उपच्छाया ग्रहण:
उपच्छाया ग्रहण वास्तव में चंद्र ग्रहण नहीं होता। प्रत्येक चंद्र ग्रहण के घटित होने से पहले चंद्रमा पृथ्वी की उपच्छाया में अवश्य प्रवेश करता है जिसे चंद्र मालिन्य कहा जाता है।
इसके बाद ही वह पृथ्वी की वास्तविक छाया में प्रवेश करता है। तभी उसे वास्तविक ग्रहण कहा जाता है।
चंद्रमा के संक्रमण काल को चंद्र ग्रहण कहा जाता है।
पूर्णिमा को चंद्रमा उपच्छाया में प्रवेश कर उपच्छाया शंकु से ही बाहर निकल जाता है।
इस उपच्छाया के समय चंद्रमा का विम्ब केबल धुंधला दिखाई पड़ता है, काला नहीं होता। इस धुंदलेपन को साधारण आंख से देख पाना संभव नहीं होता।
धर्म शास्त्रों ने इस प्रकार के उप ग्रहण को चंद्र बिंदु पर मालिन्य में मातृ छाया पड़ने कारण उन्हें ग्रहण की कोटि में नहीं रखा।
प्रत्येक चंद्रग्रहण घटित होने से पहले तथा बाद में भी चंद्रमा को पृथ्वी की इन उपच्छाया में से गुजरना पड़ता है, ग्रहण की संज्ञा नहीं दी जा सकती। यह ग्रहण होता ही नहीं है।
5 जून 2020, 05 जुलाई 2020 तथा 21 जून 2020 में केवल 21 जुलाई 2020 के सूर्य ग्रहण की ही मान्यता होगी बाकी दोनो की नहीं।
सबसे पहला ग्रहण 5 जून 2020 शुक्रवार को भारत में उपच्छाया ग्रहण दृष्टि गोचर होगा।
5 जुलाई 2020 रविवार को दूसरा उपच्छाया ग्रहण भारत में दृष्टिगोचर नहीं होगा।
उपच्छाया चंद्रग्रहण है जो सनातन ज्योतिष में मान्य नहीं होता है।
सूर्य ग्रहण (कंकण सूर्यग्रहण या चूड़ामणि सूर्य ग्रहण) 21 जून 2020 :
यह कंकण आकृति सूर्य ग्रहण 21 जून 2020 की प्रातः से दोपहर तक संपूर्ण भारत में खंडग्रास रूप में दिखाई देगा।
इस ग्रहण की कंकण आकृति केवल उत्तरी राजस्थान, उत्तरी हरियाणा तथा उत्तराखंड राज्य के उत्तरी क्षेत्र में से गुजरेगी।
भारत के अतिरिक्त यह ग्रहण दक्षिणी पूर्वी यूरोप ऑस्ट्रेलिया के केवल उत्तरी क्षेत्रों में अधिकतर अफ्रीका दक्षिण देशों को छोड़कर प्रशांत वा हिंद महासागर, मध्य पूर्वी एशिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, मध्य दक्षिणी चीन, फिलीपींस में दिखाई देगा।
भूलोक पर इस कंकण ग्रहण का समय इस प्रकार होगा -
ग्रहण प्रारंभ: 09 बजकर 15 मिनट
कंकण प्रारंभ: 10 बजकर 17 मिनट
कंकण समाप्त: 14 बजकर 2 मिनट
ग्रहण समाप्त: 15 बजकर 4 मिनट
सूतक विचार: ग्रहण के सूतक का विचार 20 जून 2020 की रात्रि 9:16 से प्रारंभ हो जाएगा।
क्या करे क्या न करे :
ग्रहण काल में भगवान सूर्य की उपासना, आदित्य हृदय स्त्रोत, सूर्याष्टक स्त्रोत तथा सूर्य स्त्रोतों का पाठ करना चाहिए।
पका हुआ भोजन,कटी हुई सब्जियां ग्रहण काल में दूषित हो जाते हैं, परंतु तेल, घी, दूध, लस्सी, मक्खन, पनीर, अचार, चटनी, मुरब्बा आदि में तिल या कुश रख देने से यह ग्रहण काल में अशुद्ध नहीं होते। सूखे खाद्य पदार्थों में तिल या कुश डालने की आवश्यकता भी नहीं होती।
रोग शांति के लिए ग्रहण काल में श्री महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना शुभ रहेगा।
ग्रहण विशेष:
कुछ वर्षों से टीवी चैनल तथा कुछ समाचार पत्रों द्वारा अपनी अपनी टीआरपी बढ़ाने के उद्देश्य से उपच्छाया ग्रहणों को भी ग्रहणों की कोटि में प्रदर्शित कर उनका प्रचार-प्रसार किया जा रहा है।
वहां बैठे ऐंकरो तथा अल्पज्ञ पंडितों द्वारा उपच्छाया ग्रहणों द्वारा बारह राशियों पर पड़ने वाले काल्पनिक प्रभाव की विवेचना भी प्रारंभ की है।
समाज को अकारण ही भयभीत और गुमराह किया जा रहा है, वास्तव में छाया ग्रहण में ना तो अन्य वास्तविक ग्रहण की भांति पृथ्वी पर उसकी काली छाया पड़ती है ना ही इस सौरपिण्डो की भांति उसका वर्ण काला होता है।
कुछ धुंधलापन आता है अतः धर्म निष्ठा एवं श्रद्धालु जनों को इन्हें ग्रहण कोटि में ना मानते हुए एवं ग्रहण संबंधी कार्य का विचार ना करते हुए साधारण तरीके से पूर्णिमा संबंधी साधारण व्रत, उपवास, दान करना चाहिए।
ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से
