट्र के भूतपूर्व मुख्यमंत्री श्री अब्दुल रहमान अंतुले, भूत पूर्व प्रधानमंत्री श्री चंद्रशेखर जी, आचार्य रजनीश (ओशो), सुर सम्राट श्रीमती लता मंगेशकर जी, राम कथा वाचक श्री मुरारी बापू जी तथा महानायक श्री अमिताभ बच्चन जी की जन्मपत्री में कालसर्प योग है।

बहुत से ऐसे लोग हैं जिनकी पत्री में सर्प योग रहा है, ये भी कहा जा सकता है कि राहु जातक से इतनी तपस्या, साधना करवाकर उन्हें बुलंदिया तक पहुचने में सक्षम है। जिनके भी नाम ऊपर लिखे हैं उन्होंने इतिहास लिखे हैं जिसमे संशय नहीं।

जन्मांग के चतुर्थ भाव में राहु ने हर्षद मेहता  मटियामेट कर दिया। राहु की महादशा में शुक्र का समय उनके लिए सर्वोत्तम फलदाई रहा, किंतु सूर्य की अंतर्दशा शुरू होते ही राहु केतु का गोचर भ्रमण शुरू होते ही उनकी धरपकड़ मजबूत हुई, और उनके सभी रहस्यों का पर्दाफाश हो गया।

 वराह मिहिर में अपने संहिता के जातक नभ संयोग में सर्प योग का उल्लेख किया है। कल्याण वर्मा ने अपनी बहुमूल्य रचना सारावली में सर्प योग की विषद व्याख्या की है।

 शांति रत्नम  ने सर्प योग को ना केवल मान्यता ही नहीं अपितु सर्प शांति को जातक के लिए परम शांति देने वाला बताया हैl

काल सर्प / सर्प योग के प्रकार

 सर्प योग 12 प्रकार के होते हैं, परंतु व्यावहारिक लक्षणों से पता चला है कि अलग-अलग लखनऊ में घटित होने के कारण अलग-अलग प्रकार के सर्प योग घटित होते हैं।  राहु की 12 भाव में 12 स्थितियों से 12 तरीके के सर्प योग बनते हैं।

*राहु केतु के मध्य सभी ग्रहों का आ जाना काल सर्प या सर्प योग कहलाता है। ये 2 प्रकार के भी हो सकते हैं।

1. खंडित काल सर्प योग
2. अखंडित काल सर्प योग

तथा 2 तरह से भाव स्पष्ट करते हैं -

1. उदित काल सर्प योग
2. अनुदित काल सर्प योग

इन सभी को देखकर ही निर्धारित किया जाएगा कि सर्प योग प्रभावी रहेगा भी या नहीं।*


राहु केतु विभिन्न भाव में स्थित होकर 12 प्रकार के कालसर्प दोष का निर्माण करते हैं। वैसे तो भारतीय ज्योतिष में 144 तरह का कालसर्प योग होता है किंतु 12 तरह के कालसर्प योग अति प्रसिद्ध है। शास्‍त्रों के अनुसार राहु और केतु 180 डिग्री में होते हैं और जब इन के मध्य में समस्त 7 ग्रह आ जाते हैं तो कालसर्प योग बनता है। आइए जानें कि इन 12 में से कौन सा कालसर्प दोष किस भाव में होता है।

1 अनंत कालसर्प योग

राहु लग्न में हो और केतु सप्तम भाव में स्थित हो तथा सभी अन्य ग्रह सप्तम से द्वादश, एकादशी, दशम, नवम, अष्टम और सप्तम में स्थित हो तो यह अनंत कालसर्प योग कहलाता है।

2 कुलिक कालसर्प योग

राहु द्वितीय भाव में तथा केतु अष्टम भाव में हो और सभी ग्रह इन दोनों ग्रहों के बीच में हो तो कुलिक नाम कालसर्प योग होगा। 
3 वासुकी कालसर्प योग

