Sunday, May 17, 2020

वक्री शनि गोचर 11 मई 2020

वक्री शनि गोचर 11 मई 2020...

वक्री गति:

 जब कोई ग्रह अपनी तेज गति के कारण किसी अन्य ग्रह को पीछे छोड़ देता है तो उसे अतिचारी कहा जाता है। जब कोई ग्रह अपनी धीमी गति के कारण पीछे की ओर खिसकता प्रतीत होता है तो उसे वक्री कहते हैं।

कोई भी ग्रह चाहें वक्री हो या फिर मार्गी, वह अपनी उच्च राशि में अच्छा फल देता है, जबकि नीच राशि में वह अशुभ फलकारी होता है।

शनि देव 11 मई 2020 को प्रातः 9:40 से 29 सितंबर 2020  10:40 तक स्वराशि मकर में वक्री होंगे।

परिणाम : न्यायिक व्यवस्था में सुधार, न्यायिक ढांचे का पुनर्गठन, सभी का कौशल सामने आएगा, व्यवहारिकता के साथ प्रेम बढ़ेगा।

राशि के हिसाब से परिवर्तन :

शनि की वक्री गति का प्रभाव कुछ राशियों ( मेष, वृष, मिथुन, तुला, धनु, मकर तथा कुम्भ राशि ) पर विशेष होगा।

कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक, मीन राशि पर सामान्य प्रभाव रहेगा। इन सभी राशियों के  जातक कृष्णाजी , शिवजी, हनुमान जी तथा भगवती की उपासना से शुभता प्राप्त करेंगे।

मेष राशि:

शनि के वक्री होने से कष्ट संभव। खर्च अधिक हो, स्वास्थ्य पर ध्यान दीजिए। मौन साधना श्रेष्ठ होगी, भगवती की साधना से सभी प्रकार सुख संभव।

वृष राशि:

 पारिवारिक कलेश बढ़ने के योग, वाणी पर गहरा संयम, नकारात्मकता न आने दे।
ध्यान कीजिये। सेवा करने से लाभ मिले। गणेश जी की साधना शुभ हो।

मिथुन राशि:

शनि की ढैय्या, शनि का वक्र गति परेशानी बढ़े, मानसिक तथा आर्थिक कष्ट संभव। बजरंग वाण के 11 पाठ कीजिये सभी प्रकार शुभता हो।

तुला राशि:

शनि की ढैय्या,  वक्री हो जाने से परेशानियों में बढ़े,  व्यापार में नुकसान संभव, मौन साधना लाभ प्रद हो, हनुमान जी चालीसा के 21 पाठ करे, शुभता होगी।

धनु राशि:

साढ़े साती का अंतिम चरण, पैरो में दर्द बढ़े। कठिन परिश्रम, लाभ कम। दुर्घटना के योग बने। भैरव जी की मानसिक पूजा करे।

मकर:

साढ़े साती के दूसरे चरण की शुरुआत, पेट संबंधी रोग, जीवनसाथी से मतभेद इत्यादि। शिव पूजा से सब कुछ अनुकूल बने।

कुंभ:

साढ़े साती के पहले चरण, शनि के वक्री होने से कुंभ राशि वालों को सावधान रहना होगा। पारिवारिक जीवन में समस्याएं, सोच समझकर कार्य करे। हनुमान जी की उपासना करें।

9 मई 2020 से 24 मई 2020 तक प्रकृति में काल सर्प योग बनने के कारण लाभ तथा हानि के योग भी बन सकते हैं।

ज्येष्ठ मास (8 मई से 5 जून 2020) तक 5 शुक्रवार होने से, 29 मई तक कालसर्प योग रहने से तथा गुरु शनि के योग से विश्व में युद्ध से वातावरण अशांत एवं  असमंजसता बढ़े।  दूध, तेल, जल, घी आदि दैनिक उपयोगी वस्तुओं में विशेष तेजी के योग बने।

मिथुन के राहु के प्रभाव के कारण दैवीय दुर्घटनाये जैसे भू स्खलन, जल द्वारा क्षति, आंधी ओले बिना समय बरसात का होना भी संभव हैं जो हानिकारक होगा।

ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से

गुरु वक्री तथा सूर्य संक्रांति 14 मई 2020 काल सर्प योग के साथ लगा पंचक:

