Sunday, June 21, 2020

कंकड़ सूर्य ग्रहण, 21 जून सूर्य का दक्षिणायन में प्रवेश

कंकड़ सूर्य ग्रहण, 21 जून सूर्य का दक्षिणायन में प्रवेश

जितने समय ग्रहण रहे सभी लोग देसी घी का अखंड दिया जलाए, निश्चित ही शुभता आएगी।



21 जून सूर्य का दक्षिणायन में प्रवेश। सबसे बड़ा दिन सबसे छोटी रात

21 जून सूर्य का दक्षिणायन में प्रवेश। सबसे बड़ा दिन सबसे छोटी रात। 




जितने समय ग्रहण रहे सभी लोग देसी घी का अखंड दिया जलाए, निश्चित ही शुभता आएगी।

 ये ग्रहण मृगशिरा, आर्द्रा नक्षत्र और मिथुन राशि में लगने जा रहा है। ग्रहण के दौरान 6 ग्रह बृहस्पति, शनि, मंगल, शुक्र, राहु और केतु वक्री अवस्था में होंगे। ये न तो आंशिक ग्रहण होगा और न ही पूर्ण।

पूर्ण सूर्यग्रहण एक दुर्लभ दृश्य है। जो हर 18 महीने में एक बार ही होता है। पूर्ण सूर्य ग्रहण के लिए, सूर्य को चंद्रमा द्वारा कम से कम 90 प्रतिशत तक ढका होना जरूरी होता है।

इसी तरह का सूर्य ग्रहण 1995 में भी देखा गया था।

इस ग्रहण की कंकणाकृती केवल उत्तरी राजस्थान, उत्तरी हरियाणा तथा उत्तराखंड राज्य के उत्तरी क्षेत्र में से गुजरेगी।

 एक कंकड़ मार्ग वाले क्षेत्रों में इस ग्रहण का परम ग्रास लगभग 99.4% रहेगा, जबकि शेष उत्तरी भारत में परम ग्रास सामान्यता 90% और कई स्थानों पर इससे कुछ अधिक भी होगा।

 मध्य भारत में इसका परम ग्रास 70 से 90% तथा दक्षिणी प्रांतों में 30 से 70% तक पाया जाता है।

यदि राहु अपनी उच्च राशि मिथुन में नहीं होता तो इस तरह के संक्रमण के योग नहीं बनते।

 मिथुन के राहु तथा सूर्य के मिथुन राशि में ही ग्रहण लगने के कारण इस वायरस के संक्रमण में तेजी आएगी। इसके साथ ही 30 जून को जब गुरु अपनी धनु राशि में मार्गी होंगे तब रिकवरी के योग भी तेज होंगे।

यह साल 2020 का पहला और आखिरी ग्रहण होगा जिसका प्रभाव पूरे विश्व मे देखने को मिलेगा।

ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से।

कंकड़ सूर्य ग्रहण



Saturday, June 20, 2020

कंकड़ सूर्य ग्रहण: 21 जून 2020

कंकड़ सूर्य ग्रहण: 21 जून 2020

यह ग्रहण वलयाकार सूर्य ग्रहण होगा, जिसमें सूर्य के चारों तरफ कंगन के आकार की छवि दिखाई देगी।

ज्योतिष शास्त्र में ग्रहण का विशेष महत्व होता है, जबकि वैज्ञानिक नजरिए से ग्रहण को एक खगोलीय घटना माना जाता है।

धार्मिक द्दष्टि से ग्रहण को अशुभ घटना मानी जाती है। ग्रहण से पहले सूतक काल प्रभावी होता है। सूतक काल को शुभ नहीं माना जाता है। सूर्य ग्रहण से 12 घंटे पहले सूतक लग जाता है।

ग्रहण प्रारम्भ : सुबह 09 बजकर 15 मिनट पर प्रारम्भ।

कंकड़ प्रारम्भ : 10 बजकर 17 मिनट

परम ग्रास: दोपहर 12 बजकर 10 मिनट

कंकड़ समाप्त: दोपहर 02 बजकर 02 मिनट पर

ग्रहण समाप्त: शाम 03 बजकर 04 मिनट पर

सूर्य ग्रहण का सूतक काल:

 सूर्य ग्रहण के 12 घंटे पहले सूतक काल लग जाता है। ग्रहण का सूतक काल 20 जून को रात 09 बजकर 16 मिनट से शुरू जाएगी, जो ग्रहण की सामाप्ति पर खत्म होगा।

ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से

🌹दालचीनी के अमृतमय औषधीय प्रयोग🌹

🌹दालचीनी के अमृतमय औषधीय प्रयोग🌹

परिचय :
दालचीनी विश्व में मसालों के रूप में काम में ली जाती है। यह एक पेड़ की छाल होती है।
दालचीनी (Dalchini) के गुण :

दालचीनी (Dalchini)मन को प्रसन्न करती है। सभी प्रकार के दोषों को दूर करती है। यह पेशाब और मैज यानी की मासिक-धर्म को जारी करती है। धातु को पुष्ट करती है। मानसिक उन्माद यानी कि पागलपन को दूर करती है। इसका तेल सर्दी की बीमारियों और सूजनों तथा दर्दो को शान्त करता है। सिरदर्द के लिए यह बहुत ही गुणकारी औषधि होती है।

दालचीनी (Dalchini)उष्ण, पाचक, स्फूर्तिदायक, रक्तशोधक, वीर्यवर्धक व मूत्रल है | यह वायु व कफ का शमन कर उनसे उत्पन्न होनेवाले अनेक रोगों को दूर करती है |

यह श्वेत रक्तकणों की वृद्धि कर रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाती है | बवासीर, कृमि, खुजली, राजयक्ष्मा ( टी,बी,), इन्फ्लूएंजा ( एक प्रकार का शीतप्रधान संक्रामक ज्वर), मूत्राशय के रोग, टायफायड, ह्रदयरोग, कैन्सर, पेट के रोग आदि में यह लाभकारी है | संक्रामक बीमारियों की यह विशेष औषधि है |

🌹दालचीनी (Dalchini)की उत्तम गुणवत्ता की पहचान🌹

जो दालचीनी, पतली, मुलायम चमकदार, सुगंधित और चबाने पर तमतमाहट एवं मिठास उत्पन्न करने वाली हो, वह श्रेष्ठ होती है।

दालचीनी की मात्रा :

दालचीनी गर्म होती है। अत: इसे थोड़ी सी मात्रा में लेते हुए धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए। परन्तु यदि किसी प्रकार का दुष्प्रभाव या हानि हो तो सेवन को कुछ दिन में ही बंद कर देते हैं और दुबारा थोड़ी सी मात्रा में लेना शुरू करें।

दालचीनी पाउडर की उपयोग की मात्रा 1 से 5 ग्राम होती है। पाउडर चम्मच के किनारे से नीचे तक ही भरा जाना चाहिए। बच्चों को भी इसी प्रकार अल्प मात्रा में देते हैं। दालचीनी का तेल 1 से 4 बूंद तक काम में लेते हैं। दालचीनी का तेल तीक्ष्ण और उग्र होता है। इसलिए इसे आंखों के पास न लगाएं।

🌹दालचीनी(Cinnamon) के कुछ प्रयोग🌹

1.हकलाना तुतलाना:– दालचीनी (Cinnamon)को रोजाना सुबह-शाम चबाने से हकलापन दूर होता है।

2.वीर्यवर्द्धक:- दालचीनी को बहुत ही बारीक पीस लेते हैं। इसे 4-4 ग्राम सुबह व शाम को सोते समय दूध से फांके। इससे दूध पच जाता है और वीर्य की वृद्धि होती है।

3.पेट में गैस:-

दालचीनी (Cinnamon)पेट की गैस को नष्ट करती है तथा पाचनशक्ति (भोजन पचाने की क्रिया) को बढ़ाती है।

2 चुटकी दालचीनी को पीसकर बारीक चूर्ण बनाकर पानी के साथ लेने से पेट की गैस नष्ट हो जाती है।

दालचीनी के तेल में 1 चम्मच चीनी (शक्कर) डालकर पीने से पेट की गैस में लाभ होता हैं। ध्यान रहे कि अधिक मात्रा में लेने से हानिकारक होती है।

4.पित्त की उल्टी:- दालचीनी (Cinnamon)को पीसकर शहद में मिलाकर रोगी को पिलाने से पित्त की उल्टी बंद हो जाती है।

5.कब्ज:- दालचीनी, सोंठ, जीरा और इलायची थोड़ी सी मात्रा में मिलाकर खाते रहने से कब्ज और अजीर्ण (भूख न लगना) में लाभ होता है।

6.इनफ्लुएंजा:- 5 ग्राम दालचीनी, 2 लौंग और चौथाई चम्मच सोंठ को लेकर पीसकर 1 लीटर पानी में उबालें। चौथाई पानी के शेष रहने पर छानकर इस पानी के 3 हिस्से करके दिन में 3 बार रोगी को पिलाने से इनफ्लुएंजा में लाभ मिलता है।

गले का काग (कौआ) की वृद्धि हो जाना:- दालचीनी (Cinnamon)को बारीक पीसकर अंगूठे से सुबह के समय काग पर लगाएं और रोगी को लार टपकाने के लिए बोलें। इस प्रयोग से गले की कागवृद्धि दूर हो जाएगी।

7.अपच:- दालचीनी की 2 ग्राम छाल के चूर्ण को दिन में दो बार पानी से लेने से अपच (भोजन का न पचना) का रोग ठीक हो जाता है।

भूख न लगना:- 2 ग्राम दालचीनी और अजवायन को बराबर मात्रा में लेकर 3 भाग करके भोजन से पहले चबाने से भूख लगने लगती है।

8.खांसी –

दालचीनी को चबाने से सूखी खांसी में आराम मिलता है और यदि गला बैठ गया हो तो आवाज साफ हो जाती है।

चौथाई चम्मच दालचीनी पाउडर को 1 कप पानी में उबालकर 3 बार पीते रहने से खांसी ठीक हो जाती है तथा बलगम बनना बंद हो जाता है।

20 ग्राम दालचीनी, 320 ग्राम मिश्री, 80 ग्राम पीपल, 40 ग्राम छोटी इलायची, 160 ग्राम वंशलोचन को बारीक पीसकर मिलाकर मैदा की छलनी से छान लेते हैं। इसके बाद एक चम्मच शहद को आधा चम्मच मिश्रण में मिलाकर सुबह-शाम चाटे जो लोग शहद नहीं लेते हैं वे गर्म पानी से फंकी करें। यह मिश्रण घर में रखते हैं। जब कभी किसी को खांसी हो इसे देने से लाभ होता है।

50 ग्राम दालचीनी पाउडर, 25 ग्राम पिसी मुलहठी, 50 ग्राम मुनक्का, 15 ग्राम बादाम की गिरी, 50 ग्राम शक्कर को लेकर बारीक पीसकर पानी मिलाकर मटर के दाने के आकार की गोलियां बना लेते हैं। जब भी खांसी हो 1 गोली चूसे अथवा हर 3 घंटे बाद एक गोली चूसे। इससे खांसी नहीं चलेगी और मुंह का स्वाद हल्का होगा।

कायफल के चूर्ण को दालचीनी के साथ खाने से पुरानी खांसी और बच्चों की कालीखांसी दूर हो जाती है।

9.दमा:- दालचीनी का छोटा सा टुकड़ा, चौथाई अंजीर या तुलसी के पत्ते, नौसादर (खाने वाला) ज्वार के दाने के बराबर, 1 बड़ी इलायची, काली दाख 4 (काले मुनक्के) थोड़ी सी मिश्री को मिलाकर बारीक पीसकर सेवन करने से दमे के रोग में लाभ होता है।