राहु तृतीय भाव में स्थित है तथा केतु नवम भाव में स्थित होकर जिस योग का निर्माण करते हैं तो वह दोष वासुकी कालसर्प दोष कहलाता है।

4 शंखपाल कालसर्प योग

राहु चतुर्थ भाव में तथा केतु दशम भाव में स्थित होकर अन्‍य ग्रहों के साथ जो निर्माण करते हैं तो वह कालसर्प दोष शंखपाल के नाम से जाना जाता है। 

5 पद्य कालसर्प योग

चतुर्थ स्‍थान पर दिए दोष के ऊपर का है पद्य कालसर्प दोष इसमें राहु पंचम भाव में तथा केतु एकादश भाव में साथ में एकादशी पंचांग 8 भाव में स्थित हो तथा इस बीच सारे ग्रह हों तो पद्म कालसर्प योग बनता है।

6 महापद्म कालसर्प योग

राहु छठे भाव में और केतु बारहवे भाव में और इसके बीच सारे ग्रह अवस्थित हों तो महापद्म कालसर्प योग बनता है।

7 तक्षक कालसर्प योग

जन्मपत्रिका के अनुसार राहु सप्तम भाव में तथा केतु लग्न में स्थित हो तो ऐसा कालसर्प दोष तक्षक कालसर्प दोष के नाम से जाना जाता है। 

8 कर्कोटक कालसर्प योग

केतु दूसरे स्थान में और राहु अष्टम स्थान में कर्कोटक नाम कालसर्प योग बनता है।

9 शंखचूड़ कालसर्प योग

सर्प दोष जन्मपत्रिका में केतु तीसरे स्थान में व राहु नवम स्थान में हो तो शंखचूड़ नामक कालसर्प योग बनता है।

10 घातक कालसर्प योग

कुंडली में दशम भाव में स्थित राहु और चतुर्थ भाव में स्थित केतु जब कालसर्प योग का र्निमाण करता है तो ऐसा कालसर्प दोष घातक कालसर्प दोष कहलाता है। 

11 विषधर कालसर्प योग

केतु पंचम और राहु ग्यारहवे भाव में हो तो विषधर कालसर्प योग बनाते हैं।

12 शेषनाग कालसर्प योग

कुंडली में राहु द्वादश स्थान में तथा केतु छठे स्थान में हो तथा शेष 7 ग्रह नक्षत्र चतुर्थ तृतीय और प्रथम स्थान में हो तो शेषनाग कालसर्प दोष का निर्माण होता  है।

काल सर्प योग / सर्प योग को अधिक अशुभ बनाने वाले महत्वपूर्ण योग निम्नलिखित हैं-

रवि - राहु युति या रवि - केतु युति  ग्रहण योग।
चंद्र - राहु युति चंद्र ग्रहण योग।
मंगल - राहु युति अंगारक योग।
बुध - राहु युति जड़त्व योग।
गुरु -  राहु युति चांडाल योग।
शनि - राहु युति नंदी योग एवं प्रेत योग बनाती है।

केंद्र में स्वग्रही या उच्च का गुरु, शुक्र, शनि, मंगल, रवि, चंद्र इनमें से कोई ग्रह स्वग्रही होकर उच्च का हो तो काल सर्प योग / सर्प योग भंग होता है। केंद्र में भद्र योग, बुधादित्य योग, लक्ष्मी योग, शश योग, मालव्य योग तथा पंच महापुरुषों में से कोई भी योग हो तो काल सर्प / सर्प योग भंग होता है l

उपाय एवं फल

 कहने का तात्पर्य है कि किसी भी तरह का पूजा-पाठ कभी निषेध नहीं जाता, वह उच्च फलदायक ही होता है। परंतु आधुनिक ज्योतिषी और विद्वानों ने कालसर्प योग के नाम को सर्प योग ना लिखकर  इतना डरावना बना दिया है कि लोग डरते और परेशान हो जाते हैं।