गुरु वक्री तथा सूर्य संक्रांति 14 मई 2020 काल सर्प योग के साथ लगा पंचक:

 14 मई बुधवार से शुरू होगा पंचंक और साथ ही सूर्य करेंगे वृष संक्रान्ति।

चन्द्र ग्रह का धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण और शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद तथा रेवती नक्षत्र के चारों चरणों में भ्रमण काल पंचक काल कहलाता है।

 चन्द्र ग्रह का कुम्भ और मीन राशी में भ्रमण पंचंक को जन्म देता है।

पंचक में निषेध कार्य :

पंचक में तिनकों और काष्ठों के संग्रह से अग्निभय, चोरभय, रोगभय, राजभय एवं धनहानि संभव है।

पंचक तिथि प्रारंभ - 14 मई 2020 को सायं 07:22 से
पंचक तिथि समाप्त - 19 मई 2020 को सायं 07:54 तक

 14 मई को सूर्य वृष राशि में 5:33 बजे शाम को प्रवेश करेगा। वृष संक्रान्ति का पुण्य काल 14 मई को 10:19 बजे सुबह से शुरु होकर शाम 5:33 बजे शाम तक रहेगा।

सूर्य जब वृषभ राशि में संक्रमण करते हैं तो इसे वृष संक्रांति कहा जाता है इस दिन सूर्योदय से पहले किसी पवित्र नदी में स्नान और व्रत का विधान है इस दिन सूर्य देव की पूजा की जाती है। जहां सूर्य देव 15 जून तक रहेंगे। सूर्य का राशि परिवर्तन संक्रांति कहा जाता है।

 सूर्य के वृषभ राशि में प्रवेश के समय की कुंडली में सूर्य का शुभ ग्रहों बुध और शुक्र से युत होकर मंगल से दृष्ट होना दक्षिण भारत में मानसून पूर्व की अच्छी वर्षा का संकेत है।

 उत्तर भारत में मंगल और सूर्य के इस गोचर के प्रभाव से तापमान 14 मई के बाद तेज़ी से बढ़ेगा जिसके फलस्वरूप कई स्थानों पर व्यापारिक गतिविधियां तेज होंगी।

सोने-चांदी के रुख में तेजी आएगी और पानी की कमी से जनता त्रस्त हो सकती है।

14 मई से 8 जून तक गर्मी अपने प्रचंड रूप में दिखाएगी, दैवीय आपदा ( अति वृष्टि, भूकंप, सुनामी, चक्रवात) योग बनेंगे।

 सूर्य की वृषभ संक्राति में 25 मई से नौतपा शुरू हो रहा है। इस दिन सूर्य रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करेंगे। और यह नौतपा 8 जून तक चलेंगा।

बृहस्पति अपनी नीच राशि मकर में 14 मई 2020 से 8:02 शाम से निकाल से 13 सितंबर 2020 प्रातः काल 6:11 पर वक्री होंगे।

परिणाम: देश को वित्तीय सहायता मिले। गुरु तथा शनि की युति कुछ अशांति तथा धार्मिक समुदाय में विरोध हो। पुरानी कंपनी को पुनर्जीवित किया जाए।

9 मई 2020 से 24 मई 2020 तक प्रकृति में काल सर्प योग बनने के कारण लाभ तथा हानि के योग भी बन सकते हैं।

ज्येष्ठ मास (8 मई से 5 जून 2020) तक 5 शुक्रवार होने से, 29 मई तक कालसर्प योग रहने से तथा गुरु शनि के योग से विश्व में युद्ध से वातावरण अशांत एवं  असमंजसता बढ़े।  दूध, तेल, जल, घी आदि दैनिक उपयोगी वस्तुओं में विशेष तेजी के योग बने।

मिथुन के राहु के प्रभाव के कारण दैवीय दुर्घटनाये जैसे भू स्खलन, जल द्वारा क्षति, आंधी ओले बिना समय बरसात का होना भी संभव हैं जो हानिकारक होगा।

इन ग्रहों के वक्री होने से अप्रत्याशित लाभ तथा अप्रत्याशित हानि भी संभव हो सकती है।

ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से

मौन : जीवन मे साधना का प्रथम सोपान।

मौन : जीवन मे साधना का प्रथम सोपान।

अगर आप अपनी इच्छा से कुछ समय के लिए बोलना छोड़ दें, मौन धारण कर लें तो इससे आपको बहुत फायदे हो सकते हैं।