विधि : एक कप पानी में सभी चीजों को लेकर उबाल लेते हैं। जब आधा पानी शेष रह जाए तो छानकर रोजाना सुबह व शाम को पीना चाहिए। पीने के आधा घंटे बाद तक कुछ न खाएं, पानी भी न पियें। इसके सेवन करने से दमे का दौरा समाप्त हो जाता है।

गठिया (जोड़ों का दर्द/सूजन):

1 भाग शहद, 2 भाग हल्का गर्म पानी और 1 छोटी चम्मच दालचीनी पाउडर को मिला लेते हैं। जिस जोड़ में दर्द कर रहा हो, उस पर धीरे-धीरे इसकी मालिश करें। दर्द कुछ ही मिनटों में मिट जाएगा।

1 गिलास दूध में 1 गिलास पानी मिलाकर इसमें 1 चम्मच पिसी हुई दालचीनी, 4 छोटी इलायची, 1-1 चम्मच सोंठ व हरड़ तथा लहसुन की 3 कली के छोटे-छोटे टुकडे़ डालकर उबालें जब दूध आधा शेष रह जाए तो इसे गर्म ही पीना चाहिए। लहसुन को भी दूध के साथ ही निगल जाना चाहिए। इससे आमवात व गठिया में लाभ मिलता है।

10.बालों का झड़ना:- आलिव ऑयल गर्म करके इसमें 1 चम्मच शहद और 1 चम्मच दालचीनी पाउडर मिलाकर, लेप बनाकर, सिर में बालों की जड़ों व त्वचा पर स्नान करने से 15 मिनट पहले लगा लें। जिन लोगों के सिर के बाल गिरते हो और जो गंजे हो गये हो उन्हें लाभ होता है।

11.बालों का दोमुंहा होना:-

बालों पर एक चमकदार और सुरक्षित परत होती है जिसे क्यूटिकल कहते हैं। जब यह परत टूटती है, तो बालों के सिरे भी टूटने लगते हैं। कई बार बालों के अत्यधिक सूखे और कमजोर होने के कारण भी बाल दोमुंहे होने लगते हैं। गीले बालों में कंघी करने से भी बालों की सुरक्षा परत को नुकसान पहुंचता है और यह भी बालों के दोमुंहे होने का कारण बनते हैं। इसी तरह तेज-तेज कंघी करने और धूप में ज्यादा देर रहने से भी बाल कमजोर हो जाते हैं।

दोमुंहे बालों का सबसे अच्छा यही उपचार है कि उन्हें काट दें। बालों को नियमित रूप से काट-छांटकर उन्हें दोमुंहा होने से बचाया जा सकता है। बालों की सुरक्षा हेतु दालचीनी का प्रयोग करें। इससे बाल मजबूत और सुरक्षित रहेंगे।
12.मूत्राशय संक्रमण:- 2 चम्मच दालचीनी पाउडर और 1 चम्मच शहद को 1 गिलास हल्के गर्म पानी में घोलकर पीना चाहिए। इससे मूत्राशय के रोग नष्ट हो जाते हैं।

13.दांत दर्द:-

एक चम्मच दालचीनी पाउडर को 5 चम्मच शहद में मिला लेते हैं। इसे दांतों पर रोजाना दिन में 3 बार लगाना चाहिए। इससे दांत दर्द ठीक हो जाता है। जब तक दर्द पूरा ठीक न हो जाए तो इसे लगाना चाहिए।

दालचीनी का तेल दुखते दांत पर लगाने से दांत दर्द ठीक हो जाता है। चौथाई चम्मच दालचीनी पाउडर की फंकी गर्म पानी से दिन में 3 बार लेने से लाभ मिलता है। इसे 1 चम्मच शहद में भी मिलाकर दे सकते हैं।

14.जुकाम:-

1 ग्राम दालचीनी, 3 ग्राम मुलहठी और 7 छोटी इलायची को अच्छी तरह से पीसकर 400 मिलीलीटर पानी में मिलाकर आग पर पकाकर रख दें। पकने के बाद जब पानी आधा बाकी रह जाये तो इसमें 20 ग्राम मिश्री डालकर पीने से जुकाम दूर हो जाता है।

एक बड़े चम्मच शहद में चौथाई चम्मच दालचीनी का पाउडर मिलाकर एक बार रोजाना खाने से तेज व पुराना जुकाम, पुरानी खांसी और साइनसेज ठीक हो जाते हैं। इसे दिन में कम से कम 3 बार लेना चाहिए तथा रोग ठीक होने तक लेते रहें। रोग की प्रारम्भ में इसे 2 बार रोजाना लेना चाहिए।

1 से 3 बूंद दालचीनी के तेल को मिश्री के साथ रोजाना 2-3 बार सेवन करने से जुकाम में आराम आता है। थोड़ी सी बूंदे इस तेल की रूमाल में डालकर सूंघने से भी लाभ होता है।

15.कंधे में दर्द

कभी-कभी कंधे में दर्द होता है। दालचीनी का प्रयोग करने से कंधे का दर्द ठीक हो जाता है

शहद और दालचीनी पाउडर को बराबर मात्रा में मिलाकर रोजाना 1 चम्मच सुबह के समय सेवन करने से शरीर में रोगाणुओं और वायरल संक्रमण से लड़ने की शक्ति बढ़ती है, शरीर की प्रतिरोधी शक्ति बढ़ती है। कंधे पर इसी मिश्रण की मालिश करके अन्त में लेप करना चाहिए

16.सन्तानहीनता, बांझपन:
वह पुरुष जो बच्चा पैदा करने में असमर्थ होता है, यदि रोजाना सोते समय 2 बड़े चम्मच दालचीनी ले तो वीर्य में वृद्धि होती है और उसकी यह समस्या दूर हो जाती है।

जिस स्त्री के गर्भाधारण ही नहीं होता, वह चुटकी भर दालचीनी पाउडर 1 चम्मच शहद में मिलाकर अपने मसूढ़ों में दिन में कई बार लगायें। थूंके नहीं। इससे यह लार में मिलकर शरीर में चला जाएगा। इससे स्त्रियां कुछ ही दिनों में गर्भवती हो जाती हैं।

17.गर्भस्राव:- कमजोर गर्भाशय के कारण बार-बार गर्भस्राव होता रहता है। गर्भधारण से कुछ महीने पहले दालचीनी और शहद बराबर मात्रा में मिलाकर 1 चम्मच रोजाना सेवन करने से गर्भाशय शक्तिशाली हो जाएगा।

18.मुंह से बदबू:- दालचीनी का टुकड़ा चबाकर चूसने से मुंह की बदबू दूर हो जाती है और दांत मजबूत हो जाते हैं।

19.धूम्रपान:- 1 चम्मच शहद में 1 चम्मच दालचीनी पाउडर मिलाकर एक चौड़े मुंह की छोटी शीशी में रख लें। जब भी बीड़ी, सिगरेट, जर्दा खाने की इच्छा हो तो इसमें अंगुली डुबोकर चूसें। इससे धूम्रपान छूट जाएगा। मन में निश्चय करके भी धूम्रपान को छोड़ा जा सकता है।

20.कोलेस्ट्राल:- 2 बड़े चम्मच शहद, 3 चम्मच दालचीनी पाउडर और 400 मिलीलीटर चाय का उबला पानी घोलकर पियें। इसे पीने के 2 घंटे के बाद ही खून में 10 प्रतिशत कोलेस्ट्राल कम हो जाएगा। यदि 3 दिन तक लगातार पियें तो कोलेस्ट्राल का कोई भी पुराना रोगी हो वह ठीक हो जाएगा।

21.हार्टअटैक:- शहद और दालचीनी को बराबर मात्रा में मिलाकर एक चम्मच नाश्ते में ब्रेड या रोटी में लगाकर रोजाना खाएं। इससे धमनियों का कोलेस्ट्राल कम हो जाता है। जिसको एक बार हार्ट अटैक आ चुका है, उनको दुबारा हार्ट अटैक नहीं आता है।

22.दीर्घ आयु :
एक चम्मच दालचीनी पाउडर को 3 कप पानी में उबालें। उबलने के बाद हल्का सा गर्म रहने पर इसमें 4 चम्मच शहद मिलाएं। एक दिन में इसे 4 बार पियें। इससे त्वचा कोमल व ताजी रहेगी और बुढ़ापा भी दूर रहेगा।

वरिष्ठ नागरिक जो दालचीनी और शहद का बराबर मात्रा में सेवन करते हैं उनका शरीर अधिक फुर्तीला और लचकदार रहता है।

23.मोटापा घटाना:– 1 कप पानी में आधा चम्मच दालचीनी पाउडर मिलाकर उबालते हैं। इसमें 1 चम्मच शहद डालकर रोजाना सुबह नाश्ते से पहले तथा रात को सोने से पहले पियें इससे वजन कम होगा और मोटापा नहीं बढे़गा।

24.बहरापन:

शहद और दालचीनी पाउडर को बराबर मात्रा में मिलाकर 1-1 चम्मच सुबह और रात को लेने से सुनने की शक्ति दुबारा आ जाती है अर्थात बहरापन दूर होता है।

कान से कम सुनाई देने के रोग (बहरापन) में कान में दालचीनी का तेल डालने से आराम आता है

25.मुंहासें:
3 चम्मच शहद में 1 चम्मच दालचीनी पाउडर और कुछ बूंदे नींबू के रस की डालकर लेप बनाकर चेहरे पर लगाएं। फिर 1 घंटे के बाद धोएं। इससे चेहरे के मुंहासे ठीक हो जाएंगे।

चौथाई चम्मच दालचीनी में नींबू के रस की कुछ बूंदे डालकर पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगाएं। इसे एक घंटे बाद धोते हैं। इससे मुंहासे ठीक हो जाएंगे।

26.मुंह पर दाग:- दूध की मलाई में चुटकी भर दालचीनी मिलाकर चेहरे पर मलने से चेहरे के दाग-धब्बे दूर हो जाते हैं।

27.त्वचा संक्रमण:- दाद, रिंगवर्म और समस्त त्वचा संक्रमण रोगों को ठीक करने के लिए बराबर मात्रा में शहद और दालचीनी को मिलाकर रोजाना लगाना चाहिए।

28.डायबिटीज से होने वाले रोग:- दालचीनी का रोजाना सेवन करने से थकान, आंखों की रोशनी कम होना, दिल, किडनी खराब होना आदि रोगों से बचाव होता है। सेवन

विधि:- 1 कप पानी में दालचीनी पाउडर को उबालकर, छानकर रोजाना सुबह पियें। इसे कॉफी, खाद्य-पदार्थों में भी मिलाकर पी सकते हैं। इसे सेवन करने के हर दसवें दिन मधुमेह की जांच करवाकर इसके लाभ को देखें। सावधानी:- दालचीनी बताई गई अल्प मात्रा में लें, इसे अधिक मात्रा में लेने से हानि हो सकती है।

29.हिचकी:-
3 बूंद दालचीनी के तेल को आधा कप पानी में मिलाकर पीने से हिचकी बंद हो जाती है।

दालचीनी चबाकर चूसने से हिचकी आना रुक जाती है।

30.पेट के कीडे़:- चौथाई चम्मच दालचीनी के चूर्ण को 1 चम्मच शहद में मिलाकर रोजाना एक बार लेना चाहिए। इससे पेट के कीडे़ नष्ट हो जाते हैं।

