गंगा दशहरा ज्येष्ठ शुक्ल दशमी( 1 जून 2020)
गंगा जी देवनदी हैं, वे मनुष्य मात्र के कल्याण के लिए धरती पर आई, धरती पर उनका अवतरण ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी को हुआ।
अतः यह तिथि उनके नाम पर गंगा दशहरा के नाम से प्रसिद्ध हुई।
ज्येष्ठ शुक्ल दशमी संवत्सर का मुख कही जाती है।
ज्येष्ठस्य शुक्लादशमी संवत्सरमुखा स्मृता
तस्यां स्नानं प्रकुर्वीत दानं चैव विशेषत:
इस तिथि को गंगा स्नान एवं श्री गंगा जी के पूजन से 10 प्रकार के पापों (3 कायिक, 4 वाचिक तथा 3 मानसिक) का नाश होता है इसलिए ऐसे दशहरा कहा गया।
पूजा में 10 प्रकार के पुष्प, दशांग धूप, दीपक, 10 प्रकार के नैवेद्य, 10 तांबूल तथा 10 फल होने चाहिए, दक्षिणा भी 10 ब्राह्मणों को देना चाहिए।
दशहरा में दस योग होते हैं, ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि, बुधवार, हस्त नक्षत्र,व्यतिपात, गर, आनंद, कन्या के चंद्रमा और वृष के सूर्य।
उसमें जिस दिन योग अधिक हो तथा दशमी पूर्वाहन में मिलती हो उस दिन दशहरा करें।
यदि दो दिन पूर्व में दशमी तिथि प्राप्त होने पर जिस दिन योग बाहुल्य हो उस दिन करें।
यहां पर सोमवार, मंगलवार तथा बुधवार का कल्पभेद से व्यवस्था है, और इस दशमी को जिस दिन योग बाहुल्य हो उसी को ग्रहण करें, क्योंकि योगाधिक्य में फलाधिक्य अधिक होता है।
निर्जला एकादशी: (२ जून 2020)
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी कहलाती है।
अन्य महीनों की एकादशी को फलाहार किया जाता है परंतु इस एकादशी को जलग्रहण करना भी निषेध है।
व्यास जी के आदेशानुसार भीमसेन ने एकादशी का व्रत किया था, इसलिए यह एकादशी भीमसेनी एकादशी के नाम से भी प्रसिद्ध है।
स्कंद पुराण का मत है की ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष में जो शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि है, उसमें निर्जला उपवास कर जल से भरे हुए कुंभो तथा चीनी के सहित ब्राह्मणों या मंदिर में देने से विष्णु के सानिध्य में हर्ष होता है।
विशेष:
आषाढ़ मास (6 जून से 5 जुलाई) में पांच शनिवार तथा पांच रविवार आने से रविवारी संक्रांति (14 जून), 28 जून तक गुरु शुक्र मध्य नव पंचक योग रहने से तथा 21 जून को रविवारी अमावस्या के दिन कंकण सूर्यग्रहण घटित होने से आवश्यक वस्तुओं जैसे दूध, ईधन, सब्जियां, तेल आदि के भाव में अत्यधिक तेजी सामान्य लोगों में क्लिष्ट रोगों की उत्पत्ति, लोगों में पारस्परिक प्रेम की कमी तथा पूर्वोत्तर दिशा में कहीं राज भंग, अग्निकांड, युद्धआदि का भय हो।
शुक्र अस्त 31 मई 2020:
शुक्र ग्रह 31 मई 2020 रविवार को पश्चिम में अस्त हो जाएंगे। शुक्र ग्रह के अस्त होने से विवाह जैसे सभी मांगलिक कार्य बंद हो जाएंगे।
शुक्र ग्रह का उदय 9 जून 2020 को होगा, इसके बाद मांगलिक कार्य हो सकेंगे।
शुक्र ग्रह का वर्तमान समय में भ्रमण अपनी राशि वृष में रोहिणी नक्षत्र में हो रहा है।
इसी नक्षत्र में सूर्य ग्रह के आ जाने के कारण शुक्र ग्रह 31 मई 2020 को पश्चिम दिशा में शाम 7:16 बजे अस्त हो जाएंगे। इसका उदय 9 जून 2020 को पूरव दिशा में होगा।
शुक्र के अस्त होने से महंगाई बढ़ेगी और सूती, चावल, दूध, दही, घी में तेजी का रुख रहेगा।
लग्नेश शुक की महादशा, अंतर्दशा में शुक्र अस्त होने से सभी कार्य मे विलंब होने के योग बनेंगे।
जन्मपत्री में अकारक ग्रह शुक्र सभी कार्यो का समाधान करने के योग बनेंगे।
निषेध कार्य:
शुक्र ग्रह के अस्त होने तक विवाह, मुंडन, नूतन गृह प्रवेश, निर्माण कार्य प्रारंभ करना शास्त्र सम्मत नहीं रहता है।
ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से