मौन के लाभ

मौन की शुरुआत जुबान के चुप होने से होती है। धीरे-धीरे जुबान के बाद आपका मन भी चुप हो जाता है। मन में चुप्पी जब गहराएगी तो आंखें, चेहरा और पूरा शरीर चुप और शांत होने लगेगा। तब आप इस संसार को नए सिरे से देखना शुरू कर पाएंगे। बिल्कुल उस तरह से जैसे कोई नवजात शिशु संसार को देखता है। जरूरी है कि मौन रहने के दौरान सिर्फ श्वांसों के आवागमन को ही महसूस करते हुए उसका आनंद लें। मौन से मन की शक्ति बढ़ती है। शक्तिशाली मन में किसी भी प्रकार का भय, क्रोध, चिंता और व्यग्रता नहीं रहती। मौन का अभ्यास करने से सभी प्रकार के मानसिक विकार समाप्त हो जाते हैं। आइये जानते हैं मौन के सात महत्वपूर्ण फायदों के बारे में।

संतुष्टि

कुछ न बोलना, यानि अपनी एक सुविधा से मुंह मोड़ना। जी हां, बोलना आपके लिए एक बहुत बड़ी सुविधा ही होती है। जो आपके मन में चल रहा होता है उसे आप तुरंत बोल देते हैं। लेकिन, मौन रहने से चीजें बिल्कुल बदल जाती हैं। मौन अभाव में भी खुश रहना सिखाता है।

अभिव्यक्ति

जब आप सिर्फ लिखकर बात कर सकते हैं तो आप सिर्फ वही लिखेंगे जो बहुत जरूरी होगा। कई बार आप बहुत बातें करके भी कम कह पाते हो। लेकिन ऐसे में आप सिर्फ कहते हो, बात नहीं करते। इस तरह से आप अपने आपको अच्छी तरह से व्यक्त कर सकते हैं।

प्रशंसा

हमारे बोल पाने की वजह से हमारा जीवन आसान हो जाता है, लेकिन जब आप मौन धारण करेंगे तब आपको ये अहसास होगा कि आप दूसरो पर कितना निर्भर हैं। मौन रहने से आप दूसरों को ध्यान से सुनते हैं। अपने परिवार, अपने दोस्तों को ध्यान से सुनना, उनकी प्रशंसा करना ही है।

ध्यान देना

जब आप बोल पाते हैं तो आपका फोन आपका ध्यान भटकाने का काम करता है। मौन आपको ध्यान भटकाने वाली चीजों से दूर करता है। इससे किसी एक चीज या बात पर ध्यान लगाना आसान हो जाता है।

विचार

शोर से विचारों का आकार बिगड़ सकता है। बाहर के शोर के लिए तो शायद हम कुछ नहीं कर सकते, लेकिन अपने द्वारा उत्पन्न शोर को मौन जरूर कर सकते हैं। मौन विचारों को आकार देने में हमारी मदद करता है। हर रोज अपने विचारों को बेहतर आकार देने के लिए मौन रहें।

प्रकृति

जब आप हर मौसम में मौन धारण करना शुरू कर देंगे तो आप जान पाएंगे कि बसंत में चलने वाली हवा और सर्दियों में चलने वाली हवा की आवाज भी अलग-अलग होती है। मौन हमें प्रकृति के करीब लाता है। मौन होकर बाहर टहलें। आप पाएंगे कि प्रकृति के पास आपको देने के लिए काफी कुछ है।

शरीर

मौन आपको आपके शरीर पर ध्यान देना सिखाता है। अपनी आंखें बंद करें और अपने आप से पूछें, "मुझे अपने हाथ में क्या महसूस हो रहा है?" अपने शरीर को महसूस करने से आपका अशांत मन भी शांत हो जाता है। शांत मन स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा होता है।

ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से

शनि छोड़ कुंभ राशि में आएंगे मंगल



राहु कालम

राहु कालम...

26 अप्रैल 2020 अक्षय तृतीया (अबूझ तिथि एवं स्वयं सिद्ध मुहूर्त)

26 अप्रैल 2020 अक्षय तृतीया (अबूझ तिथि एवं स्वयं सिद्ध मुहूर्त)...