31.बवासीर:-
चौथाई चम्मच दालचीनी के चूर्ण को 1 चम्मच शहद में मिलाकर रोजाना एक बार लेना चाहिए। इससे बवासीर का रोग दूर हो जाता है।

आधा चम्मच दालचीनी पाउडर को 1 कप पानी में उबालकर, खाने के आधा घंटे बाद सुबह-शाम पीने से रक्तस्रावी बवासीर ठीक हो जाती है।

32.फोड़ा:- दालचीनी को पानी में पीसकर उठते फोड़े पर लेप करने से फोड़ा बैठ जाता है तथा फोड़ा पकता नहीं है।

33.त्वचा की सूजन:- दालचीनी को पानी में पीसकर चमड़ी में जहां पर रोग हो वहां पर लेप करने से चर्म रोग दूर हो जाते हैं तथा सूजन वाले स्थान पर लगाने से सूजन दूर हो जाती है।
34.टांसिल:-
चुटकी भर दालचीनी को 1 चम्मच शहद में मिलाकर रोजाना 3 बार चूसने से टांसिल (गांठे) ठीक हो जाती है।

दालचीनी को पीसकर शहद में मिलाकर उंगली से टांसिल पर लगाने से लाभ होता है।

35.टायफाइड:- टायफाइड की चिकित्सा जिस किसी प्रकार की औषधि से हो रही हो, उनके साथ 1 बार रोजाना 3 बूंद दालचीनी का तेल आधा कप पानी में डालकर रोगी को पिलाने से तेजी से लाभ होता है।

36. स्मरणशक्तिवर्द्धक:- सुबह-शाम आधा चम्मच दालचीनी पाउडर की पानी से फंकी लेते रहने से दिमाग की कमजोरी दूर होती है तथा बुद्धि का विकास होता है।

जल वृषण (अण्डकोषों जल भर जाने से सूजन):- आधा चम्मच दालचीनी पाउडर को सुबह-शाम पानी से लेने से अण्डकोष में पानी भर जाने की शिकायत दूर हो जाती है।

37.पेशाब में रुकावट:- दालचीनी लेने से पेशाब अधिक बनता है और पेशाब की रुकावट दूर होती है। इससे पेशाब खुलकर और बिना दर्द के आता है। पेशाब में मवाद आना बंद हो जाता है। इसके लिए रोजाना 3 बार आधा चम्मच दालचीनी पाउडर की पानी से फंकी लें।
बिच्छू, जहरीले कीड़े काटना:- जहां डंक लगा हो या किसी जहरीले कीड़े ने काटा हो उस स्थान पर दालचीनी का तेल लगाने से दर्द, सूजन और जलन दूर हो जाता है।

38.यक्ष्मा (टी.बी):- 2 चम्मच मिश्री पर दालचीनी के तेल की 4 बूंद डालकर रोजाना 3 बार खाने से टी.बी के रोग में लाभ होता है। यदि टी.बी में फेफड़ों से रक्तस्राव (खून बहना) होता है। इसमें आधा चम्मच दालचीनी पाउडर पानी से रोजाना 2 बार फंकी लेने से लाभ मिलता है।

39.रक्तविकार:- दालचीनी खून को साफ करती है। यह खून की सफेद कोशिकाओं की संख्या को बढ़ाती है। इसके लिए चौथाई चम्मच दालचीनी को एक चम्मच शहद में मिलाकर रोजाना लेते हैं

40.गर्मी देने वाली:- यदि कोई व्यक्ति बेहोश हो गया हो उसका शरीर ठण्डा पड़ गया हो, कमजोर हो गया हो तो दालचीनी का आधा चम्मच तेल 3 चम्मच तिल के तेल में मिलाकर मालिश करने से शरीर में गर्मी और चेतना आ जाती है

41.वीर्य की पुष्टि:- दालचीनी गर्म और खुश्क होती है। लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग दालचीनी और लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग सफेद कत्था पीसकर पानी से दिन में 3 बार लेने से पेट के दस्त और मरोड़ ठीक हो जाते हैं। 1-1 ग्राम पिसी हुई दालचीनी को सुबह-शाम गर्म दूध से 15-20 दिन प्रयोग करने से वीर्य पुष्ट हो जाता है।

42.अग्निमान्द्य:-

दालचीनी का चूर्ण 2 से 4 ग्राम दिन में 2 बार पानी के साथ लेने से अग्निमान्द्य (भूख कम लगना) दूर हो जाता है।

बारीक पिसी हुई 2 से 3 ग्राम देशी चीनी में दालचीनी का शुद्ध तेल 5 से 6 बूंद डालकर सुबह और शाम सोने से पहले रात को 1 सप्ताह तक लेने से अग्निमान्द्य (भोजन का न पचना) में लाभ होता हैं।

43.कुछ अन्य सरल प्रयोग:-

दालचीनी, कालीमिर्च और अदरक का काढ़ा पीने से जुकाम दूर हो जाता है।

दालचीनी का सेवन करने से अजीर्ण (भूख न लगना), उल्टी, लार, पेट का दर्द और अफारा (पेट में गैस) मिटता है। यह स्त्रियों का ऋतुस्राव (मासिक-धर्म) साफ करती है और गर्भाशय का संकोचन करती है।

1 ग्राम दालचीनी और 5 ग्राम छोटी हरड़ को मिलाकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को 100 मिलीलीटर गर्म पानी में मिलाकर रात को पीने से सुबह साफ दस्त होता है और पेट की कब्ज दूर होती है।

लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग दालचीनी और सफेद कत्थे के चूर्ण को शहद में मिलाकर खाने से अपच (भोजन का न पचना) के कारण बार-बार होने वाले पतले दस्त बंद हो जाते हैं।

लगभग 1.20 ग्राम दालचीनी का चूर्ण ताजे पानी से लेने से पेचिश बंद हो जाती है।

दालचीनी का तेल 2 से 3 बूंद 1 कप पानी में मिलाकर सेवन करने से इन्फ्लूएंजा, ज्वर (बुखार), ग्रहणी (दस्त), आन्त्रशूल (आंतों में दर्द), हिचकी और उल्टी में लाभ होता है।

दालचीनी के तेल अथवा रस में रुई का फाया भिगोकर दुखती दाढ़ या दांत पर रखने से लाभ होता है।

दालचीनी, कत्था, जायफल और फिटकरी को मिलाकर उसकी गोटी योनि में रखने से प्रदर रोग मिटता है तथा योनि का संकोचन दूर होता है।

44. पेशाब का बार-बार आना:-

दालचीनी को पीसकर सोते समय पानी से लेने से पेशाब का बार-बार आना कम हो जाता है।

10 ग्राम पिसी दालचीनी में, 10 ग्राम चीनी मिलाकर लगभग 2 ग्राम की मात्रा में रात को सोते समय पानी से लेने से पेशाब के बार-बार आने के रोग से छुटकारा मिलता है।

45.दांतों में कीड़े लगना:- दालचीनी के तेल में रूई भिगोकर दांत के गड्ढ़े में रखें। इससे दांत के कीड़े व दर्द नष्ट हो जाते हैं।

46.अफारा (गैस का बनना):- दालचीनी के तेल की 1 से 3 बूंद को मिश्री के साथ सुबह और शाम रोगी को देने से पेट के अफारे (गैस) में लाभ होता है।

47.डकार के आने पर:- 1 से 3 बूंद दालचीनी के तेल को बताशे या चीनी पर डालकर सुबह और शाम सेवन करने से डकार और पेट में गैस बंद हो जाती है।

48.जीभ और त्वचा की सुन्नता:- जीभ का लकवा, जीभ सुन्न हो जाने पर, दालचीनी का तेल मिश्री में मिलाकर 1 से 3 बूंद रोजाना दिन में 2 से 3 बार सेवन करें तथा दालचीनी का चूर्ण मुंह में रखकर बराबर चूसते रहें।

49.जीभ का स्वाद ठीक करना:- जबान (मुंह) पर कड़वाहट लगने पर दालचीनी या बच को पीसकर और छानकर इस चूर्ण में शहद मिला लें। इससे रोजाना जीभ को मलने से जीभ की कड़वाहट दूर होती है।

50.यात्राजन्य रोग:- 1 से 3 बूंद दालचीनी के तेल को बतासे पर डालकर मुंह में रखने से यात्रा में उबकाई नहीं आती है।

51.वमन (उल्टी):-

दालचीनी को पीसकर उसमें थोड़ा-सा शहद मिलाकर चाटने से उल्टी आना बंद हो जाती है।

गर्मी के कारण अगर उल्टी हो रही हो तो दालचीनी को पीसकर शहद में मिलाकर चाटने से लाभ होता है।

दालचीनी के 1 से 2 ग्राम चूर्ण को 3 बराबर भाग में करके शहद से दिन में 3 बार लेने से उल्टी बंद हो जाती है।

दालचीनी के तेल की 5 बूंदे ताल मिश्री के चूर्ण या बताशे में डालकर खाने से पेट का दर्द और उल्टी आने का रोग दूर हो जाता है।

52.कैन्सर रोग:-

दाल चीनी कैन्सर में अधिक दी जाती है। दालचीनी का तेल 3 बूंद रोजाना 3 बार दें। साथ ही दालचीनी चबाते रहने का निर्देश दें। यदि घाव बाहर हो, तेल लगाना सम्भव हो तो दालचीनी का तेल लगाते भी रहें। यह प्रतिदूषक, व्रणशोधक, व्रणरोपक और रोगाणु नाशक भी है।

दाल चीनी का काढ़ा रोजाना 350 ग्राम पीने से कैंसर रोग में राहत मिलती है।

2 चम्मच शहद में 1 चम्मच दालचीनी पाउडर मिलाकर रोजाना 3 बार चाटने से सभी प्रकार के कैंसर नष्ट हो जाते हैं।

53.नपुंसकता:- 75 ग्राम दालचीनी को पीसकर छान लें। इस 5 ग्राम चूर्ण को पानी में पीसकर सोते समय लिंग पर सुपारी (लिंग का अगला हिस्सा) छोड़कर लेप करें और 2-2 ग्राम सुबह-शाम दूध से लें। इससे कुछ ही समय में नपुंसकता के रोग से मुक्ति मिल जायेगी ।

54.दस्त:-

10 ग्राम दालचीनी, 10 ग्राम कत्था और 5 ग्राम फुलाई हुई फिटकरी को अच्छी तरह पीसकर लगभग 2 ग्राम की मात्रा में दिन में 2 से 3 बार पानी के साथ पीने से दस्तों के रोग में लाभ होता है।

2 ग्राम दालचीनी का बारीक चूर्ण बनाकर ताजे पानी के साथ प्रयोग करने से अतिसार यानी दस्त की बीमारी से रोगी को तुरन्त आराम मिलता है।

दालचीनी का काढ़ा बनाकर रोजाना सुबह और शाम सेवन करने से दस्त आना बंद हो जाते हैं।

2 ग्राम बारीक दालचीनी और 5 ग्राम सौंफ को मिलाकर खाने से दस्तों में लाभ मिलता है।

दालचीनी, जायफल और खैरसार को पीसकर छोटी-छोटी गोली बनाकर रख लें, फिर इसी बनी गोली को प्रयोग करने से दस्त के कारण शरीर में आई कमजोरी समाप्त होती है।

2 ग्राम बारीक पिसी हुई दालचीनी पानी के साथ सेवन करने से दस्त आना बंद हो जाता है अथवा दालचीनी और कत्था बराबर मात्रा में लेकर पीसकर आधा चम्मच रोजाना 3 बार सेवन करने से भी दस्त बंद हो जाते हैं।