सर्प योग की शांति अति आवश्यक है ये सत्य है। याद रहे सर्प योग हमेशा प्रभावी नहीं रहता। जब कभी गोचर में सर्प योग बनता है तभी ये सक्रिय रहता है।

महादेव शिव का पूजन करने से सभी तरह के कुयोगों की शांति होती है क्योंकि शिव ने अपने मस्तक पर सर्प को स्थान दिया है। अतः तीन सावन लगातार शिवपूजन करके शिव का रुद्राभिषेक करने से तथा चौथे साल पूजन कराकर श्री हत्या हरण कुंड में स्नान करके एक सांप का चांदी का जोड़ा सहित गंगा में प्रवाहित कर ,पूर्ण कपड़ों से स्नान करके सारे कपड़े वहीं छोड़कर, कुछ भिखारियों को भोजन करने से सर्प योग के दुष्परिणामों को कम किया जा सकता है।

याद रहे ये दोष समाप्त नहीं किया जा सकता पर कुप्रभाव को कम किया जा सकता है।

राहु की शांति तथा चंद्रमा की शांति अति आवश्यक होगी अतः इनका दान जप भी श्रेष्ठ होगा।

गरीबो की सहायता करने से उनकी दवाई, भोजन दान देने से राहु शांत होते हैं। ये अचूक उपाय है।

 4 या 12 अमावस्या को गंगा स्नान कर तर्पण करने से पित्र दोष, गरीबो को भोजन कराने से, चिड़ियों को दाना खिलाने से अनेक तरह के इस तरह के कुयोगों में शांति आती है।

परिवार के किसी सदस्य की लंबी चल रही बीमारी को कुछ कम करने के लिए जातक के ऊपर से एक मुट्ठी बाजरा 7 बार उल्टा उतार कर चिड़ियों को खिला दीजिये क्योंकि वो ये ग्रहण करने में सक्षम है तथा दक्षिण दिशा की तरफ़ सरसो के तेल का दिया जलाने से बीमारी जाती रहती है।

गुरु संबंधी चीज़ों का दान करने से माता पिता के स्वास्थ्य संबंधी लाभ मिले तथा जिस जातक का पढ़ाई लिखाई में मन न लग रहा हो उन्हें पिता किसी गरीब बच्चे की पढ़ाई में सहयोग करे, परिणाम स्वरूप  जातक पढ़ाई शुरू कर देगा।

अधिक जानकारी के लिए जातक अपनी जन्मपत्री किसी ब्राह्मण को दिखाए तथा कुयोगों से बने अरिष्टों से बचे। इस तरह के किसी भी योग से डरने की आवश्यकता नहीं परन्तु शुभ कार्य करने की आवश्यकता है।

ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार
(एम0 ए0, एम0 बी0 ए0, पी0 एच0 डी0, शास्त्री ( ज्योतिष )

सोम शीतलाष्टमी तथा कालाष्टमी 16 मार्च 2020

होली के आठवें दिन बसौड़ा व्रत किया जाता है, जिसे शीतला अष्टमी व्रत भी कहा जाता है। सोमवार को ये तिथि होने पर अधिक शुभ फलदायी हो जाती है।
यह व्रत माता शीतला को समर्पित है। यह व्रत होली के आठवें दिन होता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, प्रति वर्ष शीतला अष्टमी का व्रत चैत्र माह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को होता है।

ज्योतिष शास्त्र में शीतला माता चर्म, खाल, चर्म संबंधी रोग जैसे फोड़े, फुंसी, दाने, चेचक से संबंधित होती हैं। बासोड़ा वाले दिन भगवती की पूजा का विधान है जिसमे माँ को नीम की पत्ती सफेद मिठाई का भोग लगाकर प्रसाद प्राप्त किया जाता है। इस विशेष दिन में पूजा पाठ करने से जातक चर्म संबंधी सभी बीमारियों से दूर रहता है।