26 अप्रैल 2020 अक्षय तृतीया (अबूझ तिथि एवं स्वयं सिद्ध मुहूर्त)

26 अप्रैल 2020 अक्षय तृतीया (अबूझ तिथि एवं स्वयं सिद्ध मुहूर्त)...

अक्षय तृतीया वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तिथि को मनाया जाता है।

इस साल 2020 में 26 अप्रैल रविवार के दिन अक्षय तृतीया का पर्व मनाया जाएगा।

 6 राजयोग के साथ कुछ विशेष शुभ योग :
इस साल 2020 में अक्षय तृतीया के दिन 6 राजयोग का मुहूर्त बन रहे हैं - इस दिन प्रात: काल में शश, रूचक, अमला, पर्वत , शंख और नीचभंग के राजयोग बन रहे हैं

अक्षय तृतीया पर सूर्य ( मेष )और चंद्र (वृष ) अपनी-अपनी उच्च राशि में रहते हैं

रविवार में रोहिणी मिलने से बना योग धाता योग सब प्रकार से मंगल दायक होगा।

जयासु संग्रामे बलोपयोगी कार्याणि सिद्धियति निमित्तानी ( अबूझ तिथि )

 रविवार में प्रातः 7:26 से 12:19 तक तीन चौघड़िया चर, लाभ, अमृत के वर्तमान रहेंगे जिसमें होने वाला कोई भी कार्य निष्फल नहीं होगा।

 मध्यान्ह काल अभिजीत मुहूर्त कर्क लग्न का समय 10:56 से 13:16 बजे तक होगा इसमें कोई भी काम निष्फल नहीं होगा।

 रोहिणी नक्षत्र 26 अप्रैल 2020 को रात्रि 10:55 तक रहेगा तथा शुक्ल की तृतीया तिथि दिन में 13:22 तक रहेगी

अक्षय तृतीया मुहूर्त :

- पूजा मुहूर्त- सुबह 5 :48 से दोपहर 1 :22 तक (26 अप्रैल 2020)

- तृतीया तिथि प्रारंभ- 11 बजकर 51 मिनट (25 अप्रैल 2020)

सोना चांदी खरीदने का मुहूर्त :

सुबह 05.48 से दोपहर 01.22 तक ( 26 अप्रैल 2020 )

- तृतीय तिथि समाप्त- दोपहर 1 बजकर 21 मिनट (26 अप्रैल 2020)

अक्षय तृतीया से जुड़ी प्रसिद्ध मान्यताएं-

अक्षय तृतीया से जुड़ी मान्यता के अनुसार सतयुग और त्रेतायुग की शुरुआत अक्षय तृतीया पर ही हुई थी।

अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान परशुराम भगवान का जन्म हुआ था।

अक्षय तृतीया पर मां गंगा का धरती पर आगमन हुआ था।

अक्षय तृतीया के दिन से वेद व्यास जी ने महाभारत ग्रंथ लिखना आरंभ किया।

बदरीनाथ धाम के कपाट भी अक्षय तृतीया के दिन ही खोले जाते हैं।

धर्म काल परिस्थिति के हिसाब से ही सभी त्यौहार मनाने चाहिए ।

विश्व में अघोषित महामारी के चलते हुए राष्ट्र को प्रधानता देते हुए सभी तरह के पूजा जब तक अपने अपने घरों से ही संपन्न होने चाहिए।

राष्ट्र हित, समाज हित, स्वयं के हित के लिए अपनी देश के प्रति निष्ठा दिखाने का समय है।

ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से

जिस प्रकार मन के बिना हम कोई भी कार्य नहीं कर सकते, उसी तरह से चंद्र के बिना ज्योतिष शास्त्र अधूरा है।

जिस प्रकार मन के बिना हम कोई भी कार्य नहीं कर सकते, उसी तरह से चंद्र के बिना ज्योतिष शास्त्र अधूरा  है। ज्योतिषशास्त्र में चंद्रमा मन, शरीर, जल, गर्भाधान, शिशु अवस्था, व्यवहार, उत्तर-पश्चिम दिशा, माता, दूध, और मानसिक शांति, आदि का कारक ग्रह है ।