दालचीनी, चुनिया, गोंद और अफीम को मिलाकर छोटी-छोटी गोली बनाकर खुराक के रूप में प्रयोग करने से अतिसार (दस्त) में लाभ मिलता है।

55.गर्भवती स्त्री की उल्टी:- 1 से 3 बूंद दालचीनी का तेल सुबह-शाम मिश्री के साथ सेवन करने से वमन (उल्टी) होना बंद हो जाती है।

56.आमातिसार:- दालचीनी का काढ़ा बनाकर रोजाना 2 से 3 बार सेवन करने से आमातिसार (ऑवयुक्तदस्त) का रोग दूर हो जाता है।

57.संग्रहणी (पेचिश):- दालचीनी का काढ़ा रोजाना 3 बार सेवन करने से संग्रहणी अतिसार के रोगी का रोग दूर हो जाता है।

मासिक-धर्म समाप्ति के बाद होने वाले शारीरिक व मानसिक विकार:- मासिक-धर्म के समाप्ति के बाद होने वाले शारीरिक और मानसिक परेशानी से बचने के लिए 1 से 3 बूंद दालचीनी के तेल को बताशे पर डालकर सुबह-शाम सेवन करना लाभकारी होता है।

58.गुर्दे के रोग:- दालचीनी का चूर्ण बनाकर 1 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ खाने से गुर्दे का दर्द दूर हो जाता है।

59.गुर्दे की सूजन:- दालचीनी को खाने से गुर्दे की सूजन मिट जाती है।

60.एड्स:- दालचीनी एड्स के लिये बहुत ही लाभदायक होती है क्योंकि इससे खून के सफेद कण की वृद्धि होती है, जबकि एड्स में सफेद कण का कम होना ही अनेक रोगों को आमन्त्रित करता है। साथ ही पेट के कीड़े साफ करने, घाव को भरने एवं ठीक करने के गुणों से युक्त होता है। दालचीनी का चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग की मात्रा में अथवा तेल 1 से 3 बूंद की मात्रा में रोजाना 3 बार सेवन करें।

61.नजला:-

7 काली मिर्च और 7 बताशों को 250 ग्राम पानी में डालकर पकाने के लिये रख दें। पकने के बाद यह पानी 1 चौथाई बाकी रह जाने पर एक शीशी में भरकर रख लें। इस पानी को 2 दिन तक सुबह खाली पेट और रात को सोते समय पीने से नजला बिल्कुल ठीक हो जाता है।
इसके साथ ही जुकाम, खांसी और हल्का-सा बुखार या शरीर का दर्द भी दूर हो जाता है। इसको पीने से पसीना भी बहुत आता है और पसीना आने के साथ ही शरीर का भारीपन समाप्त होकर शरीर हल्का हो जाता है।
62.रक्तप्रदर:- रक्तप्रदर में 1 से 3 बूंद दालचीनी का तेल अशोकारिष्ट के प्रत्येक मात्रा के साथ रोजाना 2 बार लेने से गर्भाशय की शिथिलता कम होती है और रक्तप्रदर भी ठीक हो जाता है। रक्तप्रदर में दालचीनी चबाने को भी देना चाहिए।

63.रक्तपित्त:- मुंह या फेफड़ों से बहने वाले खून में दालचीनी के काढ़े का रोजाना प्रयोग करने से लाभ होता है।

64.नींद न आना:- लगभग 125 मिलीलीटर पानी में 3 ग्राम दालचीनी को खूब उबालें। फिर इसको छानकर इसमें 3 बताशे डालकर हल्का गर्म करके सुबह के समय पिलाने से नींद अच्छी आती है।

65.वीर्य के रोग में:-

20 ग्राम दालचीनी को पीसकर इसमें 20 ग्राम चीनी मिलाकर 2-2 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम दूध से लेने से वीर्य के रोग ठीक हो जाते हैं।
5-5 ग्राम दालचीनी और काले तिल को पीसकर शहद में मिलाकर चने के बराबर की गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें और संभोग से 2 घंटे पहले एक गोली गर्म दूध से लें।
3 ग्राम दालचीनी के चूर्ण को रात में सोते समय गर्म दूध के साथ खाने से वीर्य की वृद्धि होती है।
दालचीनी के तेल में 3 गुना जैतून का तेल मिलाकर शिश्न पर लगाने से मर्दानगी लौट आती है। ध्यान रहे कि इस पर ठण्डा पानी न पड़े।
दालचीनी का चूर्ण बनाकर 1 चम्मच की मात्रा में खाना खाने के बाद रोज दो बार दूध के साथ लेने से वीर्य के रोग में लाभ होता है।
66.प्रसव का आसानीपूर्वक होना:- 1-1 चम्मच दालचीनी और सौंफ को 200 मिलीलीटर पानी में उबालें जब यह एक चौथाई रह जाये तो इसे ठण्डा करके पीने से प्रसव आसानी से हो जाता है।

67.योनि का दर्द:- 1 से 3 बूंद दालचीनी के तेल को बताशे पर डालकर रोजाना सुबह और शाम सेवन करने से योनि का दर्द समाप्त हो जाता हैं।

68.पेट में दर्द: –

1 से 3 बूंद दालचीनी के तेल को मिश्री के साथ सेवन करने से पेट के दर्द में लाभ मिलता है।
दालचीनी को बारीक पीसकर चूर्ण बनाकर उसमें थोड़ी-सी हींग मिलाकर 250 ग्राम पानी में डालकर उबालकर ठण्डा कर लें, फिर इसमें से थोड़ी-सी मात्रा में दिन में 3 से 4 बार रोगी को पिलाने से पेट के दर्द में लाभ मिलता है।
2 ग्राम दालचीनी में थोड़ी-सी हींग और कालानमक मिलाकर सेवन करने से पेट का दर्द दूर हो जाता है।
दालचीनी थोड़ी मात्रा में और हींग को लगभग 1 गिलास पानी की मात्रा में उबालकर रख लें। इस बने घोल को दिन में 2 बार 4-4 चम्मच की मात्रा में पीने से पेट के दर्द में आराम होता है।
दालचीनी और नागदोन के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से पेट के रोग कम होते जाते हैं।
दालचीनी को थोड़ी मात्रा में सेवन करने से लाभ होता है। ध्यान रहे कि इसका अधिक मात्रा में प्रयोग नुकसानदायक हो सकता है।
यदि शहद और दालचीनी बराबर मात्रा में मिलाकर रोजाना 1 चम्मच सेवन किया जाए तो पेट दर्द, गैस, पेट के घाव, पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं।
69.बहुमूत्र रोग:- 10 ग्राम दालचीनी को पीसकर इसमें 10 ग्राम चीनी मिला लें और इसे पानी के साथ 2 ग्राम रात को सोते समय लें। इससे बहुमूत्र (बार-बार पेशाब आना) के रोग में लाभ होता है।

70. हैजा:- दालचीनी, तेजपात, रास्ना, अगर, सहजना, कड़वा कूठ, बच तथा शतावर-इन सबको बराबर मात्रा में नींबू के रस में बारीक पीसकर हैजा के रोगी के पेट पर लेप करने से दर्द सहित हैजा ठीक हो जाता है।

हाथ-पैरों की ऐंठन:- हाथ-पैरों की ऐंठन के रोगी को दालचीनी का तेल 1 से 2 बूंद रोजाना सेवन कराने से लाभ मिलता है।

71.बालरोग:- छोटे बच्चों को दस्त हो तो गर्म दूध में चुटकी भर पिसी हुई दालचीनी मिलाकर पिलाने से दस्त बंद हो जाते हैं।

72.सिर का दर्द:-

दालचीनी को पीसकर पानी के साथ सिर पर लेप की तरह से लगाने से ठण्डी हवा लगने से या सर्दी में घूमने से या ठण्ड लगने से होने वाला सिर का दर्द ठीक हो जाता है।
पित्तज या गर्मी के कारण होने वाले सिर के दर्द में दालचीनी, मिश्री और तेजपात को चावलों के पानी में पीसकर सूंघने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।
लगभग 5 या 6 बूंद दालचीनी के तेल को 2-3 चम्मच तिल के तेल में मिलाकर मालिश करने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।
दालचीनी को पानी में रगड़कर माथे पर लेप करने से सिर दर्द और तनाव दूर हो जाता है।
सर्दी के कारण सिरदर्द होने पर पानी में दालचीनी पीसकर गर्म करके ललाट और कनपटी पर लेप करने से लाभ होता है।
73.नाड़ी का दर्द:- 1 से 3 बूंद दालचीनी के तेल को सुबह-शाम मिश्री के साथ मिलाकर लेने और इसके तेल से नाड़ी दर्द में मालिश करने से सभी प्रकार के दर्द खत्म होते हैं।

74.याददाश्त कमजोर होना:- बराबर मात्रा में दालचीनी और मिश्री को लेकर पीसकर इसका चूर्ण बनाकर कपड़े में छान लें इसे रोजाना 3-4 ग्राम दूध के साथ लेने से याददाश्त मजबूत हो जाती है और भूलने की बीमारी दूर हो जाती है।

75.कण्ठरोहिणी:- दालचीनी के काढ़ा का अभ्यान्तरिक सेवन और गरारे करने से गले की जलन और संक्रमण दोनों रोग समाप्त हो जाते हैं।

76.बालरोगों की औषधि:- दालचीनी, इलायची, तेजपत्ता और नागकेसर को बारीक पीसकर और छानकर गाय के गोबर के रस और शहद में मिलाकर चटाने से बच्चों की वमन (उल्टी) बंद हो जाती है।

77.शरीर को मोटा और शक्तिशाली बनाना:- दालचीनी को बारीक पीसकर इसका चूर्ण बना लें। शाम को इसके लगभग 2 ग्राम चूर्ण को 250 मिलीलीटर दूध में डालकर 1 चम्मच शहद में मिलाकर पीने से शरीर की ताकत के साथ साथ मनुष्य के वीर्य में भी वृद्धि होती है।

78.पेचिश:-

लगभग 2 ग्राम पिसी हुई दालचीनी को ठण्डे पानी से फंकी लेने से दस्त बंद हो जाते हैं। गर्म पानी से लेने से पेचिश में लाभ होता है।

दालचीनी और सफेद कत्था (पान में लगाने का) बराबर मात्रा में पीसकर आधी चम्मच की फंकी 3 बार रोजाना ठण्डे पानी से लेने से अपच के कारण बार-बार होने वाले दस्त बंद हो जाते हैं। यह शहद में मिलाकर भी ले सकते हैं।

2 ग्राम दालचीनी और 2 ग्राम लौंग को पीसकर आधा गिलास पानी में उबालें इस पानी की दो-दो घूंट हर 1-1 घंटे के अन्तर से रोगी को पिलाने से पेचिश के रोग में लाभ मिलता है। इस प्रयोग से मल बंधकर आता है बार-बार शौच के लिए नहीं जाना पड़ता है। पेचिश व दस्त दोनों में यह लाभकारी होता है।

79.सांस में बदबू:- सांसों में आने वाली बदबू के लिए वाष्पीकृत, सल्फर यौगिक उत्तरदायी, होते हैं जैसे- हाइड्रोजन सल्फाइड, मिथाइल, मरकैप्टन आदि। इन यौगिकों के स्रोत में ऐसे बैक्टीरिया होते हैं, जो ऑक्सीजन के बिना भी जीवित रह सकते हैं। ये बैक्टीरिया मुंह की भीतरी दीवार की कोशिकाओं, जीभ, मसूढ़ों और दांतों की संधि के बीच रहते हैं। सुबह 2 कप पानी में 1 चम्मच शहद, आधा चम्मच दालचीनी पाउडर मिलाकर गरारे करने से दिन भर सांस में बदबू नहीं आएगी और ताजगी अनुभव होगी।