उपच्छाया ग्रहण वास्तव में चंद्र ग्रहण नहीं होता। प्रत्येक चंद्र ग्रहण के घटित होने से पहले चंद्रमा पृथ्वी की उपच्छाया में अवश्य प्रवेश करता है जिसे चंद्र मालिन्य कहा जाता है।
इसके बाद ही वह पृथ्वी की वास्तविक छाया में प्रवेश करता है। तभी उसे वास्तविक ग्रहण कहा जाता है।
चंद्रमा के संक्रमण काल को चंद्र ग्रहण कहा जाता है।
पूर्णिमा को चंद्रमा उपच्छाया में प्रवेश कर उपच्छाया शंकु से ही बाहर निकल जाता है।
इस उपच्छाया के समय चंद्रमा का विम्ब केबल धुंधला दिखाई पड़ता है, काला नहीं होता। इस धुंदलेपन को साधारण आंख से देख पाना संभव नहीं होता।
धर्म शास्त्रों ने इस प्रकार के उप ग्रहण को चंद्र बिंदु पर मालिन्य में मातृ छाया पड़ने कारण उन्हें ग्रहण की कोटि में नहीं रखा।
प्रत्येक चंद्रग्रहण घटित होने से पहले तथा बाद में भी चंद्रमा को पृथ्वी की इन उपच्छाया में से गुजरना पड़ता है, ग्रहण की संज्ञा नहीं दी जा सकती। यह ग्रहण होता ही नहीं है।
5 जून 2020, 05 जुलाई 2020 तथा 21 जून 2020 में केवल 21 जुलाई 2020 के सूर्य ग्रहण की ही मान्यता होगी बाकी दोनो की नहीं।
सबसे पहला ग्रहण 5 जून 2020 शुक्रवार को भारत में उपच्छाया ग्रहण दृष्टि गोचर होगा।
5 जुलाई 2020 रविवार को दूसरा उपच्छाया ग्रहण भारत में दृष्टिगोचर नहीं होगा।
उपच्छाया चंद्रग्रहण है जो सनातन ज्योतिष में मान्य नहीं होता है।
सूर्य ग्रहण (कंकण सूर्यग्रहण या चूड़ामणि सूर्य ग्रहण) 21 जून 2020 :
यह कंकण आकृति सूर्य ग्रहण 21 जून 2020 की प्रातः से दोपहर तक संपूर्ण भारत में खंडग्रास रूप में दिखाई देगा।
इस ग्रहण की कंकण आकृति केवल उत्तरी राजस्थान, उत्तरी हरियाणा तथा उत्तराखंड राज्य के उत्तरी क्षेत्र में से गुजरेगी।
भारत के अतिरिक्त यह ग्रहण दक्षिणी पूर्वी यूरोप ऑस्ट्रेलिया के केवल उत्तरी क्षेत्रों में अधिकतर अफ्रीका दक्षिण देशों को छोड़कर प्रशांत वा हिंद महासागर, मध्य पूर्वी एशिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, मध्य दक्षिणी चीन, फिलीपींस में दिखाई देगा।
भूलोक पर इस कंकण ग्रहण का समय इस प्रकार होगा -
ग्रहण प्रारंभ: 09 बजकर 15 मिनट
कंकण प्रारंभ: 10 बजकर 17 मिनट
कंकण समाप्त: 14 बजकर 2 मिनट
ग्रहण समाप्त: 15 बजकर 4 मिनट
सूतक विचार: ग्रहण के सूतक का विचार 20 जून 2020 की रात्रि 9:16 से प्रारंभ हो जाएगा।
क्या करे क्या न करे :
ग्रहण काल में भगवान सूर्य की उपासना, आदित्य हृदय स्त्रोत, सूर्याष्टक स्त्रोत तथा सूर्य स्त्रोतों का पाठ करना चाहिए।
पका हुआ भोजन,कटी हुई सब्जियां ग्रहण काल में दूषित हो जाते हैं, परंतु तेल, घी, दूध, लस्सी, मक्खन, पनीर, अचार, चटनी, मुरब्बा आदि में तिल या कुश रख देने से यह ग्रहण काल में अशुद्ध नहीं होते। सूखे खाद्य पदार्थों में तिल या कुश डालने की आवश्यकता भी नहीं होती।
रोग शांति के लिए ग्रहण काल में श्री महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना शुभ रहेगा।
ग्रहण विशेष:
कुछ वर्षों से टीवी चैनल तथा कुछ समाचार पत्रों द्वारा अपनी अपनी टीआरपी बढ़ाने के उद्देश्य से उपच्छाया ग्रहणों को भी ग्रहणों की कोटि में प्रदर्शित कर उनका प्रचार-प्रसार किया जा रहा है।
वहां बैठे ऐंकरो तथा अल्पज्ञ पंडितों द्वारा उपच्छाया ग्रहणों द्वारा बारह राशियों पर पड़ने वाले काल्पनिक प्रभाव की विवेचना भी प्रारंभ की है।
समाज को अकारण ही भयभीत और गुमराह किया जा रहा है, वास्तव में छाया ग्रहण में ना तो अन्य वास्तविक ग्रहण की भांति पृथ्वी पर उसकी काली छाया पड़ती है ना ही इस सौरपिण्डो की भांति उसका वर्ण काला होता है।
कुछ धुंधलापन आता है अतः धर्म निष्ठा एवं श्रद्धालु जनों को इन्हें ग्रहण कोटि में ना मानते हुए एवं ग्रहण संबंधी कार्य का विचार ना करते हुए साधारण तरीके से पूर्णिमा संबंधी साधारण व्रत, उपवास, दान करना चाहिए।
ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से
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