चंद्र राशि के आधार पर ही ज्योतिषी किसी भी जातक का भविष्य फल कहते हैं। ज्योतिष में जिस प्रकार सूर्य राजा है, उसी प्रकार चंद्रमा रानी है। चंद्रमा वस्तुतः हमारे मन और भावना का प्रतीक है। चंद्रमा का अपना घर कर्क राशि है तथा वृषभ राशि में चंद्रमा उच्च का होता है। चंद्रमा का स्वभाव बहुत ही संवेदनशील है। इस ग्रह की प्रकृति ठंडी है। चंद्रमा के विभिन्न भावों में स्थित होने से कार्यक्षेत्र पर कैसे प्रभाव पड़ते हैं आईए जानते हैं।

प्रथम भाव:

यदि किसी भी जातक की जन्म कुंडली के प्रथम भाव में चंद्र स्थित हो तो व्यक्ति पराक्रमी और राज वैभव को प्राप्त करने वाला होता है। ऐसा व्यक्ति बहुत ही भावुक और संवेदनशील होता है। व्यक्ति सुन्दर और चंचल होता है। व्यक्ति में सृजनात्मक तथा रचनात्मक कार्यों को करने की विशेष रूप से रुचि होती है, इसलिए रचनात्मकता वाले क्षेत्रों में अपना करियर बना सकता है। प्रथम भाव का चंद्रमा व्यक्ति को कल्पनाशील बना देता है। इसके साथ ही संपूर्ण भविष्यवाणी के लिए देशकालपात्र और अन्य ग्रहों की दृष्टि-युति आदि सम्बन्धी की जांच-परख करनी चाहिए।

द्वितीय भाव:

चंद्रमा दूसरे भाव में हो तो ऐसे जातकों के घर में लक्ष्मी का वास सदा बना रहता है और धन-धान्य की वृद्धि होती है। ऐसा जातक सुन्दर नेत्रों वाला होता है तथा विशेष रूप से विपरीत लिंगी लोगों में आसक्ति होती है। विपरीत लिंगियों के साथ विलास करता है और उनसे धन भी अर्जित करेगा। कहा जाता है कि उसके घर में प्रसन्नतापूर्वक लक्ष्मी स्वयं आकर निवास करती है। ऐसे जातक विदेश से जुड़े कार्य करता है और करना भी चाहिए। यदि जातक विदेश में जाता है तो उसका भाग्योदय अवश्य होगा। यही नहीं सार्वजनिक संस्थाओं के सम्बन्ध से भी भाग्योदय होता है। ऐसे व्यक्ति को किसी न किसी एनजीओ (NGO) से जुड़कर अपनी आजीविका प्राप्त होती है।

तृतीय भाव:

तृतीय भाव में चंद्रमा के स्थित होने पर व्यक्ति अपने पराक्रम से धन लाभ प्राप्त करता है। उसे अपने भाई-बंधुओं से अधिक सुख मिलता है। उसकी प्रवृत्ति धार्मिक कार्यो में होती है। संसार में उसका आदर सम्मान होता है। उसके अंदर कलात्मक गुण होते हैं।ऐसा व्यक्ति हमेशा कुछ नया करना चाहता है। भविष्य के लिए योजनाएँ बनाना तो इनके लिए बायें हाथ का खेल है और ऐसा जातक योजना से संबंधित कार्यों में निपुण होता है। हालांकि देशकालपात्र और अन्य ग्रहों की दृष्टि-युति आदि सम्बन्धी की जांच-परख करनी चाहिए।

चतुर्थ भाव:
 
चतुर्थ भाव में चंद्रमा के स्थित होने पर व्यक्ति को पुत्र, स्त्री, धन और विद्वान होने का सुख प्राप्त होता है। ऐसे व्यक्ति का सर्वत्र गुणगान होता है। जिस व्यक्ति की कुंडली के चतुर्थ भाव में चंद्रमा स्थित है वह सरकार में मंत्री पद या सरकारी नौकरी करता है, मंत्री या नौकरी चंद्रमा की अवस्था के ऊपर निर्भर करेगा। ऐसा जातक स्वभाव से दयालु, परोपकारी और भावुक होता है। उसमें आत्मविश्वास तथा संतोष कुछ अधिक होता है।

पंचम भाव:

" जितेन्द्रियः सत्यवचः प्रसन्नो धनात्म्जाव्वप्त समस्तसौख्यः।

सुसंग्रही स्यान मनुजः सुशीलः प्रसूतिकालेतान्यालायाब्जे।।"