दालचीनी के नुकसान :

दालचीनी गर्म होती है। अत: इसे थोड़ी सी मात्रा में लेते हुए धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए। परन्तु यदि किसी प्रकार का दुष्प्रभाव या हानि हो तो सेवन को कुछ दिन में ही बंद कर देते हैं और दुबारा थोड़ी सी मात्रा में लेना शुरू करें।

वन्देमातरम

सूर्य की मिथुन संक्रांति 14 जून 2020:

सूर्य की मिथुन संक्रांति 14 जून 2020:

सूर्य का मित्र राशि मिथुन मे प्रवेश, देश मे व्यापार बढ़े। आर्थिक स्थिति सही होने से सौहाद्र का वातावरण बने।

 मंगल का मीन में प्रवेश 18 जून 2020:
गुरुदेव की राशि मीन में गुरु का प्रवेश। मीन में स्तिथ मंगल की मिथुन, कन्या तथा  तुला राशि पर दृष्टि। गुरु राशि मे स्थिति होने के कारण प्रजा में शांति, धर्म की स्थापना बढ़े।

 गुप्त नवरात्रि 22 जून 2020:
सन्यासियों की साधना का समय, तंत्र मंत्र की विशेष साधना के लिए शुभ समय।

भद्दली नवमी (अबूझ तिथि) 29 जून 2020 : स्वयं सिद्ध मुहूर्त, बिना कुछ सोचे विचार के कोई भी कार्य कर लीजिए।

वक्री शुक्र का उदय 9 जून 2020:
रुके हुए शुभ कार्य विवाह आदि प्रारम्भ होंगे।   1 जुलाई  हरि शयनी एकादशी पर देव के सोने के कारण सभी शुभ कार्य निषेध।

30 जून गुरु वक्री से मार्गी धनु राशि में प्रवेश 2020:
30 जून को धनु राशि में गुरु चले जाएंगें जिससे वह अपनी मूल स्थिति में आ जाएगें। जन्मस्थान, घर की ओर जाने (स्थान परिवर्तन) के योग आपके लिये बनेंगें। मकान बड़े बड़े भवनों का निर्माण, वस्त्रो का व्यापार, खाने पीने के व्यापार से लाभ के योग बने।

उपच्छाया ग्रहण:

उपच्छाया ग्रहण वास्तव में चंद्र ग्रहण नहीं होता।  प्रत्येक चंद्र ग्रहण के घटित होने से पहले चंद्रमा पृथ्वी की उपच्छाया में अवश्य प्रवेश करता है जिसे चंद्र मालिन्य कहा जाता है।

 इसके बाद ही वह पृथ्वी की वास्तविक छाया में प्रवेश करता है। तभी उसे वास्तविक ग्रहण कहा जाता है।

चंद्रमा के संक्रमण काल को चंद्र ग्रहण कहा जाता है।

 पूर्णिमा को चंद्रमा उपच्छाया में प्रवेश कर उपच्छाया शंकु से ही बाहर निकल जाता है।

इस उपच्छाया के समय चंद्रमा का विम्ब केबल धुंधला दिखाई पड़ता है, काला नहीं होता। इस धुंदलेपन को साधारण आंख से देख पाना संभव नहीं होता।

 धर्म शास्त्रों ने इस प्रकार के उप ग्रहण को चंद्र बिंदु पर मालिन्य में मातृ छाया पड़ने कारण उन्हें ग्रहण की कोटि में नहीं रखा।

 प्रत्येक चंद्रग्रहण घटित होने से पहले तथा बाद में भी चंद्रमा को पृथ्वी की इन उपच्छाया में से गुजरना पड़ता है, ग्रहण की संज्ञा नहीं दी जा सकती। यह ग्रहण होता ही नहीं है।



5 जून 2020, 05 जुलाई 2020 तथा 21 जून 2020 में केवल 21 जून 2020 के सूर्य ग्रहण की ही मान्यता होगी बाकी दोनो की नहीं।


सबसे पहला ग्रहण 5 जून 2020 शुक्रवार को भारत में उपच्छाया ग्रहण दृष्टि गोचर होगा।

5 जुलाई 2020 रविवार को दूसरा उपच्छाया ग्रहण भारत में दृष्टिगोचर नहीं होगा।

उपच्छाया चंद्रग्रहण है जो सनातन ज्योतिष में मान्य नहीं होता है।

सूर्य ग्रहण (कंकण सूर्यग्रहण या चूड़ामणि सूर्य ग्रहण) 21 जून 2020 :

 यह कंकण आकृति सूर्य ग्रहण 21 जून 2020 की प्रातः से दोपहर तक संपूर्ण भारत में खंडग्रास रूप में दिखाई देगा।

 इस ग्रहण की कंकण आकृति केवल उत्तरी राजस्थान, उत्तरी हरियाणा तथा उत्तराखंड राज्य के उत्तरी क्षेत्र में से गुजरेगी।

 भारत के अतिरिक्त यह ग्रहण दक्षिणी पूर्वी यूरोप ऑस्ट्रेलिया के केवल उत्तरी क्षेत्रों में अधिकतर अफ्रीका दक्षिण देशों को छोड़कर प्रशांत वा हिंद महासागर, मध्य पूर्वी एशिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, मध्य दक्षिणी चीन, फिलीपींस में दिखाई देगा।

 भूलोक पर इस कंकण ग्रहण का समय इस प्रकार होगा -

ग्रहण प्रारंभ:  09 बजकर 15 मिनट

 कंकण प्रारंभ:  10 बजकर 17 मिनट

 कंकण समाप्त:  14 बजकर 2 मिनट

 ग्रहण समाप्त:  15 बजकर 4 मिनट

 सूतक विचार: ग्रहण के सूतक का विचार 20 जून 2020 की रात्रि 9:16 से प्रारंभ हो जाएगा।

क्या करे क्या न करे :

 ग्रहण काल में भगवान सूर्य की उपासना, आदित्य हृदय स्त्रोत, सूर्याष्टक स्त्रोत तथा सूर्य स्त्रोतों का पाठ करना चाहिए।

 पका हुआ भोजन,कटी हुई सब्जियां ग्रहण काल में दूषित हो जाते हैं, परंतु तेल, घी, दूध, लस्सी, मक्खन, पनीर, अचार, चटनी, मुरब्बा आदि में तिल या कुश रख देने से यह ग्रहण काल में अशुद्ध नहीं होते। सूखे खाद्य पदार्थों में तिल या कुश डालने की आवश्यकता भी नहीं होती।

रोग शांति के लिए ग्रहण काल में श्री महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना शुभ रहेगा।

ग्रहण विशेष:

 कुछ वर्षों से टीवी चैनल तथा कुछ समाचार पत्रों द्वारा अपनी अपनी टीआरपी बढ़ाने के उद्देश्य से उपच्छाया ग्रहणों को भी ग्रहणों की कोटि में प्रदर्शित कर उनका प्रचार-प्रसार किया जा रहा है।

 वहां बैठे ऐंकरो तथा अल्पज्ञ पंडितों द्वारा उपच्छाया ग्रहणों द्वारा बारह राशियों पर पड़ने वाले काल्पनिक प्रभाव की विवेचना भी प्रारंभ की है।

समाज को अकारण ही भयभीत और गुमराह किया जा रहा है, वास्तव में छाया ग्रहण में ना तो अन्य वास्तविक ग्रहण की भांति पृथ्वी पर उसकी काली छाया पड़ती है ना ही इस सौरपिण्डो की भांति उसका वर्ण काला होता है।

 कुछ धुंधलापन आता है अतः धर्म निष्ठा एवं श्रद्धालु जनों को इन्हें ग्रहण कोटि में ना मानते हुए एवं ग्रहण संबंधी कार्य का विचार ना करते हुए साधारण तरीके से पूर्णिमा संबंधी साधारण व्रत, उपवास, दान करना चाहिए।

ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से

उपच्छाया ग्रहण:

उपच्छाया ग्रहण:

उपच्छाया ग्रहण वास्तव में चंद्र ग्रहण नहीं होता।  प्रत्येक चंद्र ग्रहण के घटित होने से पहले चंद्रमा पृथ्वी की उपच्छाया में अवश्य प्रवेश करता है जिसे चंद्र मालिन्य कहा जाता है।

 इसके बाद ही वह पृथ्वी की वास्तविक छाया में प्रवेश करता है। तभी उसे वास्तविक ग्रहण कहा जाता है।

चंद्रमा के संक्रमण काल को चंद्र ग्रहण कहा जाता है।

 पूर्णिमा को चंद्रमा उपच्छाया में प्रवेश कर उपच्छाया शंकु से ही बाहर निकल जाता है।

इस उपच्छाया के समय चंद्रमा का विम्ब केबल धुंधला दिखाई पड़ता है, काला नहीं होता। इस धुंदलेपन को साधारण आंख से देख पाना संभव नहीं होता।

 धर्म शास्त्रों ने इस प्रकार के उप ग्रहण को चंद्र बिंदु पर मालिन्य में मातृ छाया पड़ने कारण उन्हें ग्रहण की कोटि में नहीं रखा।

 प्रत्येक चंद्रग्रहण घटित होने से पहले तथा बाद में भी चंद्रमा को पृथ्वी की इन उपच्छाया में से गुजरना पड़ता है, ग्रहण की संज्ञा नहीं दी जा सकती। यह ग्रहण होता ही नहीं है।



5 जून 2020, 05 जुलाई 2020 तथा 21 जून 2020 में केवल 21 जुलाई 2020 के सूर्य ग्रहण की ही मान्यता होगी बाकी दोनो की नहीं।


सबसे पहला ग्रहण 5 जून 2020 शुक्रवार को भारत में उपच्छाया ग्रहण दृष्टि गोचर होगा।

5 जुलाई 2020 रविवार को दूसरा उपच्छाया ग्रहण भारत में दृष्टिगोचर नहीं होगा।

उपच्छाया चंद्रग्रहण है जो सनातन ज्योतिष में मान्य नहीं होता है।

सूर्य ग्रहण (कंकण सूर्यग्रहण या चूड़ामणि सूर्य ग्रहण) 21 जून 2020 :

 यह कंकण आकृति सूर्य ग्रहण 21 जून 2020 की प्रातः से दोपहर तक संपूर्ण भारत में खंडग्रास रूप में दिखाई देगा।

 इस ग्रहण की कंकण आकृति केवल उत्तरी राजस्थान, उत्तरी हरियाणा तथा उत्तराखंड राज्य के उत्तरी क्षेत्र में से गुजरेगी।

 भारत के अतिरिक्त यह ग्रहण दक्षिणी पूर्वी यूरोप ऑस्ट्रेलिया के केवल उत्तरी क्षेत्रों में अधिकतर अफ्रीका दक्षिण देशों को छोड़कर प्रशांत वा हिंद महासागर, मध्य पूर्वी एशिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, मध्य दक्षिणी चीन, फिलीपींस में दिखाई देगा।

 भूलोक पर इस कंकण ग्रहण का समय इस प्रकार होगा -

ग्रहण प्रारंभ:  09 बजकर 15 मिनट

 कंकण प्रारंभ:  10 बजकर 17 मिनट

 कंकण समाप्त:  14 बजकर 2 मिनट

 ग्रहण समाप्त:  15 बजकर 4 मिनट

 सूतक विचार: ग्रहण के सूतक का विचार 20 जून 2020 की रात्रि 9:16 से प्रारंभ हो जाएगा।