इस बार 16 मार्च 2020 को सोम शीतलाष्टमी का व्रत और पूजन होगा।

सोम शीतलाष्टमी पर शीतला माँ की पूजा का मुहूर्त सुबह 6:46 बजे से शाम 06:48 बजे तक है।

 सोम शीतलाष्टमी का महत्व

अष्टमी के दिन पहले बनाये हुए बासी पकवान ही देवी को नैवेद्ध के रूप में समर्पित किए जाते हैं। इसके पीछे तर्क यह है कि इस समय से ही बसंत की विदाई होती है और ग्रीष्म का आगमन होता है, इसलिए अब यहां से आगे हमें बासी भोजन से परहेज करना चाहिए।


स्कंद पुराण में माता शीतला का वर्णन है,  उनके स्वरूप का वर्णन करते हुए बताया गया है कि माता शीतला अपने हाथों में कलश, सूप, झाडू और नीम के पत्ते धारण किए हुए हैं। वे गर्दभ की सवारी किए हुए हैं। शीतला माता के साथ ज्वरासुर ज्वर का दैत्य, हैजे की देवी, चौंसठ रोग, घेंटुकर्ण त्वचा रोग के देवता एवं रक्तवती देवी विराजमान होती हैं।

प्रातः जल्दी उठें और सूर्योदय से पहले स्नान करें। शीतलाष्टक का पाठ शुभकर रहे। प्रसाद में दही, राबड़ी, गुड़ और कई अन्य आवश्यक वस्तुएं शामिल करें। शाम को पूजा के बाद व्रत खोलें।

शीतलाष्टमी तथा कालाष्टमी पर भैरव उपासको के लिए भैरव पूजा मुहूर्त:

कालाष्टमी प्रारम्भ -  16 मार्च 2020 से सुबह 3 बजकर 19 मिनट से अगले दिन
कालाष्टमी समाप्त - 17 मार्च 2020 सुबह 2 बजकर 59 मिनट तक

ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से

Friday, March 13, 2020

14 मार्च से लग रहा है खरमास, बंद हो जाएंगे मांगलिक कार्य नहीं गूंजेगी शहनाई


खरमास (14 मार्च मीन संक्रांति 2020)

14 मार्च से लग रहा है खरमास, बंद हो जाएंगे मांगलिक कार्य नहीं गूंजेगी शहनाई

धनु एवं मीन राशि में सूर्य देव के प्रवेश करने से खरमास लगता है। इस वर्ष 14 मार्च दिन शनिवार को खरमास लग रहा है, जो एक माह तक रहेगा। इस दौरान कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किए जाएंगे। इस दौरान विवाह भी नहीं होगा। खरमास के समय आप को भगवान सूर्य और श्री हरि विष्णु की आराधना करनी चाहिए।

खरमास लगने का समय-

इस वर्ष मार्च में खरमास 14 मार्च को लगेगा। इस दिन दोपहर 02 बजकर 23 मिनट पर सूर्य देव मीन राशि में प्रवेश करेंगे। 14 मार्च 2020 से 13 अप्रैल तक खरमास रहेगा।

खरमास समाप्ति का समय-

इस वर्ष खरमास 14 मार्च से 13 अप्रैल तक है, जो एक माह के लिए रहेगा। 14 अप्रैल से विवाह, मुंडन, हवन, गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाएंगे।

वर्ष 2020 में विवाह के मुहूर्त-

★अप्रैल: चौथे माह में विवाह के लिए केवल 4 शुभ मुहूर्त है। 14, 15, 25 और 26।

★मई: इस माह में शादी के लिए कुल 16 मुहूर्त हैं। 1, 2, 3, 4, 6, 8, 9, 10, 11, 13, 17, 18, 19, 23, 24 और 25।

★जून: जून में विवाह के लिए विवाह के 9 मुहूर्त हैं। 13, 14, 15, 25, 26, 27, 28, 29 और 30।