पंचम भाव में स्थित चंद्रमा के प्रभाव से जातक सदैव सरकारी क्षेत्र से जुड़े कार्य व उच्च पद की प्राप्ति करता है। ऐसा जातक किसी की भी गुलामी नहीं करता और राजाओं की तरह समाज में अपना प्रभुत्व बनाये रखता है। ऐसा जातक कम बोलने तथा अधिक कार्य करने में विश्वास रखता है। परन्तु सदैव स्त्री प्रिय होता है, इसके साथ ही स्त्री पक्ष के साथ जुड़कर अहम निर्णय लेता है। हालांकि इसके साथ ही कुंडली में चंद्रमा की अन्य ग्रहों से युति आदि का भी विचार अवश्य करना चाहिए। इसके साथ ही संपूर्ण भविष्यवाणी के लिए देशकालपात्र और अन्य ग्रहों की दृष्टि-युति आदि सम्बन्धी की जांच-परख करनी चाहिए।

षष्ठम भाव:

षष्ठम भाव में स्थित चंद्रमा वाले व्यक्ति सेवक के रूप में कार्य करते हैं। यहाँ स्थित चंद्रमा बहुत अच्छा फल नहीं दे पाता है इसका मुख्य कारण है की षष्ठ भाव रोग, ऋण, रिपु, लड़ाई-झगड़ा इत्यादि का भाव है। इस स्थान में चंद्रमा के होने से व्यक्ति अपने कार्य से कभी भी संतुष्ट नहीं होता यदि व्यक्ति नौकरी करता है तो बार-बार नौकरी में बदलाव चाहता है और करता भी है। ऐसे व्यक्ति अचानक कोई निर्णय नहीं ले पाते हैं यदि कोई निर्णय लेना है तो आप अपने इष्ट मित्रों से पूछने के बाद ही कोई फैसला कर पाते हैं। आप अपने शत्रुओं की पहचान बड़े आसानी से कर लेते हैं।

सप्तम भाव:

जिस जातक के सप्तम भाव में चन्द्र हो तो ऐसा जातक किराने की दुकान, दूध का, दवाइयों का, मसाले का, या अनाज का व्यापार का कार्य करता है। यही नहीं होटल, बेकरी, इन्श्योरेंस या कमीशन एजेंट का काम करे तो ऐसे व्यक्ति को लाभ मिलता है। ऐसे जातक साझेदारी में व्यवसाय कर सकते हैं। परन्तु साझेदारी में भी आप हमेशा परिवर्तन की तलाश में रहते हैं। वैसे भी जिस प्रकार आपको एक स्थान पर ज्यादा दिन तक रुकना पसंद नहीं है उसी प्रकार आप एक ही व्यवसाय पर आश्रित नहीं रहना चाहते। आप वकील बन सकते हैं अत: व्यवसाय के रूप में वकालत को अपना सकते हैं। सप्तम भाव में स्थित चंद्रमा विदेश यात्रा कराता है।

अष्टम भाव:

फलदीपिका बृहदजातक, जातकतत्त्व, मानसागरी में कहा गया है कि यदि चंद्रमा आठवें भाव में बैठा हो तो ऐसा जातक सदैव चिंतित व व्यापार से नुकसान प्राप्त करता है। ऐसे जातकों को नौकरी करना ही सही रहता है सामान्यतः ज्योतिषी बिना किसी अन्य योग को देखे ही मृत्यु या बहुत अरिष्ट के रूप में अपना निर्णय सुनाने लगते हैं जो कि एकदम गलत है। हालांकि मेरे अनुसार केवल चंद्रमा के वहाँ होने मात्र से यह फल फलित नहीं होता है। अष्टम चंद्रमा के कुछ नकारात्मक पहलू तो हैं परन्तु अक्सर हम सकारात्मक पहलू को भूल जाते हैं। अष्टम चंद्र के बारे में ज्योतिष के विभिन्न ग्रंथों में चंद्रमा के सकारात्मक पक्ष का भी वर्णन किया गया है जैसे इससे लोगों को शोध संबंधी कार्यों में सफलता मिलती है। कर्क लग्न हो और अष्टम में चंद्रमा हो तो ऐसे जातक विदेशी स्रोतों से धन लाभ प्राप्त करते हैं। साथ ही ऐसे लोग अच्छे ट्रैवल गाईड होते हैं।

