Saturday, June 20, 2020

वट सावित्री व्रत ( ज्येष्ठ कृष्णा अमावस्या ), शनि जयंती 22 मई 2020

वट सावित्री व्रत ( ज्येष्ठ कृष्णा अमावस्या ), शनि जयंती  22 मई 2020

वट सावित्री व्रत ( ज्येष्ठ कृष्णा अमावस्या ), शनि जयंती  22 मई 2020

 वटवृक्ष के मूल में भगवान ब्रह्मा, मध्य में विष्णु तथा अग्र भाग में देवाधिदेव शिव का वास है।

देवी सावित्री भी वट वृक्ष में प्रतिष्ठित रहती हैं।  प्रयागराज में गंगा के तट पर वेणी माधव के निकट अक्षय वट प्रतिष्ठित है।

 भक्त शिरोमणि तुलसीदास ने संगम में स्थित अक्षय वट को तीर्थराज कहा,  इसी प्रकार तीर्थों में पंचवटी का स्थान विशेष है।

पांच वट से युक्त स्थान को पंचवटी कहा गया। हानिकारक गैसों को नष्ट कर वातावरण को शुद्ध करने में वटवृक्ष का विशेष महत्व है।

 वट वृक्ष की औषधि के रूप में उपयोगिता से सभी लोग परिचित हैं, जैसे वटवृक्ष दीर्घकाल तक अक्षय बना रहता है उसी तरह दीर्घायु और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए वटवृक्ष की साधना की जाती है।

 इसके नीचे सावित्री ने अपने पति को पुनर्जीवित किया था तब से यह व्रत वट सावित्री व्रत के नाम से जाना जाता है।

 सौभाग्यवती स्त्रियों का भी पूजन होता है कुछ महिलाएं केवल अमावस्या कोई एक दिन का व्रत करती हैं, अमावस्या को उपवास करना चाहिए अगले दिन पारण करना चाहिए ऐसा भी मत है।

वट सावित्री अमावस्या मुहूर्त:

अमावस्या तिथि प्रारम्भ - मई 21, 2020 को रात्रि 21:35  बजे
अमावस्या तिथि समाप्त - मई 22, 2020 को रात्रि 23:08  बजे

महत्व:

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह माना जाता है कि वट (बरगद) का पेड़ ‘त्रिमूर्ति’ को दर्शाता है, जिसका अर्थ है भगवान विष्णु, भगवान ब्रह्माऔर
भगवान शिव का प्रतीक होना। इस प्रकार, बरगद के पेड़ की पूजा करने से भक्तों को सौभाग्य प्राप्त होता है।

इस व्रत के महत्व और महिमा का उल्लेख कई धर्मग्रंथों और पुराणों जैसे स्कंद पुराण, भविष्योत्तर पुराण, महाभारत आदि में भी मिलता है।

वट सावित्री व्रत और पूजा हिंदू विवाहित महिलाओं द्वारा की जाती है ताकि उनके पति को समृद्धि, अच्छे स्वास्थ्य और दीर्घायु की प्राप्ति हो।

वट सावित्री व्रत का पालन एक विवाहित महिला द्वारा अपने पति के प्रति समर्पण और सच्चे प्यार का प्रतीक है।

हिन्दू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या को शनि जयंती को भी मनाई जाती है।

शनि के अधिदेवता प्रजापति ब्रह्मा और प्रत्यधिदेवता यम हैं।

 फलित ज्योतिष के अनुसार शनि को न्यायाधीश माना जाता है।

नव ग्रहों में शनि का स्थान सातवां है। ये एक राशि में तीस महीने तक रहते हैं तथा मकर और कुंभ राशि के स्वामी माने जाते हैं।

 शनि की महादशा 19 वर्ष तक रहती है।

शनि जयंती पूरे उत्तर भारत में पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाई जाती है।

दक्षिणी भारत के अमावस्यांत पंचांग के अनुसार शनि जयंती वैशाख अमावस्या को मनाई जाती है। 

उत्तर भारत में ज्येष्ठ अमावस्या को शनि जयंती के साथ-साथ वट सावित्री व्रत भी रखा जाता है।

शनि शांति के उपाय:

पितरो की शांति के लिए तथा शनि के कुप्रभावों को दूर करने के लिए अमावस्या सर्वोत्तम है।

श्री हनुमान जी की साधना से शनि अनुकूल फल ही देते हैं। हनुमान चालीसा, बजरंग बाण पढ़िए।

न्यायप्रिये देव शनि हमेशा ही बड़े बूढ़ों की सेवा से प्रसन्न हुए हैं।

गरीबो की सेवा कीजिये, बड़े लोगो का सम्मान कीजिये।

प्रत्येक शनिवार को वट और पीपल वृक्ष के नीचे सूर्योदय से पूर्व कड़वे तेल का दीपक जलाकर शुद्ध कच्चा दूध एवं धूप अर्पित करें।

 यदि शनि की साढ़ेसाती से ग्रस्त हैं तो शनिवार को अंधेरा होने के बाद पीपल पर मीठा जल अर्पित कर सरसों के तेल का दीपक और अगरबत्ती लगाएं और वहीं बैठकर क्रमशः हनुमान, भैरव और शनि चालीसा का पाठ करें और पीपल की सात परिक्रमा करें।

ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से

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