जून 2020 में होने वाले परिवर्तन:
गंगा दशहरा 1 जून
निर्जला एकादशी 2 जून
उपच्छाया चंद्र ग्रहण ( 5/6 जून) : भारत मे अमान्य
मिथुन संक्रांति ( सूर्य का मिथुन राशि मे प्रवेश) 14 जून
मीन राशि मे मंगल का प्रवेश 18 जून
21 जून कंकड़ सूर्य ग्रहण
गुप्त नवरात्रि 22 जून
भद्दली नवमी (अबूझ तिथि) 29 जून
गुरु का स्वराशि (धनु) में प्रवेश 30 जून
गंगा दशहरा ज्येष्ठ शुक्ल दशमी( 1 जून 2020)
गंगा जी देवनदी हैं, वे मनुष्य मात्र के कल्याण के लिए धरती पर आई, धरती पर उनका अवतरण ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी को हुआ।
अतः यह तिथि उनके नाम पर गंगा दशहरा के नाम से प्रसिद्ध हुई।
ज्येष्ठ शुक्ल दशमी संवत्सर का मुख कही जाती है।
ज्येष्ठस्य शुक्लादशमी संवत्सरमुखा स्मृता
तस्यां स्नानं प्रकुर्वीत दानं चैव विशेषत:
इस तिथि को गंगा स्नान एवं श्री गंगा जी के पूजन से 10 प्रकार के पापों (3 कायिक, 4 वाचिक तथा 3 मानसिक) का नाश होता है इसलिए ऐसे दशहरा कहा गया।
पूजा में 10 प्रकार के पुष्प, दशांग धूप, दीपक, 10 प्रकार के नैवेद्य, 10 तांबूल तथा 10 फल होने चाहिए, दक्षिणा भी 10 ब्राह्मणों को देना चाहिए।
दशहरा में दस योग होते हैं, ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि, बुधवार, हस्त नक्षत्र,व्यतिपात, गर, आनंद, कन्या के चंद्रमा और वृष के सूर्य।
उसमें जिस दिन योग अधिक हो तथा दशमी पूर्वाहन में मिलती हो उस दिन दशहरा करें।
यदि दो दिन पूर्व में दशमी तिथि प्राप्त होने पर जिस दिन योग बाहुल्य हो उस दिन करें।
यहां पर सोमवार, मंगलवार तथा बुधवार का कल्पभेद से व्यवस्था है, और इस दशमी को जिस दिन योग बाहुल्य हो उसी को ग्रहण करें, क्योंकि योगाधिक्य में फलाधिक्य अधिक होता है।
निर्जला एकादशी: (२ जून 2020)
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी कहलाती है।
अन्य महीनों की एकादशी को फलाहार किया जाता है परंतु इस एकादशी को जलग्रहण करना भी निषेध है।
व्यास जी के आदेशानुसार भीमसेन ने एकादशी का व्रत किया था, इसलिए यह एकादशी भीमसेनी एकादशी के नाम से भी प्रसिद्ध है।
स्कंद पुराण का मत है की ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष में जो शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि है, उसमें निर्जला उपवास कर जल से भरे हुए कुंभो तथा चीनी के सहित ब्राह्मणों या मंदिर में देने से विष्णु के सानिध्य में हर्ष होता है।
प्रथम उपच्छाया चंद्रग्रहण:
प्रथम उपच्छाया चंद्रग्रहण 5 / 6 जून 2020 (शुक्र / शनि) यह अच्छा या चंद्र ग्रहण आरंभ से समाप्ति तक भारत में देखा जा सकेगा।
ध्यान रहे उपच्छाया चंद्रग्रहण वास्तव में चंद्रग्रहण नहीं होता, इस ग्रहण की समय अवधि में चंद्रमा की चांदनी में कुछ धुंधलापन सा जाता है।
इसे ग्रहण की मान्यता नहीं होगी। किसी तरीके का सूतक का विचार नहीं होगा।