★नवंबर: साल के 11वें माह में विवाह के केवल 3 मुहूर्त हैं। 26, 29 और 30।

दिसंबर: साल 2020 के आखिरी माह में विवाह के 8 मुहूर्त हैं। 1, 2, 6, 7, 8, 9, 10 और 11।

खरमास में क्या न करें:

जब भी हम कोई मांगलिक कार्य करते हैं तो उसके फलित होने के लिए गुरु का प्रबल होना जरूरी है। धनु एवं मीन बृहस्पति ग्रह की राशियां हैं। खरमास के समय सूर्य इन दोनों राशियों में होते हैं, इसलिए शुभ कार्य नहीं होते। खरमास में गृह प्रवेश, गृह निर्माण, नए बिजनेस का प्रारंभ, शादी, सगाई, वधू प्रवेश आदि जैसे मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए।

इस बार खरमास में नवरात्रि-

इस बार नवरात्रि का प्रारंभ खरमास में हो रहा है। चैत्र नवरात्रि 25 मार्च से प्रारंभ हो रही है। इस दिन कलश स्थापना के सा​थ मां दुर्गा की आराधना प्रारंभ होगी। चैत्र नवमी 02 अप्रैल को है।

ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से

Monday, March 9, 2020

499 साल बाद गुरु-शनि के दुर्लभ संयोग से घुलेंगे खुशियों के रंग

अमर उजाला नेटवर्क, बरेली Updated Fri, 06 Mar 2020 02:22 PM IST

प्रेम और हर्षोल्लास के पर्व होली पर अबकी बार ग्रह नक्षत्रों का कुछ ऐसा दुर्लभ संयोग बन रहा है, जो लोगों के जीवन में खुशियों के रंग घोलेगा। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक करीब 499 साल बाद इस साल होली के दिन गुरु और शनि अपनी-अपनी राशियों में रहेंगे। पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र और सिंह राशि में होलिका का दहन होगा। अबकी बार भद्रा की कोई बाधा नहीं रहेगी। नौ मार्च को होलिका दहन और दस मार्च को होली खेली जाएगी।
ज्योतिषाचार्य डॉ. सौरभ शंखधार के मुताबिक, 3 मार्च, 1521 के बाद इस वर्ष होली पर मकर राशि में शनि ग्रह और गुरु अपनी धनु राशि में रहेंगे, जिसके चलते 499 साल बाद होली पर यह शुभ संयोग रहेगा। बताया कि इस बार पूर्णिमा सोमवार को पड़ रही है। गुरु और शनि इस बार सूर्य के नक्षत्र में उतराषाढ़ा में रहेंगे।

पूर्णिमा सोमवार को पड़ने के कारण पूर्वा पर्व नक्षत्र के बाद उत्तरा पर्व नक्षत्र है। इसमें होलिका पड़ने से कार्य क्षेत्र में वृद्धि होगी, साथ ही सौम्य योग होने से किसानों के लिए होली अच्छी रहने के आसार हैं। बताया कि होलिका दहन के समय इस वर्ष भद्राकाल की बाधा नहीं रहेगी। फाल्गुन माह की पूर्णिमा यानी होलिका दहन के दिन भद्राकाल सुबह सूर्योदय से शुरू होकर दोपहर करीब डेढ़ बजे ही खत्म हो जाएगा। इस तरह शाम को प्रदोष काल में यानी शाम 6.22 से 8.49 बजे तक होलिका दहन किया जा सकेगा। पूर्णिमा तिथि रात 11 बजे तक रहेगी।
ध्वज, गजकेसरी योग का संयोग
ज्योतिषाचार्य शंखधार के अनुसार, सोमवार, चंद्रमा का दिन माना गया है। नौ मार्च को सोमवार और पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र से ध्वज योग रहेगा, जो सभी राशि के जातकों को यश/कीर्ति व विजय प्रदान करेगा। पूर्णिमा तिथि होने से चंद्रमा का प्रभाव रहेगा। स्वराशि स्थित गुरु की दृष्टि चंद्रमा पर रहेगी, इससे गजकेसरी योग का प्रभाव रहेगा। तिथि-नक्षत्र और ग्रहों की विशेष स्थिति में होलिका दहन पर रोग, शोक और दोष का नाश होगा।