क्या करे क्या न करे :

 ग्रहण काल में भगवान सूर्य की उपासना, आदित्य हृदय स्त्रोत, सूर्याष्टक स्त्रोत तथा सूर्य स्त्रोतों का पाठ करना चाहिए।

 पका हुआ भोजन,कटी हुई सब्जियां ग्रहण काल में दूषित हो जाते हैं, परंतु तेल, घी, दूध, लस्सी, मक्खन, पनीर, अचार, चटनी, मुरब्बा आदि में तिल या कुश रख देने से यह ग्रहण काल में अशुद्ध नहीं होते। सूखे खाद्य पदार्थों में तिल या कुश डालने की आवश्यकता भी नहीं होती।

रोग शांति के लिए ग्रहण काल में श्री महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना शुभ रहेगा।

ग्रहण विशेष:

 कुछ वर्षों से टीवी चैनल तथा कुछ समाचार पत्रों द्वारा अपनी अपनी टीआरपी बढ़ाने के उद्देश्य से उपच्छाया ग्रहणों को भी ग्रहणों की कोटि में प्रदर्शित कर उनका प्रचार-प्रसार किया जा रहा है।

 वहां बैठे ऐंकरो तथा अल्पज्ञ पंडितों द्वारा उपच्छाया ग्रहणों द्वारा बारह राशियों पर पड़ने वाले काल्पनिक प्रभाव की विवेचना भी प्रारंभ की है।

समाज को अकारण ही भयभीत और गुमराह किया जा रहा है, वास्तव में छाया ग्रहण में ना तो अन्य वास्तविक ग्रहण की भांति पृथ्वी पर उसकी काली छाया पड़ती है ना ही इस सौरपिण्डो की भांति उसका वर्ण काला होता है।

 कुछ धुंधलापन आता है अतः धर्म निष्ठा एवं श्रद्धालु जनों को इन्हें ग्रहण कोटि में ना मानते हुए एवं ग्रहण संबंधी कार्य का विचार ना करते हुए साधारण तरीके से पूर्णिमा संबंधी साधारण व्रत, उपवास, दान करना चाहिए।

ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से

जानिए जून माह में पड़ने वाले धार्मिक उत्सवों क बारे में


जानिए जून माह में पड़ने वाले धार्मिक उत्सवों क बारे में 

इस साल जून महीने की शुरुआत ही गंगा दशहरा (1 जून) से होने वाली है.
गंगा दशहरा ज्येष्ठ शुक्ल दशमी ( 1 जून 2020) :
गंगा जी देवनदी हैं, वे मनुष्य मात्र के कल्याण के लिए धरती पर आई, धरती पर उनका अवतरण
ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी को हुआ।  अतः यह तिथि उनके नाम पर गंगा दशहरा के नाम से प्रसिद्ध हुई। ज्येष्ठ शुक्ल दशमी संवत्सर का मुख कही जाती है।
 ज्येष्ठस्य शुक्लादशमी संवत्सरमुखा स्मृता तस्यां स्नानं प्रकुर्वीत दानं चैव विशेषत:
 इस तिथि को गंगा स्नान एवं श्री गंगा जी के पूजन से 10 प्रकार के पापों  (3 कायिक, 4 वाचिक तथा 3 मानसिक) का नाश होता है इसलिए ऐसे दशहरा कहा गया।
पूजा में 10 प्रकार के पुष्प,  दशांग धूप, दीपक, 10 प्रकार के नैवेद्य, 10 तांबूल तथा 10 फल होने चाहिए, दक्षिणा भी 10 ब्राह्मणों को देना चाहिए।
निर्जला एकादशी: ( जून 2020)
ज्येष्ठ  मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी  निर्जला एकादशी कहलाती है।अन्य महीनों की एकादशी को फलाहार किया जाता है परंतु इस एकादशी को जलग्रहण करना भी निषेध है।  व्यास जी के आदेशानुसार भीमसेन ने एकादशी का व्रत किया था, इसलिए यह एकादशी *भीमसेनी एकादशी* के नाम से भी प्रसिद्ध है। स्कंद पुराण का मत है की ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष में जो शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि है, उसमें निर्जला उपवास कर जल से भरे हुए कुंभो तथा चीनी के सहित  ब्राह्मणों या मंदिर में देने से विष्णु के सानिध्य में हर्ष होता है।
प्रथम उपच्छाया चंद्रग्रहण
प्रथम उपच्छाया चंद्रग्रहण 5 / 6 जून 2020 (शुक्र / शनि) यह अच्छा या चंद्र ग्रहण आरंभ से समाप्ति तक भारत में देखा जा सकेगा। ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार कहते है ध्यान रहे उपच्छाया चंद्रग्रहण वास्तव में चंद्रग्रहण नहीं होता, इस ग्रहण की समय अवधि में चंद्रमा की चांदनी में कुछ धुंधलापन सा जाता है।
इसे ग्रहण की मान्यता नहीं होगी किसी तरीके का सूतक का विचार नहीं होगा
*कंकण (चूड़ामणिसूर्य ग्रहण (21 जून 2020 आषाढ़ अमावस रविवार)*:

आगे बताते हुए सौरभ शंखधार के अनुसार,
इस कंकण आकृति सूर्य ग्रहण 21 जून 2020 की प्रातः से दोपहर तक संपूर्ण भारत में खंडग्रास के रूप में दिखाई देगा। इस ग्रहण की कंकण आकृति केवल उत्तरी राजस्थान, उत्तरी हरियाणा तथा उत्तराखंड राज्य के उत्तरी क्षेत्र में से गुजरेगी। भारत के अतिरिक्त यह ग्रहण दक्षिण पूर्वी यूरोप,ऑस्ट्रेलिया के केवल उत्तरी क्षेत्रों गियाना, फिजी, अधिकतर अफ्रीका
(दक्षिण देशों को छोड़कर), प्रशांत ब हिंद महासागर, मध्य पूर्वी एशिया (अफगानिस्तान, पाकिस्तान, मध्य दक्षिण चीन, फिलीपींस) में दिखाई देगा।

ग्रहण का समय
ग्रहण प्रारंभ:            09:15:58
परम ग्रास (मध्य):    12:10:04
ग्रहण समाप्ति:         15:04:01
भड़ल्या नवमी के दो दिन बाद ही सो जाएंगे देवफिर पांच माह तक नहीं हो सकेंगे मांगलिक कार्य।
आषाढ़ मास (6 जून से 5 जुलाई) में पांच शनिवार तथा पांच रविवार आने से रविवारी संक्रांति (14 जून), 28 जून तक गुरु शुक्र मध्य *नव पंचक योग* रहने से तथा 21 जून को *रविवारी अमावस्या* के दिन *कंकण सूर्यग्रहण* घटित होने से आवश्यक वस्तुओं जैसे दूध, ईधन, सब्जियां, तेल आदि के भाव में अत्यधिक तेजी सामान्य लोगों में क्लिष्ट रोगों की उत्पत्ति, लोगों में पारस्परिक प्रेम की कमी तथा पूर्वोत्तर दिशा में कहीं राज भंग, अग्निकांड, युद्धआदि का भय हो।

जून माह में  पड़ने वाले ख़ास काल और दिन
  • गंगा दशहरा
  • निर्जला एकादशी 2 जून
  • उपच्छाया चंद्र ग्रहण ( 5/6 जून) : भारत मे अमान्य
  • मिथुन संक्रांति ( सूर्य का मिथुन राशि मे प्रवेश) 14 जून
  • मीन राशि मे मंगल का प्रवेश 18 जून
  • 21 जून कंकड़ सूर्य ग्रहण
  • गुप्त नवरात्रि 22 जून
  • भद्दली नवमी (अबूझ तिथि) 29 जून
  • गुरु का स्वराशि (धनु) में प्रवेश 30 जून

 

गंगा दशहरा ज्येष्ठ शुक्ल दशमी( 1 जून 2020)

गंगा दशहरा ज्येष्ठ शुक्ल दशमी( 1 जून 2020)

 गंगा जी देवनदी हैं, वे मनुष्य मात्र के कल्याण के लिए धरती पर आई, धरती पर उनका अवतरण ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी को हुआ।

 अतः यह तिथि उनके नाम पर गंगा दशहरा के नाम से प्रसिद्ध हुई।

ज्येष्ठ शुक्ल दशमी संवत्सर का मुख कही जाती है।

 ज्येष्ठस्य शुक्लादशमी संवत्सरमुखा स्मृता
तस्यां स्नानं प्रकुर्वीत दानं चैव विशेषत:

 इस तिथि को गंगा स्नान एवं श्री गंगा जी के पूजन से 10 प्रकार के पापों (3 कायिक, 4 वाचिक तथा 3 मानसिक) का नाश होता है इसलिए ऐसे दशहरा कहा गया।

 पूजा में 10 प्रकार के पुष्प,  दशांग धूप, दीपक, 10 प्रकार के नैवेद्य, 10 तांबूल तथा 10 फल होने चाहिए, दक्षिणा भी 10 ब्राह्मणों को देना चाहिए।

दशहरा में दस योग होते हैं, ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि, बुधवार, हस्त नक्षत्र,व्यतिपात, गर, आनंद, कन्या के चंद्रमा और वृष के सूर्य।

 उसमें जिस दिन योग अधिक हो तथा दशमी पूर्वाहन में मिलती हो उस दिन दशहरा करें।

 यदि दो दिन पूर्व में दशमी तिथि प्राप्त होने पर जिस दिन योग बाहुल्य हो उस दिन करें।

यहां पर सोमवार, मंगलवार तथा बुधवार का कल्पभेद से व्यवस्था है, और इस दशमी को जिस दिन योग बाहुल्य हो उसी को ग्रहण करें, क्योंकि योगाधिक्य में फलाधिक्य अधिक होता है।

निर्जला एकादशी: (२ जून 2020)

ज्येष्ठ  मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी कहलाती है।

 अन्य महीनों की एकादशी को फलाहार किया जाता है परंतु इस एकादशी को जलग्रहण करना भी निषेध है।

  व्यास जी के आदेशानुसार भीमसेन ने एकादशी का व्रत किया था, इसलिए यह एकादशी भीमसेनी एकादशी के नाम से भी प्रसिद्ध है।

स्कंद पुराण का मत है की ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष में जो शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि है, उसमें निर्जला उपवास कर जल से भरे हुए कुंभो तथा चीनी के सहित  ब्राह्मणों या मंदिर में देने से विष्णु के सानिध्य में हर्ष होता है।

विशेष:

आषाढ़ मास (6 जून से 5 जुलाई) में पांच शनिवार तथा पांच रविवार आने से रविवारी संक्रांति (14 जून), 28 जून तक गुरु शुक्र मध्य नव पंचक योग रहने से तथा 21 जून को रविवारी अमावस्या के दिन कंकण सूर्यग्रहण घटित होने से आवश्यक वस्तुओं जैसे दूध, ईधन, सब्जियां, तेल आदि के भाव में अत्यधिक तेजी सामान्य लोगों में क्लिष्ट रोगों की उत्पत्ति, लोगों में पारस्परिक प्रेम की कमी तथा पूर्वोत्तर दिशा में कहीं राज भंग, अग्निकांड, युद्धआदि का भय हो।

शुक्र अस्त 31 मई 2020:

शुक्र ग्रह 31 मई  2020 रविवार को पश्चिम में अस्त हो जाएंगे। शुक्र ग्रह के अस्त होने से विवाह जैसे सभी मांगलिक कार्य बंद हो जाएंगे।