कंकण (चूड़ामणि) सूर्य ग्रहण (21 जून 2020 आषाढ़ अमावस रविवार):
इस कंकण आकृति सूर्य ग्रहण 21 जून 2020 की प्रातः से दोपहर तक संपूर्ण भारत में खंडग्रास के रूप में दिखाई देगा।
इस ग्रहण की कंकण आकृति केवल उत्तरी राजस्थान, उत्तरी हरियाणा तथा उत्तराखंड राज्य के उत्तरी क्षेत्र में से गुजरेगी।
भारत के अतिरिक्त यह ग्रहण दक्षिण पूर्वी यूरोप,ऑस्ट्रेलिया के केवल उत्तरी क्षेत्रों गियाना, फिजी, अधिकतर अफ्रीका (दक्षिण देशों को छोड़कर), प्रशांत ब हिंद महासागर, मध्य पूर्वी एशिया (अफगानिस्तान, पाकिस्तान, मध्य दक्षिण चीन, फिलीपींस) में दिखाई देगा।
ग्रहण का समय:
ग्रहण प्रारंभ: 09:15:58
परम ग्रास (मध्य): 12:10:04
ग्रहण समाप्ति: 15:04:01
भड़ल्या नवमी के दो दिन बाद ही सो जाएंगे देव, फिर पांच माह तक नहीं हो सकेंगे मांगलिक कार्य।
आषाढ़ मास (6 जून से 5 जुलाई) में पांच शनिवार तथा पांच रविवार आने से रविवारी संक्रांति (14 जून), 28 जून तक गुरु शुक्र मध्य नव पंचक योग रहने से तथा 21 जून को रविवारी अमावस्या के दिन कंकण सूर्यग्रहण घटित होने से आवश्यक वस्तुओं जैसे दूध, ईधन, सब्जियां, तेल आदि के भाव में अत्यधिक तेजी सामान्य लोगों में क्लिष्ट रोगों की उत्पत्ति, लोगों में पारस्परिक प्रेम की कमी तथा पूर्वोत्तर दिशा में कहीं राज भंग, अग्निकांड, युद्धआदि का भय हो।
ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से
गंगा दशहरा 1 जून
निर्जला एकादशी 2 जून
उपच्छाया चंद्र ग्रहण ( 5/6 जून) : भारत मे अमान्य
मिथुन संक्रांति ( सूर्य का मिथुन राशि मे प्रवेश) 14 जून
मीन राशि मे मंगल का प्रवेश 18 जून
21 जून कंकड़ सूर्य ग्रहण
गुप्त नवरात्रि 22 जून
भद्दली नवमी (अबूझ तिथि) 29 जून
गुरु का स्वराशि (धनु) में प्रवेश 30 जून
गंगा दशहरा ज्येष्ठ शुक्ल दशमी( 1 जून 2020)
गंगा जी देवनदी हैं, वे मनुष्य मात्र के कल्याण के लिए धरती पर आई, धरती पर उनका अवतरण ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी को हुआ।
अतः यह तिथि उनके नाम पर गंगा दशहरा के नाम से प्रसिद्ध हुई।
ज्येष्ठ शुक्ल दशमी संवत्सर का मुख कही जाती है।
ज्येष्ठस्य शुक्लादशमी संवत्सरमुखा स्मृता
तस्यां स्नानं प्रकुर्वीत दानं चैव विशेषत:
इस तिथि को गंगा स्नान एवं श्री गंगा जी के पूजन से 10 प्रकार के पापों (3 कायिक, 4 वाचिक तथा 3 मानसिक) का नाश होता है इसलिए ऐसे दशहरा कहा गया।
पूजा में 10 प्रकार के पुष्प, दशांग धूप, दीपक, 10 प्रकार के नैवेद्य, 10 तांबूल तथा 10 फल होने चाहिए, दक्षिणा भी 10 ब्राह्मणों को देना चाहिए।
दशहरा में दस योग होते हैं, ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि, बुधवार, हस्त नक्षत्र,व्यतिपात, गर, आनंद, कन्या के चंद्रमा और वृष के सूर्य।
उसमें जिस दिन योग अधिक हो तथा दशमी पूर्वाहन में मिलती हो उस दिन दशहरा करें।
