21 जून सूर्य का दक्षिणायन में प्रवेश। सबसे बड़ा दिन सबसे छोटी रात।
जितने समय ग्रहण रहे सभी लोग देसी घी का अखंड दिया जलाए, निश्चित ही शुभता आएगी।
ये ग्रहण मृगशिरा, आर्द्रा नक्षत्र और मिथुन राशि में लगने जा रहा है। ग्रहण के दौरान 6 ग्रह बृहस्पति, शनि, मंगल, शुक्र, राहु और केतु वक्री अवस्था में होंगे। ये न तो आंशिक ग्रहण होगा और न ही पूर्ण।
पूर्ण सूर्यग्रहण एक दुर्लभ दृश्य है। जो हर 18 महीने में एक बार ही होता है। पूर्ण सूर्य ग्रहण के लिए, सूर्य को चंद्रमा द्वारा कम से कम 90 प्रतिशत तक ढका होना जरूरी होता है।
इसी तरह का सूर्य ग्रहण 1995 में भी देखा गया था।
इस ग्रहण की कंकणाकृती केवल उत्तरी राजस्थान, उत्तरी हरियाणा तथा उत्तराखंड राज्य के उत्तरी क्षेत्र में से गुजरेगी।
एक कंकड़ मार्ग वाले क्षेत्रों में इस ग्रहण का परम ग्रास लगभग 99.4% रहेगा, जबकि शेष उत्तरी भारत में परम ग्रास सामान्यता 90% और कई स्थानों पर इससे कुछ अधिक भी होगा।
मध्य भारत में इसका परम ग्रास 70 से 90% तथा दक्षिणी प्रांतों में 30 से 70% तक पाया जाता है।
यदि राहु अपनी उच्च राशि मिथुन में नहीं होता तो इस तरह के संक्रमण के योग नहीं बनते।
मिथुन के राहु तथा सूर्य के मिथुन राशि में ही ग्रहण लगने के कारण इस वायरस के संक्रमण में तेजी आएगी। इसके साथ ही 30 जून को जब गुरु अपनी धनु राशि में मार्गी होंगे तब रिकवरी के योग भी तेज होंगे।
यह साल 2020 का पहला और आखिरी ग्रहण होगा जिसका प्रभाव पूरे विश्व मे देखने को मिलेगा।
ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से।
जितने समय ग्रहण रहे सभी लोग देसी घी का अखंड दिया जलाए, निश्चित ही शुभता आएगी।
ये ग्रहण मृगशिरा, आर्द्रा नक्षत्र और मिथुन राशि में लगने जा रहा है। ग्रहण के दौरान 6 ग्रह बृहस्पति, शनि, मंगल, शुक्र, राहु और केतु वक्री अवस्था में होंगे। ये न तो आंशिक ग्रहण होगा और न ही पूर्ण।
पूर्ण सूर्यग्रहण एक दुर्लभ दृश्य है। जो हर 18 महीने में एक बार ही होता है। पूर्ण सूर्य ग्रहण के लिए, सूर्य को चंद्रमा द्वारा कम से कम 90 प्रतिशत तक ढका होना जरूरी होता है।
इसी तरह का सूर्य ग्रहण 1995 में भी देखा गया था।
इस ग्रहण की कंकणाकृती केवल उत्तरी राजस्थान, उत्तरी हरियाणा तथा उत्तराखंड राज्य के उत्तरी क्षेत्र में से गुजरेगी।
एक कंकड़ मार्ग वाले क्षेत्रों में इस ग्रहण का परम ग्रास लगभग 99.4% रहेगा, जबकि शेष उत्तरी भारत में परम ग्रास सामान्यता 90% और कई स्थानों पर इससे कुछ अधिक भी होगा।
मध्य भारत में इसका परम ग्रास 70 से 90% तथा दक्षिणी प्रांतों में 30 से 70% तक पाया जाता है।
यदि राहु अपनी उच्च राशि मिथुन में नहीं होता तो इस तरह के संक्रमण के योग नहीं बनते।
मिथुन के राहु तथा सूर्य के मिथुन राशि में ही ग्रहण लगने के कारण इस वायरस के संक्रमण में तेजी आएगी। इसके साथ ही 30 जून को जब गुरु अपनी धनु राशि में मार्गी होंगे तब रिकवरी के योग भी तेज होंगे।
यह साल 2020 का पहला और आखिरी ग्रहण होगा जिसका प्रभाव पूरे विश्व मे देखने को मिलेगा।
ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से।
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