 शुक्र ग्रह का उदय 9 जून 2020 को होगा, इसके बाद मांगलिक कार्य हो सकेंगे।

शुक्र ग्रह का वर्तमान समय में भ्रमण अपनी राशि वृष में रोहिणी नक्षत्र में हो रहा है।

 इसी नक्षत्र में सूर्य ग्रह के आ जाने के कारण शुक्र ग्रह 31 मई 2020 को पश्चिम दिशा में शाम 7:16 बजे अस्त हो जाएंगे। इसका उदय 9 जून 2020 को पूरव दिशा में होगा।

शुक्र के अस्त होने से महंगाई बढ़ेगी और सूती, चावल, दूध, दही, घी में तेजी का रुख रहेगा।

 लग्नेश शुक की महादशा, अंतर्दशा में शुक्र अस्त होने से सभी कार्य मे विलंब होने के योग बनेंगे।

जन्मपत्री में अकारक ग्रह शुक्र सभी कार्यो का समाधान करने के योग बनेंगे।

 निषेध कार्य:

शुक्र ग्रह के अस्त होने तक विवाह, मुंडन, नूतन गृह प्रवेश, निर्माण कार्य प्रारंभ करना शास्त्र सम्मत नहीं रहता है।

ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से

नवतपा (नौतपा) विशेष

नवतपा (नौतपा) विशेष
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प्रतिवर्ष एक प्राकर्तिक खगोलीय घटनाहोती है जिसे नौतपा कहते हैं।  ज्येष्ठ महीने के शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि यानी 25 मई को सूर्य कृतिका से रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करेगा और 8 जून तक इसी नक्षत्र में रहेगा। सूर्य के नक्षत्र बदलते ही नौतपा शुरू हो जाएगा। इसकी वजह यह है कि इस दौरान सूर्य की लंबवत किरणें धरती पर पड़ती हैं। लेकिन इस बार शुक्र तारा अस्त होने से इसका प्रभाव कम रहेगा।

क्या होता है नौतपा, इसे समझते हैं।

सूर्य के रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करते ही नौतपा शुरू हो जाता है, विगत कुछ वर्षों से सूर्य नारायण लगभग 25 मई को ही रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश कर रहे थे इस वर्ष भी सूर्यदेव रोहिणी नक्षत्र में 24 मई की रात्रि को 2 बजकर 32 मिनट पर प्रवेश करेगें जो 8 जून तक इसी नक्षत्र में रहेगा।
इन दिनों के प्रथम 9 दिन यानी 25 मई से 2 जून तक नवतपा माना जायेगा।

नौतपा साल के वह 9 दिन होते है जब सूर्य पृथ्वी के सबसे नजदीक रहता है जिस कारण से इन 9 दिनों में भीषण गर्मी पड़ती है इसी कारण से इसे नौतपा कहते हैं।

ज्योतिष गणना के अनुसार, जब सूर्य रोहिणी नक्षत्र में 15 दिनों के लिए आता है तो उन पंद्रह दिनों के पहले नौ दिन सर्वाधिक गर्मी वाले होते हैं। इन्हीं शुरुआती नौ दिनों को नौतपा के नाम से जाना जाता है। खगोल विज्ञान के अनुसार, इस दौरान धरती पर सूर्य की किरणें सीधी लम्बवत पड़ती हैं। जिस कारण तापमान अधिक बढ़ जाता है। कई ज्योतिषी मानते हैं कि यदि नौतपा के सभी दिन पूरे तपें, तो यह अच्छी बारिश का संकेत होता है।

सूर्य के वृष राशि के 10 अंश से 23 अंश 40 कला तक नौतपा कहलाता है। इस दौरान तेज गर्मी रहने पर बारिश के अच्छे योग बनते है। सूर्य 8 जून तक 23 अंश 40 कला तक रहेगा।

दरअसल रोहिणी नक्षत्र का अधिपति ग्रह चंद्रमा होता है। सूर्य तेज और प्रताप का प्रतीक माना जाता है जबकि चंद्र शीतलता का प्रतीक होता है। सूर्य जब चंद्र के नक्षत्र रोहिणी में प्रवेश करता है तो सूर्य इस नक्षत्र को अपने प्रभाव में ले लेता है जिसके कारण ताप बहुत अधिक बढ़ जाता है। इस दौरान ताप बढ़ जाने के कारण पृथ्वी पर आंधी और तूफान आने लगते है।  
इन दिनों में शरीर तेज़ी से डिहाइड्रेट होता है जिसके कारण डायरिया, पेचिस, उल्टियां होने की संभावना बढ़ जाती है अतः नीम्बू पानी, लस्सी, मट्ठा (छांछ), खीरा, ककड़ी, तरबूज, खरबूजे का भरपूर प्रयोग करें, बाहर निकलते समय सिर को ढक कर रखें अन्यथा बाल बहुत तेज़ी से सफेद होंगे, झड़ेंगे।

एक दूसरे दृष्टिकोण के अनुसार चंद्रमा जब ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष में आर्द्रा से स्वाति नक्षत्र तक अपनी स्थितियों में हो एवं तीव्र गर्मी पड़े, तो वह नवतपा है। मानना है कि सूर्य वृष राशि में ही पृथ्वी पर आग बरसाता है और खगोल शास्त्र के अनुसार वृषभ तारामण्डल में यह नक्षत्र हैं कृतिका, रोहिणी और मृगशिरा (वृषभो बहुलाशेषं रोहिण्योऽर्धम् च मृगशिरसः) जिसमें कृतिका सूर्य, रोहिणी चंद्र, मृगशिरा मंगल अधिकार वाले नक्षत्र हैं इन तीनों नक्षत्रों में स्थित सूर्य गरमी ज्यादा देता है ।

अब प्रश्न यह कि इन तीनों नक्षत्रों में सर्वाधिक गरम नक्षत्र अवधि कौन होगा इसके पीछे खगोलीय आधार है इस अवधि मे सौर क्रांतिवृत्त में शीत प्रकृति रोहिणी नक्षत्र सबसे नजदीक का नक्षत्र होता है।
जिसके कारण सूर्य गति पथ में इस नक्षत्र पर आने से सौर आंधियों में वृद्धि होना स्वाभाविक है इसी कारण परिस्थितिजन्य सिद्धांत कहता है कि जब सूर्य वृष राशि में रोहिणी नक्षत्र में आता है उसके बाद के नव चंद्र नक्षत्रों का दिन नवतपा है ।

नौतपा की पौराणिक परंपरा
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परंरपरा के अनुसार नौतपा के दौरान महिलाएं हाथ पैरों में मेहंदी लगाती हैं। क्योंकि मेहंदी की तासीर ठंडी होने से तेज गर्मी से राहत मिलती है। इन दिनों में पानी खूब पिया जाता है और जल दान भी किया जाता है ताकि पानी की कमी से लोग बीमार न हो। इस तेज गर्मी से बचने के लिए दही, मक्खन और दूध का उपयोग ज्यादा किया जाता है। इसके साथ ही नारियल पानी और ठंडक देने वाली दूसरी और भी चीजें खाई जाती हैं।

शुक्र तारा अस्त होने का प्रभाव
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इस बार नौतपा के दौरान 30 मई को शुक्र ग्रह वक्री होकर अपनी ही राशि में अस्त हो जाएगा और सूर्य के साथ रहेगा। रोहिणी नक्षत्र का का स्वामी ग्रह चंद्रमा है। सूर्य के साथ शुक्र भी वृषभ राशि में रहेगा। शुक्र रस प्रधान ग्रह है, इसलिए वह गर्मी से राहत भी दिलाएगा। इसलिए देश के कुछ हिस्सों में बूंदाबांदी और कुछ जगहों पर तेज हवा और आंधी-तूफान के साथ बारीश होने की संभावना ज्यादा है। नौतपा के आखिरी दो दिन तेज हवा-आंधी चलने व बारिश होने के भी योग बन रहे हैं। वराहमिहिर के बृहत्संहिता ग्रंथ में ने बताया है कि ग्रहों के अस्त होने से मौसम में बदलाव होता है।

बारिश के योग
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इस वर्ष प्रमादी नामक संवत्सर के राजा बुध है और रोहिणी का निवास संधि में है। इससे बारीश तो समय पर आ जाएगी लेकिन कहीं पर ज्यादा तो कहीं पर कम बारिश हो सकती है। इस बार देश के रेगिस्तानी और पर्वतीय इलाकों में ज्यादा बारीश हो सकती है। बारीश के कारण अनाज और धान की पैदावार अच्छी रहेगी। धान्य, दूध व पेय पदार्थों में तेजी रहेगी। जौ, गेहूं, राई, सरसों, चना, बाजरा, मूंग की पैदावार आशानुकूल होगी।

ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से

जून 2020 में होने वाले परिवर्तन:

जून 2020 में होने वाले परिवर्तन:

गंगा दशहरा 1 जून

निर्जला एकादशी 2 जून

उपच्छाया चंद्र ग्रहण ( 5/6 जून) : भारत मे अमान्य

मिथुन संक्रांति ( सूर्य का मिथुन राशि मे प्रवेश) 14 जून

मीन राशि मे मंगल का प्रवेश 18 जून

21 जून कंकड़ सूर्य ग्रहण

गुप्त नवरात्रि 22 जून

भद्दली नवमी (अबूझ तिथि) 29 जून

गुरु का स्वराशि (धनु) में प्रवेश 30 जून


गंगा दशहरा ज्येष्ठ शुक्ल दशमी( 1 जून 2020)

 गंगा जी देवनदी हैं, वे मनुष्य मात्र के कल्याण के लिए धरती पर आई, धरती पर उनका अवतरण ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी को हुआ।

 अतः यह तिथि उनके नाम पर गंगा दशहरा के नाम से प्रसिद्ध हुई।

ज्येष्ठ शुक्ल दशमी संवत्सर का मुख कही जाती है।

 ज्येष्ठस्य शुक्लादशमी संवत्सरमुखा स्मृता
तस्यां स्नानं प्रकुर्वीत दानं चैव विशेषत:

 इस तिथि को गंगा स्नान एवं श्री गंगा जी के पूजन से 10 प्रकार के पापों (3 कायिक, 4 वाचिक तथा 3 मानसिक) का नाश होता है इसलिए ऐसे दशहरा कहा गया।

 पूजा में 10 प्रकार के पुष्प,  दशांग धूप, दीपक, 10 प्रकार के नैवेद्य, 10 तांबूल तथा 10 फल होने चाहिए, दक्षिणा भी 10 ब्राह्मणों को देना चाहिए।

दशहरा में दस योग होते हैं, ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि, बुधवार, हस्त नक्षत्र,व्यतिपात, गर, आनंद, कन्या के चंद्रमा और वृष के सूर्य।

 उसमें जिस दिन योग अधिक हो तथा दशमी पूर्वाहन में मिलती हो उस दिन दशहरा करें।

 यदि दो दिन पूर्व में दशमी तिथि प्राप्त होने पर जिस दिन योग बाहुल्य हो उस दिन करें।

यहां पर सोमवार, मंगलवार तथा बुधवार का कल्पभेद से व्यवस्था है, और इस दशमी को जिस दिन योग बाहुल्य हो उसी को ग्रहण करें, क्योंकि योगाधिक्य में फलाधिक्य अधिक होता है।


निर्जला एकादशी: (२ जून 2020)

ज्येष्ठ  मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी कहलाती है।

 अन्य महीनों की एकादशी को फलाहार किया जाता है परंतु इस एकादशी को जलग्रहण करना भी निषेध है।