गंगा जी देवनदी हैं, वे मनुष्य मात्र के कल्याण के लिए धरती पर आई, धरती पर उनका अवतरण ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी को हुआ।
अतः यह तिथि उनके नाम पर गंगा दशहरा के नाम से प्रसिद्ध हुई।
ज्येष्ठ शुक्ल दशमी संवत्सर का मुख कही जाती है।
ज्येष्ठस्य शुक्लादशमी संवत्सरमुखा स्मृता
तस्यां स्नानं प्रकुर्वीत दानं चैव विशेषत:
इस तिथि को गंगा स्नान एवं श्री गंगा जी के पूजन से 10 प्रकार के पापों (3 कायिक, 4 वाचिक तथा 3 मानसिक) का नाश होता है इसलिए ऐसे दशहरा कहा गया।
पूजा में 10 प्रकार के पुष्प, दशांग धूप, दीपक, 10 प्रकार के नैवेद्य, 10 तांबूल तथा 10 फल होने चाहिए, दक्षिणा भी 10 ब्राह्मणों को देना चाहिए।
दशहरा में दस योग होते हैं, ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि, बुधवार, हस्त नक्षत्र,व्यतिपात, गर, आनंद, कन्या के चंद्रमा और वृष के सूर्य।
उसमें जिस दिन योग अधिक हो तथा दशमी पूर्वाहन में मिलती हो उस दिन दशहरा करें।
यदि दो दिन पूर्व में दशमी तिथि प्राप्त होने पर जिस दिन योग बाहुल्य हो उस दिन करें।
यहां पर सोमवार, मंगलवार तथा बुधवार का कल्पभेद से व्यवस्था है, और इस दशमी को जिस दिन योग बाहुल्य हो उसी को ग्रहण करें, क्योंकि योगाधिक्य में फलाधिक्य अधिक होता है।
निर्जला एकादशी: (२ जून 2020)
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी कहलाती है।
अन्य महीनों की एकादशी को फलाहार किया जाता है परंतु इस एकादशी को जलग्रहण करना भी निषेध है।
व्यास जी के आदेशानुसार भीमसेन ने एकादशी का व्रत किया था, इसलिए यह एकादशी भीमसेनी एकादशी के नाम से भी प्रसिद्ध है।
स्कंद पुराण का मत है की ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष में जो शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि है, उसमें निर्जला उपवास कर जल से भरे हुए कुंभो तथा चीनी के सहित ब्राह्मणों या मंदिर में देने से विष्णु के सानिध्य में हर्ष होता है।
विशेष:
आषाढ़ मास (6 जून से 5 जुलाई) में पांच शनिवार तथा पांच रविवार आने से रविवारी संक्रांति (14 जून), 28 जून तक गुरु शुक्र मध्य नव पंचक योग रहने से तथा 21 जून को रविवारी अमावस्या के दिन कंकण सूर्यग्रहण घटित होने से आवश्यक वस्तुओं जैसे दूध, ईधन, सब्जियां, तेल आदि के भाव में अत्यधिक तेजी सामान्य लोगों में क्लिष्ट रोगों की उत्पत्ति, लोगों में पारस्परिक प्रेम की कमी तथा पूर्वोत्तर दिशा में कहीं राज भंग, अग्निकांड, युद्धआदि का भय हो।
शुक्र अस्त 31 मई 2020:
शुक्र ग्रह 31 मई 2020 रविवार को पश्चिम में अस्त हो जाएंगे। शुक्र ग्रह के अस्त होने से विवाह जैसे सभी मांगलिक कार्य बंद हो जाएंगे।
शुक्र ग्रह का उदय 9 जून 2020 को होगा, इसके बाद मांगलिक कार्य हो सकेंगे।
शुक्र ग्रह का वर्तमान समय में भ्रमण अपनी राशि वृष में रोहिणी नक्षत्र में हो रहा है।
इसी नक्षत्र में सूर्य ग्रह के आ जाने के कारण शुक्र ग्रह 31 मई 2020 को पश्चिम दिशा में शाम 7:16 बजे अस्त हो जाएंगे। इसका उदय 9 जून 2020 को पूरव दिशा में होगा।
शुक्र के अस्त होने से महंगाई बढ़ेगी और सूती, चावल, दूध, दही, घी में तेजी का रुख रहेगा।
लग्नेश शुक की महादशा, अंतर्दशा में शुक्र अस्त होने से सभी कार्य मे विलंब होने के योग बनेंगे।
जन्मपत्री में अकारक ग्रह शुक्र सभी कार्यो का समाधान करने के योग बनेंगे।
निषेध कार्य:
शुक्र ग्रह के अस्त होने तक विवाह, मुंडन, नूतन गृह प्रवेश, निर्माण कार्य प्रारंभ करना शास्त्र सम्मत नहीं रहता है।
ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से
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