यदि दो दिन पूर्व में दशमी तिथि प्राप्त होने पर जिस दिन योग बाहुल्य हो उस दिन करें।
यहां पर सोमवार, मंगलवार तथा बुधवार का कल्पभेद से व्यवस्था है, और इस दशमी को जिस दिन योग बाहुल्य हो उसी को ग्रहण करें, क्योंकि योगाधिक्य में फलाधिक्य अधिक होता है।
निर्जला एकादशी: (२ जून 2020)
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी कहलाती है।
अन्य महीनों की एकादशी को फलाहार किया जाता है परंतु इस एकादशी को जलग्रहण करना भी निषेध है।
व्यास जी के आदेशानुसार भीमसेन ने एकादशी का व्रत किया था, इसलिए यह एकादशी भीमसेनी एकादशी के नाम से भी प्रसिद्ध है।
स्कंद पुराण का मत है की ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष में जो शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि है, उसमें निर्जला उपवास कर जल से भरे हुए कुंभो तथा चीनी के सहित ब्राह्मणों या मंदिर में देने से विष्णु के सानिध्य में हर्ष होता है।
प्रथम उपच्छाया चंद्रग्रहण:
प्रथम उपच्छाया चंद्रग्रहण 5 / 6 जून 2020 (शुक्र / शनि) यह अच्छा या चंद्र ग्रहण आरंभ से समाप्ति तक भारत में देखा जा सकेगा।
ध्यान रहे उपच्छाया चंद्रग्रहण वास्तव में चंद्रग्रहण नहीं होता, इस ग्रहण की समय अवधि में चंद्रमा की चांदनी में कुछ धुंधलापन सा जाता है।
इसे ग्रहण की मान्यता नहीं होगी। किसी तरीके का सूतक का विचार नहीं होगा।
कंकण (चूड़ामणि) सूर्य ग्रहण (21 जून 2020 आषाढ़ अमावस रविवार):
इस कंकण आकृति सूर्य ग्रहण 21 जून 2020 की प्रातः से दोपहर तक संपूर्ण भारत में खंडग्रास के रूप में दिखाई देगा।
इस ग्रहण की कंकण आकृति केवल उत्तरी राजस्थान, उत्तरी हरियाणा तथा उत्तराखंड राज्य के उत्तरी क्षेत्र में से गुजरेगी।
भारत के अतिरिक्त यह ग्रहण दक्षिण पूर्वी यूरोप,ऑस्ट्रेलिया के केवल उत्तरी क्षेत्रों गियाना, फिजी, अधिकतर अफ्रीका (दक्षिण देशों को छोड़कर), प्रशांत ब हिंद महासागर, मध्य पूर्वी एशिया (अफगानिस्तान, पाकिस्तान, मध्य दक्षिण चीन, फिलीपींस) में दिखाई देगा।
ग्रहण का समय:
ग्रहण प्रारंभ: 09:15:58
परम ग्रास (मध्य): 12:10:04
ग्रहण समाप्ति: 15:04:01
भड़ल्या नवमी के दो दिन बाद ही सो जाएंगे देव, फिर पांच माह तक नहीं हो सकेंगे मांगलिक कार्य।
आषाढ़ मास (6 जून से 5 जुलाई) में पांच शनिवार तथा पांच रविवार आने से रविवारी संक्रांति (14 जून), 28 जून तक गुरु शुक्र मध्य नव पंचक योग रहने से तथा 21 जून को रविवारी अमावस्या के दिन कंकण सूर्यग्रहण घटित होने से आवश्यक वस्तुओं जैसे दूध, ईधन, सब्जियां, तेल आदि के भाव में अत्यधिक तेजी सामान्य लोगों में क्लिष्ट रोगों की उत्पत्ति, लोगों में पारस्परिक प्रेम की कमी तथा पूर्वोत्तर दिशा में कहीं राज भंग, अग्निकांड, युद्धआदि का भय हो।
ज्योतिर्विद डॉ0 सौरभ शंखधार की डेस्क से
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