  व्यास जी के आदेशानुसार भीमसेन ने एकादशी का व्रत किया था, इसलिए यह एकादशी भीमसेनी एकादशी के नाम से भी प्रसिद्ध है।

स्कंद पुराण का मत है की ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष में जो शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि है, उसमें निर्जला उपवास कर जल से भरे हुए कुंभो तथा चीनी के सहित  ब्राह्मणों या मंदिर में देने से विष्णु के सानिध्य में हर्ष होता है।

प्रथम उपच्छाया चंद्रग्रहण:

प्रथम उपच्छाया चंद्रग्रहण 5 / 6 जून 2020 (शुक्र / शनि) यह अच्छा या चंद्र ग्रहण आरंभ से समाप्ति तक भारत में देखा जा सकेगा।

 ध्यान रहे उपच्छाया चंद्रग्रहण वास्तव में चंद्रग्रहण नहीं होता, इस ग्रहण की समय अवधि में चंद्रमा की चांदनी में कुछ धुंधलापन सा जाता है।

इसे ग्रहण की मान्यता नहीं होगी। किसी तरीके का सूतक का विचार नहीं होगा।


कंकण (चूड़ामणि) सूर्य ग्रहण (21 जून 2020 आषाढ़ अमावस रविवार):

 इस कंकण आकृति सूर्य ग्रहण 21 जून 2020 की प्रातः से दोपहर तक संपूर्ण भारत में खंडग्रास के रूप में दिखाई देगा।

 इस ग्रहण की कंकण आकृति केवल उत्तरी राजस्थान, उत्तरी हरियाणा तथा उत्तराखंड राज्य के उत्तरी क्षेत्र में से गुजरेगी।

भारत के अतिरिक्त यह ग्रहण दक्षिण पूर्वी यूरोप,ऑस्ट्रेलिया के केवल उत्तरी क्षेत्रों गियाना, फिजी, अधिकतर अफ्रीका (दक्षिण देशों को छोड़कर), प्रशांत ब हिंद महासागर, मध्य पूर्वी एशिया (अफगानिस्तान, पाकिस्तान, मध्य दक्षिण चीन, फिलीपींस) में दिखाई देगा।

ग्रहण का समय:

ग्रहण प्रारंभ:            09:15:58
परम ग्रास (मध्य):    12:10:04
ग्रहण समाप्ति:         15:04:01


भड़ल्या नवमी के दो दिन बाद ही सो जाएंगे देव, फिर पांच माह तक नहीं हो सकेंगे मांगलिक कार्य।

आषाढ़ मास (6 जून से 5 जुलाई) में पांच शनिवार तथा पांच रविवार आने से रविवारी संक्रांति (14 जून), 28 जून तक गुरु शुक्र मध्य नव पंचक योग रहने से तथा 21 जून को रविवारी अमावस्या के दिन कंकण सूर्यग्रहण घटित होने से आवश्यक वस्तुओं जैसे दूध, ईधन, सब्जियां, तेल आदि के भाव में अत्यधिक तेजी सामान्य लोगों में क्लिष्ट रोगों की उत्पत्ति, लोगों में पारस्परिक प्रेम की कमी तथा पूर्वोत्तर दिशा में कहीं राज भंग, अग्निकांड, युद्धआदि का भय हो।

ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से

वट सावित्री व्रत ( ज्येष्ठ कृष्णा अमावस्या )



वट सावित्री व्रत ( ज्येष्ठ कृष्णा अमावस्या ), शनि जयंती 22 मई 2020

वट सावित्री व्रत ( ज्येष्ठ कृष्णा अमावस्या ), शनि जयंती  22 मई 2020

वट सावित्री व्रत ( ज्येष्ठ कृष्णा अमावस्या ), शनि जयंती  22 मई 2020

 वटवृक्ष के मूल में भगवान ब्रह्मा, मध्य में विष्णु तथा अग्र भाग में देवाधिदेव शिव का वास है।

देवी सावित्री भी वट वृक्ष में प्रतिष्ठित रहती हैं।  प्रयागराज में गंगा के तट पर वेणी माधव के निकट अक्षय वट प्रतिष्ठित है।

 भक्त शिरोमणि तुलसीदास ने संगम में स्थित अक्षय वट को तीर्थराज कहा,  इसी प्रकार तीर्थों में पंचवटी का स्थान विशेष है।

पांच वट से युक्त स्थान को पंचवटी कहा गया। हानिकारक गैसों को नष्ट कर वातावरण को शुद्ध करने में वटवृक्ष का विशेष महत्व है।

 वट वृक्ष की औषधि के रूप में उपयोगिता से सभी लोग परिचित हैं, जैसे वटवृक्ष दीर्घकाल तक अक्षय बना रहता है उसी तरह दीर्घायु और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए वटवृक्ष की साधना की जाती है।

 इसके नीचे सावित्री ने अपने पति को पुनर्जीवित किया था तब से यह व्रत वट सावित्री व्रत के नाम से जाना जाता है।

 सौभाग्यवती स्त्रियों का भी पूजन होता है कुछ महिलाएं केवल अमावस्या कोई एक दिन का व्रत करती हैं, अमावस्या को उपवास करना चाहिए अगले दिन पारण करना चाहिए ऐसा भी मत है।

वट सावित्री अमावस्या मुहूर्त:

अमावस्या तिथि प्रारम्भ - मई 21, 2020 को रात्रि 21:35  बजे
अमावस्या तिथि समाप्त - मई 22, 2020 को रात्रि 23:08  बजे

महत्व:

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह माना जाता है कि वट (बरगद) का पेड़ ‘त्रिमूर्ति’ को दर्शाता है, जिसका अर्थ है भगवान विष्णु, भगवान ब्रह्माऔर
भगवान शिव का प्रतीक होना। इस प्रकार, बरगद के पेड़ की पूजा करने से भक्तों को सौभाग्य प्राप्त होता है।

इस व्रत के महत्व और महिमा का उल्लेख कई धर्मग्रंथों और पुराणों जैसे स्कंद पुराण, भविष्योत्तर पुराण, महाभारत आदि में भी मिलता है।

वट सावित्री व्रत और पूजा हिंदू विवाहित महिलाओं द्वारा की जाती है ताकि उनके पति को समृद्धि, अच्छे स्वास्थ्य और दीर्घायु की प्राप्ति हो।

वट सावित्री व्रत का पालन एक विवाहित महिला द्वारा अपने पति के प्रति समर्पण और सच्चे प्यार का प्रतीक है।

हिन्दू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या को शनि जयंती को भी मनाई जाती है।

शनि के अधिदेवता प्रजापति ब्रह्मा और प्रत्यधिदेवता यम हैं।

 फलित ज्योतिष के अनुसार शनि को न्यायाधीश माना जाता है।

नव ग्रहों में शनि का स्थान सातवां है। ये एक राशि में तीस महीने तक रहते हैं तथा मकर और कुंभ राशि के स्वामी माने जाते हैं।

 शनि की महादशा 19 वर्ष तक रहती है।

शनि जयंती पूरे उत्तर भारत में पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाई जाती है।

दक्षिणी भारत के अमावस्यांत पंचांग के अनुसार शनि जयंती वैशाख अमावस्या को मनाई जाती है। 

उत्तर भारत में ज्येष्ठ अमावस्या को शनि जयंती के साथ-साथ वट सावित्री व्रत भी रखा जाता है।

शनि शांति के उपाय:

पितरो की शांति के लिए तथा शनि के कुप्रभावों को दूर करने के लिए अमावस्या सर्वोत्तम है।

श्री हनुमान जी की साधना से शनि अनुकूल फल ही देते हैं। हनुमान चालीसा, बजरंग बाण पढ़िए।

न्यायप्रिये देव शनि हमेशा ही बड़े बूढ़ों की सेवा से प्रसन्न हुए हैं।

गरीबो की सेवा कीजिये, बड़े लोगो का सम्मान कीजिये।

प्रत्येक शनिवार को वट और पीपल वृक्ष के नीचे सूर्योदय से पूर्व कड़वे तेल का दीपक जलाकर शुद्ध कच्चा दूध एवं धूप अर्पित करें।

 यदि शनि की साढ़ेसाती से ग्रस्त हैं तो शनिवार को अंधेरा होने के बाद पीपल पर मीठा जल अर्पित कर सरसों के तेल का दीपक और अगरबत्ती लगाएं और वहीं बैठकर क्रमशः हनुमान, भैरव और शनि चालीसा का पाठ करें और पीपल की सात परिक्रमा करें।

ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से

ज्योतिष के अनुसार बड़े बदलाव का समय, होंगे कई परिवर्तन (https://www.theindiarise.com/)

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ये समय है बदलाव का। इंसान,प्रकृति ,वन्य जीव, सब बदल रहे है अपनी अपनी चाल ढाल और इसी तरह हमारे गृह नक्षत्र भी बदल रहे है अपनी चाल, अपना घर व अपना स्वाभाव जो असर डालेगा मौसम, जन जीवन व  देश विदेश की परिस्थिति पे ।
ज्येष्ठ मास (8 मई से 5 जून 2020) तक 5 शुक्रवार होने से, 29 मई तक कालसर्प योग रहने से तथा गुरु शनि के योग से विश्व में युद्ध से वातावरण अशांत एवं  असमंजसता बढ़े।  दूध, तेल, जल, घी आदि दैनिक उपयोगी वस्तुओं में विशेष तेजी के योग बने। मिथुन के राहु के प्रभाव के कारण दैवीय दुर्घटनाये जैसे भू स्खलन, जल द्वारा क्षति, आंधी ओले बिना समय बरसात का होना भी संभव हैं जो हानिकारक होगा।
ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार बताते है कि 14 मई को सूर्य वृष राशि में 5:33 बजे शाम को प्रवेश करेगा।
 वृष संक्रान्ति का पुण्य काल 14 मई को 10:19 बजे सुबह से शुरु होकर शाम 5:33 बजे शाम तक रहेगा। सूर्य जब वृषभ राशि में संक्रमण करते हैं तो इसे वृष संक्रांति कहा जाता है इस दिन सूर्योदय से पहले किसी पवित्र नदी में स्नान और व्रत का  विधान है, इस दिन सूर्य देव की पूजा की जाती है। जहां सूर्य देव 15 जून तक रहेंगे। सूर्य का राशि परिवर्तन संक्रांति कहा जाता है।
सूर्य के वृषभ राशि में प्रवेश के समय की कुंडली में सूर्य का शुभ ग्रहों बुध और शुक्र से युत होकर मंगल से दृष्ट होना दक्षिण भारत में मानसून  पूर्व की अच्छी वर्षा का संकेत है।
उत्तर भारत में मंगल और सूर्य के इस गोचर के प्रभाव से तापमान 14 मई के बाद तेज़ी से बढ़ेगा जिसके फलस्वरूप कई स्थानों पर व्यापारिक गतिविधियां तेज होंगी। वे कहते है, कि जहाँ सोने-चांदी के रुख में तेजी आएगी वहीँ पानी की कमी से जनता त्रस्त हो सकती है।
सूत्रों क अनुसार 14 मई से 8 जून तक गर्मी अपने प्रचंड रूप में दिखाएगी, दैवीय आपदा ( अति वृष्टि, भूकंप, सुनामी, चक्रवात) योग बनेंगे। सूर्य की वृषभ संक्राति में 25 मई से *नौतपा*(आम भाषा में कहें तो वो नौ दिन जिन में में सूर्य कि तपन अपने चरम पे होती है ) शुरू हो रहा है। इस दिन सूर्य रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करेंगे। और यह नौतपा 8 जून तक चलेंगा।