ग्रहों की राशि संग युति भी शुभ
होली पर शुक्र मेष राशि में, मंगल और केतु धनु राशि में, राहु मिथुन में, सूर्य और बुध कुंभ राशि में, चंद्र सिंह में रहेगा। ग्रहों के इन योगों में होली आने से ये शुभ फल देने वाली रहेगी। इस प्रकार का यह योग देश में शांति स्थापित करवाने में सफल होगा। व्यापार के लिए हितकारी रहेगा और लोगों में टकराव समाप्त होगा।
होलिका शुभ मुहूर्त
दहन: शाम 6.22 बजे से रात 8.49 बजे तक
भद्रा पूंछ - सुबह 9.37 बजे से 10.38 बजे तक
भद्रा मुख - सुबह 10.38 बजे से दोपहर 12.19 बजे तक
पूर्णिमा तिथि - सुबह 3.03 बजे से रात 11.16 बजे तक 

गुरू शनि के दुर्लभ संजोग से घुले खुशियों के रंग

गुरू शनि के दुर्लभ संजोग से  घुले खुशियों के रंग...

फाल्गुन मास पर्व - होली 9 मार्च 2020

होली पर 2 तरह के पर्व:

१. आध्यात्मिक साधनाओ के लिए विशेष

२. रंगों का त्योहार

१. आध्यात्मिक साधनाओ के लिए विशेष:
होलिका वास्तव में एक वैदिक यज्ञ है।
वैदिक यज्ञों में सोमयज्ञ सर्वोपरि है। वैदिक काल में प्रचुरता से उपलब्ध सोम लता का रस निचोड़ कर उससे जो यज्ञ संपन्न किए जाते थे वे सोमयज्ञ कहलाए।

 ब्राह्मण ग्रंथों में इसके अनेक विकल्प दिए हुए हैं जिनमें पूतीक, अर्जुन वृक्ष मुख्य हैं।

 अर्जुन वृक्ष को हृदय के लिए अत्यंत शक्तिप्रद माना गया, आयुर्वेद में अर्जुन की छाल हृदय रोग के निवारण के संदर्भ में प्रस्तुत है। महाराष्ट्र में सम्प्रति सोमयोग के अनुष्ठान में राषेर नामक वनस्पति का उल्लेख है।

 सोमरस इतना शक्ति वर्धक और उल्लास कारक होता है कि उसका पान कर वैदिक ऋषियों को अमरता जैसी अनुभूति प्राप्त हुई - 

अपाम सोमममृता अभूम(ऋग्वेद)

 होलिका में जलाए जाने वाली आग यज्ञ वेदी में निहित अग्नि का प्रतीक है। यज्ञ वेदी के समीप एक गुलर की टहनी गाड़ी जाती है क्योंकि गूलर का फल माधुर्य की दृष्टि से सर्वोपरि माना गया।

गूलर का फल मीठा होता है कि पकते ही इसमें कीड़े पड़ने लगते हैं। फागुन पूर्णिमा  की रात्रि तंत्र मंत्र विशेष साधना सीखने के लिए सर्वोत्तम हैं, कुछ साधको के जो लंबे समय से अनुष्ठान व तंत्र प्रयोग सीख रहे हैं उनके लिए आज पूर्णाहुति का विशेष योग है।

2. रंगो का त्योहार होली:

 इस पर्व को नवान्नेष्टि यज्ञ भी कहा गया। खेतों में नवीन अन्न को यज्ञ में हवन करके प्रसाद लेने की परंपरा है, इस अन्न को होलिकोत्सब कहते हैं।