नवम भाव:

नवम भाव में चन्द्र फल के बारे में विचार करें तो, यदि आपकी जन्म कुंडली में नवम भाव में चंद्रमा स्थित है तो आप भाग्य निर्माता, लोकप्रिय, धार्मिक, विद्वान और साहसी होते हैं। आप भाग्यशाली तो होंगे परन्तु यह मत भूलिए की भाग्य स्वयं ही आपके पास नहीं आएगा आपको स्वयं ही अपने भाग्य का निर्माण करना पड़ेगा क्योंकि आप भाग्यशाली नहीं हैं आप तो भाग्य निर्माता हैं, भाग्य के द्वारा आप अपने व्यापार में अच्छी सफलता प्राप्त कर सकते हैं। ऐसे जातक सदैव व्यापार में उच्च पद प्राप्त करते हैं।

दशम भाव:

“जयी सिद्धारम्भो नभसि शुभकृत सत् प्रियकर:”

ऐसे जातक की समाज में तथा कार्यस्थल पर लोकप्रियता भी अच्छी खासी होती है। ये अपनी वाणी से व्यापार में वृद्धि करते है अर्थात वाणी से ही जुड़ा व्यापार करते हैं। व्यक्ति को पद एवं प्रतिष्ठा दोनों प्राप्त होते हैं। ऐसा व्यक्ति धर्मात्मा होता है। व्यापार और व्यवसाय के मामलों में भी आप अत्यंत कुशल हैं। आप नौकरी भी ऐसी करेंगे जिसमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में जनता से सम्बन्ध बन रहा हो। जनता आपसे प्यार करेगी और आप भी जनता से प्यार करेंगे। ऐसे मनुष्य को सरकार से धन की प्राप्ति होती है अर्थात् व्यक्ति सरकारी नौकरी करेगा ऐसा मेरे अनुभव में आया है। आपको अपने व्यवसाय में कई बार परिवर्तन करना पड़ सकता है। आपको विदेश यात्रा करने का भी अवसर मिलेगा।

एकादश भाव :

यदि किसी की कुंडली में चंद्रमा एकादश भाव में स्थित है तो वह व्यक्ति स्वभावतः चंचल होता है। वह हमेशा कुछ न कुछ सोचता रहता है। ऐसा व्यक्ति योजना बहुत बनाता है यही नहीं प्रत्येक योजना का समबन्ध लाभ से अवश्य जुड़ा हुआ रहता है, ऐसा व्यक्ति बिना लाभ के कोई कार्य करना नहीं चाहता है।  ऐसा व्यक्ति विदेश अथवा अन्य प्रदेश में रहना या जाना बहुत ज्यादा पसंद करता है। भौतिक सुख-सुविधाओं का भरपूर उपभोग करना चाहता है और करता भी है।

" द्वादश भाव में चंद्रमा का फल
 चन्द्रेsत्य जातेतु विदेशवासी ।।"

द्वादश भाव:

चंद्रमा मन का कारक है, इसलिए जिन जातकों के द्वादश भाव में चंद्रमा होता है वो आर्थिक पक्ष को लेकर हमेशा परेशान रह सकते है। आपके शत्रुओं की संख्या अधिक हो सकती है। आपको अपनी जीवन यात्रा में कई परेशानियों से गुजरना पड़ सकता है। कई मामलो में सामाजिक मूल्य में हानि का भी सामना करना पड़ सकता है। ऐसे  जातक विदेश में जाकर काम करते हैं तो सफलता प्राप्त होती है। विदेशी नागरिकता भी ऐसे जातक प्राप्त कर सकते हैं। ऐसे जातक खुफ़िया एजेंसी में कार्यरत हो सकते हैं।

हर पत्री के हिसाब से अलग अलग तरह से चंद्र को समझाया जा सकेगा।  षष्टम, अष्टम तथा द्वादश भाव का चंद्रमा अति चंचल बातूनी तथा काफी तरह के अवगुण और स्वास्थ्य संबंधित खराब होता है। जातक को भली प्रकार से जन्मपत्री दिखाकर सुखी जीवन के लिए चंद्रमा की शांति परम आवश्यक है।

ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से