 इसी से इसका नाम होलाष्टक पड़ा। होली का उत्सव मनाने के संबंध में अनेक मत प्रचलित हैं।

1. ऐसी मान्यता है कि इस पर्व का संबंध काम दहन से है, भगवान शंकर ने अपनी क्रोधाग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया था, तभी से यह त्यौहार का प्रचलन हुआ।

2. फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से पूर्णिमा पर्यंत आठ दिन होलाष्टक मनाया जाता है, भारत के कई प्रदेशों में होलाष्टक शुरू होने पर एक पेड़ की लकड़ी काटकर उसमें रंग बिरंगे कपड़े के टुकड़े बांधे जाते हैं इस शाखा को जमीन में गाड़ दिया जाता है।
 सभी लोग इसके नीचे होलिकोत्सव बनाते हैं।

 3. यह त्यौहार हिरणाकश्यप की बहन की स्मृति में मनाया जाता है, उनकी बहन होलिका वरदान के प्रभाव से अग्नि स्नान करती थी लेकिन जलती नहीं थी अपनी बहन से प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्निस्नान करने को इसलिए कहा गया कि प्रह्लाद जल जाएगा, और होलीका बच जाएगी। जिसमे होलीका जल गई और प्रह्लाद बच गए। इसी कारण त्यौहार  मनाने की प्रथा चल पड़ी।

4. इस दिन आम मंजरी और चंदन को मिलाकर खाने का बड़ा महत्व कहते हैं, जो लोग फाल्गुन पूर्णिमा पर एकाग्र चित्त से डोले में झूलते हुए श्री कृष्ण गोविंद के दर्शन करते हैं उनको निश्चय ही बैकुण्ठ लोक प्राप्त होता है।

9 मार्च को फाल्गुन पूर्णिमा पर होलिका दहन होगा और मंगलवार 10 मार्च को होली खेली जाएगी। सोमवार को होलिका दहन होना शुभ संयोग है।

499 साल के बाद बन रहा है। इस साल होली पर गुरु स्वराशि धनु और शनि स्वराशि मकर में रहने से विशेष योग बन रहा है।

 पहले इन दोनों ग्रहों का ऐसा योग 3 मार्च 1521 को बना था, तब भी ये दोनों ग्रह अपनी-अपनी राशि में ही थे।
 होली पर शुक्र मेष राशि में, मंगल और केतु धनु राशि में, राहु मिथुन में, सूर्य और बुध कुंभ राशि में, चंद्र सिंह में रहेगा।

 ग्रहों के इन योगों में होली आने से ये शुभ फल देने वाली रहेगी। इस प्रकार का यह योग देश में शांति स्थापित करवाने में सफल होगा। व्यापार के लिए हितकारी रहेगा और लोगों में टकराव समाप्त होगा।

 हर साल जब सूर्य कुंभ राशि में और चंद्र सिंह राशि में होता है, तब होली मनाई जाती है।

3 मार्च से शुरू हो गया है, पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से पूर्णिमा तक होलाष्टक रहता है। होलाष्टक में सभी तरह के शुभ कर्म वर्जित रहते हैं। इन दिनों में पूजा-पाठ और दान-पुण्य करने का विशेष महत्व है।

होलिका दहन मुहूर्त- 9 मार्च 2020 शाम 6 बजकर 22 मिनट से रात 8 बजकर 49 मिनट तक 18:22 से 20:49

भद्रा पूंछ- सुबह 9 बजकर 37 मिनट से 10 बजकर 38 मिनट तक

भद्रा मुख- 10 बजकर 38 मिनट से दोपहर 12 बजकर 19 मिनट तक

पूर्णिमा तिथि आरंभ- सुबह 3 बजकर 3 मिनट से (9 मार्च 2020)

पूर्णिमा तिथि समाप्त- रात 11 बजकर 16 मिनट तक (9 मार्च 2020)

ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से